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गया में पिंडदान करने से प्रेत योनी से मिलती है मुक्ति, जानें तर्पण और श्राद्ध करने की पुरानी परंपरा

Pitru Paksha 2022: फल्गु नदी के किनारे बसे गया शहर का विशेष महत्व है. यहां नदी के तट पर पिंडदान किया जाता है. गया में पिंडदान करने से माता, पिता के साथ कुल के सभी पितर तृप्त हो जाते हैं.

गया में श्राद्ध व तर्पण के लिए देश विदेश से श्रद्धालु आते है. गया में अपने पूर्वज (पितर) को तर्पण व श्राद्ध की परंपरा काफी पुरानी है. माना जाता है कि गया में पिंडदान करने पर पितर को मोक्ष की प्राप्ति होती है. भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक चलने वाला यह पितृपक्ष का समय पिंडदान करने के लिए उतम समय माना गया है. पितृपक्ष 16 दिन का होता है. भारत में कई जगह ऐसे है, जहां पर पितृपक्ष में पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है. लेकिन इन सभी स्थानों में सबसे उतम स्थान गया का माना गया है. यह स्थान बिहार के पटना से 100 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां जाने के लिए ट्रेन तथा बस की सुविधा है. गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. इस नदी के किनारे पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया का स्थान सर्वोतम है.

जानें गया में श्राद्ध करने का महत्व

गया में पिंडदान करने से माता, पिता के साथ कुल के सभी पीढ़िया तृप्त हो जाती है. गरुड़ पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया जाता है, उसका एक-एक कदम पुर्वजों को स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनाता है. यहां पर श्राद्ध कर्म करने से पुर्वज सीधे स्वर्ग चले जाते हैं. क्योंकि स्वंय भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में यहां मौजूद होते हैं. इसलिए गया को पितृ तीर्थ स्थल भी कहा जाता है. इसकी चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी की गई है. गया में भगवान राम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ राजा दशरथ का पिंडदान किया था, जिससे उनकी आत्मा को मुक्ति मिली थी. गया में रेत का भी पिंडदान किया जाता है. माता सीता ने फल्गु नदी के रेत का पिंड बनाकर दशरथ जी को अर्पण किया था.

तर्पण और श्राद्ध करने की पुरानी परंपराएं

दरअसल इसके पीछे कथा यह है कि जब भगवान राम इस जगह राजा दशरथ का पिंडदान करने पहुंचे थे तब वह सामग्री जुटाने के लिए अपने भाई के साथ नगर चले गए थे. उनको सामान जुटाने में बहुत देर हो गई थी और पिंडदान का समय निकलता जा रहा था. तब माता सीता नदी के तट पर बैठी हुई थीं. तभी दशरथजी ने उनको दर्शन देकर कहा कि पिंडदान का समय निकल रहा है, इसलिए जल्दी मेरा पिंडदान करें. तब माता सीता ने रेत से पिंड बनाया और फल्गु नदी, अक्षय वट, एक ब्राह्मण, तुलसी और गाय को साक्षी मानकर उनका पिंडदान कर दिया. जब भगवान राम पहुंचे तब उन्होंने सारी बात बताई और अक्षय वट ने भी इसकी जानकारी दी. लेकिन फल्गु नदी कुछ नहीं बोली तभी माता सीता ने नदी को श्राप दे दिया.

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पिंडदान का महत्व

अक्षय वट को वरदान दिया कि तुम हमेशा पुजनीय रहोगे और आज से पिंडदान के बाद तुम्हारी पूजा करने के बाद ही श्राद्धकर्म पूरा माना जायेगा. मानयता है कि प्रेतशिला पर पिंडदान करने से सीधा पितर पिंड ग्रहण कर लेते हैं. प्रेतशिला के पास कई पत्थर हैं, जिनमें विशेष प्रकार की दरारें और छिद्र हैं. कहा जाता है कि ये दरारें और छिद्र लोक और परलोक के बीच मार्ग हैं, इनसे होकर प्रेत आत्माएं आती हैं और पिंड ग्रहण कर लौट जाती हैं.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

मोबाइल नं. 8080426594 /9545290847

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