गयाजी में पंचमी को ब्रह्मसरोवर पर श्राद्ध करने का है विधान, जानें आज आज कहां होगा पिंडदान तर्पण
Pitru Paksha 2022: माड़नपुर से गो प्रचार वेदी जानेवाली गली में उक्त वेदी है. वहां आम के वृक्ष की जड़ में जल धारा देकर उसे गिला किया जाता है. उक्त जलधारा कुशा से होकर वृक्ष की जड़ तक पहुंचती है. इससे पितर तृप्त हो जाते हैं.
मोक्षधाम 17 दिवसीय गया श्राद्ध का पंचम दिवस आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि है जो 14 सितंबर बुधवार को है. इस तिथि को ब्रह्मसरोवर पर श्राद्ध होता है. श्राद्ध के बाद ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित यूप (स्तंभ) की प्रदक्षिणा की जाती है. ब्रह्मा जी ने गयाजी में यज्ञ करने के बाद उक्त यूप (स्तंभ) को ब्रह्म सरोवर के पास स्थापित किया था और ब्रह्म सरोवर में यज्ञान्त स्नान किया था. ब्रह्म सरोवर से पश्चिम एवं मार्कंडेय मंदिर से दक्षिण मुख्य पथ पर ही ब्रह्मा जी का मंदिर है. वहां दीवार में ब्रह्मा जी की मूर्ति है. इनके दर्शन मात्र से पितर तर जाते हैं. यहां से आम्र सिंचन वेदी पर जाते हैं.
आज कहां होगा पिंडदान तर्पण
माड़नपुर से गो प्रचार वेदी जानेवाली गली में उक्त वेदी है. वहां आम के वृक्ष की जड़ में जल धारा देकर उसे गिला किया जाता है. उक्त जलधारा कुशा से होकर वृक्ष की जड़ तक पहुंचती है. इससे पितर तृप्त हो जाते हैं. अंत में ब्रह्म सरोवर के पश्चिम-उत्तर कोना पर स्थित काकबलि वेदी पर उड़द के आटे की बलि पड़ती है. यह बलि धर्मराज एवं यमराज को उनके कुत्ते एवं कौए को दी जाती है. उक्त ब्रह्म सरोवर से उत्तर दिशा में गया तीर्थ है जो पितामहेश्वर तक है. यह तीर्थ गोदावरी सरोवर से पूर्व दिशा में सीताकुंड तक है. इस प्रकार गया तीर्थ एक कोश में व्याप्त है. 17 दिवसीय पितृपक्ष के छठे दिन या बुधवार को ब्रह्मसत सरोवर आम्रसिंचन व गोप्रचार वेदी पर पिंडदान व तर्पण का विधान है. अमावस्या तिथि 25 सितंबर को पड़ रही है.
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अब तक साढ़े तीन लाख तीर्थयात्री पहुंचे गयाजी
दो वर्ष के कोरोना के विराम के बाद गयाजी में तीर्थयात्रियों का इस वर्ष जनसैलाब उमड़ा है. सुबह पांच बजे से दोपहर बाद दो बजे तक सड़कों पर चलने की जगह नहीं मिल रही है. गाड़ियां घंटों फंसी रह रही हैं. गयाश्राद्ध के चौथे दिन तक करीब साढ़े तीन लाख तीर्थयात्री गयाजी आ चुके हैं. इनमें करीब दो लाख 80 हजार पिंडदानियों ने मंगलवार को अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति के निमित्त पिंडदान-तर्पण किया.
बोधगया के धर्मारण्य, मतंगवापी व सरस्वती तीर्थ में पिंडदानियों ने पिंडदान व तर्पण किया. धर्मारण्य में खास कर त्रिपिंडी श्राद्ध का विधान है. जिस किसी के घर में किसी कारण वश या फिर पितरों के द्वारा अशांति है. घर के सदस्य से लेकर घर की ग्रह-दशा अच्छी नहीं रह रही है. वे वहां जाकर त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं. धर्मारण्य स्थित कूप में नारियल छोड़कर प्रेतात्मा से मुक्ति पाते हैं.