गया (प्रो. राधे मोहन प्रसाद). गयाजी में प्रसिद्ध फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित विश्व प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर प्रत्येक सनातन धर्मावलंबियों के लिए एक पवित्र तीर्थ है. मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है जिसका पुर्नउद्धार और विनिर्माण कार्य आज से लगभग चार सौ साल पहले, इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. अहिल्याबाई भारतीय इतिहास की एक अमोल रत्न थीं जो एक उज्जवल नक्षत्र की तरह आकाश में वर्षों तक चमकती रही. वे गंगा-जमुना की तरह पवित्र और सीता-सावित्री की तरह पूज्य थीं. इनकी गिनती भारत की उन प्रसिद्ध नारियों में की जाती है जिन्होंने प्रजा पर नही बल्कि उनके हृदय पर एक महान माता के समान वात्सलमय शासन किया.
भूरे रंग के पत्थरसे निर्मित विष्णुपद मंदिर को बनवाने के लिए अहिल्याबाई ने जयपुर के प्रसिद्ध स्थापत्याकारों को बुलवाया था. वहां से जो कुशल कारीगर आयें थे उनमें से कुछ कलाकार परिवार सहित गयाजी में ही बस गये. उनके अनेक वंशज आज भी पत्थर से मूर्ति तराशने का काम करते हुए गयाजी में देखा जा सकता है. गयाजी में इस मंदिर निर्माण करवाकर वो सदा के लिए अमर हो गयी. अहिल्याबाई की लगन एवं स्थापत्य कलाकारों के मेहनत से स्थापित विष्णुपद मंदिर एक मुख्य वेद के रूप में प्रतिष्ठित है जो सन् 1787 के आसपास बनकर तैयार हो गया था. इस मंदिर की ऊंचाई सौ फीट तथा मंडप पचास वर्गफीट में है.
मंडप की छत आठ कतारा में खड़े खंभे पर टिकी हुई है. मंदिर के पुर्ननिर्माण में लगभग बारह वर्षों का समय लगा. विष्णुपद मन्दिर की वास्तुकला दक्षिण भारत के कांजीवरम मंदिर का बनावट की तरह है. मंदिर के शिखर पर सवा मन सोने का ध्वज शान से लहरा रहा है. इसके गर्भगृह में भगवान विष्णु के तरह इंच लंबा चरण चिह्न स्थापित है. ऐसी मान्यता है कि गयासुर के कम्पायमान शरीर को स्थिर करने के लिए भगवान विष्णु ने यहां स्वंय आकर अपने चरण उनके वक्षस्थल पर रखे थे. विष्णुपद मंदिर की भवन निर्माण रौली अंत्यंत ही सुंदर और प्रशंसनीय है.
गया शहर के दक्षिण-पूर्व फल्गु नदी के समीप प्रसिद्ध मंदिर पूर्व मुख खड़ा है. मंदिर के शीर्ष भाग पर कलश के साथ ध्वज इसकी सुंदरता को अद्वितीय कर रहा है. बहुत दूर से ही देखा जा सकता है. मंदिर के गर्भगृह में पचास किलो चांदी की छतरी लगी हुयी है इसके अतिरिक्त मंदिर में श्रृंगार, पूजा और झूला भी चांदी का है. साठ किलों चॉदी का रजत मंडल विशेष पूजा अवसरों पर सजाया जाता है. भगवान के चरणचिह्न के चारों ओर चांदी का पत्तर लगा हुआ है. कुछ वर्ष पहले प्रवेश द्वार और निकास द्वार को चांदी से मढ़ा गया है जो देखते ही बनता है. गयाजी में विष्णुपद इकलौता ऐसा मंदिर है जिसके दरवाजे चांदी के हैं. दीवार के चारों ओर देव मूर्तियां स्थापित है. मंदिर के सामने अठारह गज लंबा तथा सत्रह गज चौड़ा बयालीस सुंदर खंभा लगे हुए काले पत्थर से बना हुआ गुबंज द्वारा उत्तम जगमोहन है. बीच का भाग छोड़कर इसके चारों ओर दो मंजिला है. गुंबज के ऊपर सुनहरा कलश लगा हुआ है और नीचे एक बड़ा घंटा लटकता है.
मंदिर के दोनों बगलों में छोटी-छोटी कोठियां हैं. दक्षिण कोठी में मंदिर का खजाना तथा उत्तर वाली कोठी में कनकेश्वर महादेव नंदी के साथ हैं. जगमोहन के पूरब-दक्षिण सैतीस चौकोर स्तंभों से काले पत्थर का मंडप बना हुआ है. कुल मिलाकर इस भव्य मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है. भगवान ने यह वरदान दिया कि जो मनुष्य गयाजी में श्राद्ध करेगें उनके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होगा तथा कर्ता को भी परमगति की प्राप्ति होगी. हिंदू धर्मग्रंथों में मृत्योंपरांत मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए वर्णित तीन सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थलों को ‘त्रिस्थली’ कहा गया है. ये तीन जगह है प्रयागराज, काशीजी और गयाजी. इन तीनों में श्राद्ध कर्म के लिए सबसे श्रेष्ठ गयाजी को माना गया है.
गयांया नहि तत् स्थांन यत्र तीर्थ न विद्यते।
सान्निध्य सर्वतीर्थाना गया तीर्थ ततो परम् ।।
यहां पिंडदान प्राप्त करके पूर्वज न केवल प्रसन्न हो जाते हैं बल्कि वे कर्ता को भरपूर आर्शीवाद देते हैं जिससे भविष्य में उनके आनेवाला समय सरल, सुखद तथा आनंदमय होता है. पूर्वजों का ऋण उतारने का इससे अच्छा कोई जगह नहीं है. शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि पृथ्वी पर जितने भी तीर्थ हैं, समुद्र और सरोवर है वे सभी प्रतिदिन एक बार फल्गु तीर्थ में आते हैं. गया क्षेत्र में ऐसा कोई स्थान नही है जहाँ तीर्थ पर तीर्थ न हो. गयाजी में पिंडदान करने से मनुष्य के जो फल मिलता है उसका वर्णन करोड़ों कल्प में भी नहीं किया जा सकता है.