Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष शुरू होने में चार दिन शेष, जानें श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने की जानकारी

Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष शुरू होने में शेष चार दिन बाकी है. भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अवमस्या तक चलने वाला यह पितृपक्ष का समय पिंडदान करने के लिए उतम समय रहता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2022 7:57 AM
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Pitru Paksha 2022: 10 सितंबर 2022 से पितृपक्ष शुरू हो रहा है. भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अवमस्या तक चलने वाला यह पितृपक्ष का समय पिंडदान करने के लिए उतम माना गया है. पितरों के लिए श्राद्ध से किये गए ‘मुक्ति कर्म’ को श्राद्ध कहते है. पितरों को तृप्त करने की क्रिया और देवताओं ऋषियों या पितरों को चावल और तील का मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते है. आइए जानते है ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ संजीत कुमार मिश्रा से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने की पूरी जानकारी…

तर्पण के प्रकार

(1) पितृतर्पण

(2 ) मनुष्यतर्पण

(3 ) देवतर्पण

(4 ) भीष्मतर्पण

(5 )मनुष्यपितृतर्पण

(6) यमतर्पण

तर्पण विधि

सर्वप्रथम दक्षिण दिशा की और मुंह करके दाहिना घुटना जमीन पर लगाकर ,जनेऊअंगौछा को बाये कंधे पर रखे गायत्री मंत्र से शिखा बांध ले. तिलक लगाये. दोनों हाथ की अनामिका अंगुली में कुशो का पवित्री (पैती ) धारण करे फिर तर्पण करे .दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें।.अपने पितरों का नाम लेते हुए आप कहें कृपया यहां आकर मेरे दिए जल को आप ग्रहण करें. जल पृथ्वी पर डाले.

पितृतर्पण

तत्पश्चात उन कुशों को द्विगुण भुग्न करके उनका मूल और अग्रभाग दक्षिण की ओर किये हुए ही उन्हें अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखे और स्वयं दक्षिणाभिमुख हो बायें घुटने को पृथ्वी पर रखकर अपलव्यभाव से जनेऊ को दायें कंधेपर रखकर पूर्वोक्त पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर पितृतीर्थ से अंगृठा और तर्जनी के मध्यभाग से दिव्य पितरों के लिये निम्नाङ्किन मन्त्र को पढते हुए तीन-तीन अञ्जलि जल दें.

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  • ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यत. कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तस्मै स्वधा नम: ॥३॥

  • ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तस्मै स्वधा नम: ॥३॥

  • ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तस्मै स्वधा नम: ॥३॥

  • ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तस्मै स्वधा नम: ॥३॥

  • ॐ अग्निष्वात्ता: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तेभ्य़: स्वधा नम: ॥३॥

  • ॐ सोमपा: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तेभ्य़: स्वधा नम: ॥३॥

  • ॐ बर्हिषद: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा तेभ्य़: स्वधा नम: ॥३॥

  • इस प्रकार पूजन करके बाद में ब्राह्मण का पूजन करे फिर भोजन ग्रहण कराए ,

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