Pitru Paksha 2022: भगवान विष्णु का मस्तक बद्रीनाथ, वक्ष स्थल हरिद्वार, तो गया में पाद स्थल

Pitru Paksha 2022: गया में श्री विष्णु पद मंदिर समूह क्षेत्र में भगवान के अन्य नामधारी मंदिर के अंतर्गत बांके बिहारी मंदिर, गोपाल मंदिर, नृसिंह मंदिर, जनार्दन मंदिर, विश्वदेव मंदिर, देवराज मंदिर और गया गदाधर मंदिर का विशेष नाम है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2022 8:33 AM
an image

Pitru Paksha 2022: भारतवर्ष के वैष्णव तीर्थों में गया का स्थान प्रथम पंक्ति पर परिगण्य है. गया तीर्थ जगत नियंता श्री विष्णु का वह महातीर्थ है, जहां वे पराक्रमी भक्त गया असुर को तारने के लिए गदाधर अवतार रूप में अवतरित हुए थे. गया में श्री विष्णु जी के अवतरण की इस कथा का वर्णन विभिन्न पुराणों के साथ कितने ही स्थानों पर प्राप्त होता है. श्री विष्णु के इस गदाधर अवतार की चर्चा दशावतार और चौबीस अवतारों के अंतर्गत नहीं आता है. पुराणों में आया है कि भगवान विष्णु का मस्तक बद्रीनाथ में, वक्ष स्थल हरिद्वार में तो पाद स्थल गया ही है, जहां धर्म शिला पर अंकित उनके चरणों युगों-युगों से जनकल्याण कर रहा है.

गया में श्री विष्णुभगवान कितने ही रुपों में पूजित हैं…

धार्मिक आख्यान में गया की गरिमा जिनके नाम से प्रकाशित है, उसमें गया के वैष्णव तत्व का अहम योगदान है. गया जी का श्री विष्णुपादालय देशविदेश में चर्चित है और यहां श्री विष्णु के चरण की पूजा युगों-युगों से की जा रही है. शास्त्रोक्त विवरण है कि धर्मशिला पर अंकित श्री विष्णु चरण के स्पर्श, दर्शन और पूजन से सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति और संपूर्णपितरों को सद्गति प्राप्त होती है. ऐसे तो गया में श्रीविष्णुपद के रूप में प्रसिद्ध वेदी प्राचीन काल से ही चर्चित है. लेकिन अठारहवीं शताब्दी के अंतिम तीन दशक में श्री विष्णुपद नव शृंगार के बाद इसकी सिद्धि-प्रसिद्धि में चहुं ओर श्रीवृद्धि हुई. यह गौरव की बात है गया में श्री विष्णुभगवान कितने ही रुपों में पूजित हैं.

गया का श्री विष्णु श्मशान प्रथम स्थान पर विराजमान है…

गया का श्री विष्णु श्मशान प्रथम स्थान पर विराजमान है. गया के श्मशान को साक्षात बैष्णव प्रकृति का स्वीकारा जाता है. वैसे गया में श्री विष्णु पद मंदिर समूह क्षेत्र में भगवान के अन्य नामधारी मंदिर के अंतर्गत बांके बिहारी मंदिर, गोपाल मंदिर, नृसिंह मंदिर, जनार्दन मंदिर, विश्वदेव मंदिर, देवराज मंदिर और गया गदाधर मंदिर का विशेष नाम है. गया जी की जीवन रेखा फल्गु नदी की बात चले तो पुराणों में स्पष्ट अंकन है कि भगवान विष्णु के दाहिने पैर के अंगूठे से फल्गु नदी उद्गमित हुई है. कहने का आशय फल्गु नदी भगवान विष्णु की कृपा से प्रवाहमान है. गया का अंतिम श्राद्ध-पिण्डदान वेदी स्थल अक्षय वट में विष्णुजी के श्रीकृष्ण अवतार से जुड़े पूजन की प्राचीन परंपरा आज भी बनी हुई है.

Also Read: Pitru Paksha 2022: आज मुंड पृष्ठा वेदी पर पिंडदान करने का विधान, अब तक पांच लाख श्रद्धालु पहुंचे मोक्षधाम
यहां का है विशेष महत्व

माता मंगला गौरी पर्वतीय खंड के सीढ़ी से दूसरे तरफ विराजमान पुण्डरीकाक्ष मंदिर, बाइपास के पीछे का मधुसूदन तीर्थ, अंदर गया क्षेत्र का माधव मंदिर, भीम गया, आकाशगंगा क्षेत्र का श्री विष्णु काली मंदिर, कपिल धारा सहित दर्जनों ठाकुरबाड़ियां आज भी समय के साज पर गया तीर्थ में वैष्णव मत के ध्वज को मजबूती प्रदान कर रहे हैं. धर्म शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि श्री विष्णुभगवान नित्य द्वारिका में स्नान, जगन्नाथपुरी में भोजन, बद्रीनाथ में शयन और गया में शृंगार करते हैं, जहां उनके चरण चिन्ह मोक्षकारी हैं. इस तरह स्पष्ट है कि गया श्री विष्णु का जाग्रत तीर्थ है जहां से आदि गदाधर विष्णुपितरों को परम गति प्रदान कर लोक-लोकांतर से मुक्त करते हैं.

इनपुट -डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’

Exit mobile version