गयाजी में आज पंच तीर्थ श्राद्ध से सूर्य लोक की होती है प्राप्ति, जानें तिथिवार पिंडदान करने की मान्यता

Pitru Paksha 2022: फल्गु नदी के पितामहेश्वर घाट पर यह तीर्थ है. यहां उत्तर मानस सरोवर है, जिसके तट पर पिंडदान होता है. इसके समीप ही उत्तर तरफ सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की प्रतिमा व शीतला माता की प्रतिमा है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 12, 2022 8:26 AM
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गया में 17 दिवसीय त्रिपाक्षिक श्राद्ध का तीसरा दिन आज आश्विन कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि है, जो 12 सितंबर सोमवार को है. इस तिथि को पांच तीर्थों में श्राद्ध होता है. सर्वप्रथम उत्तर मानस तीर्थ में श्राद्ध किया जाता है. पितृपक्ष मेला के दौरान फल्गु नदी के पितामहेश्वर घाट पर यह तीर्थ है. यहां उत्तर मानस सरोवर है, जिसके तट पर पिंडदान होता है. इसके समीप ही उत्तर तरफ सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की प्रतिमा व शीतला माता की प्रतिमा है. इनके दर्शन-पूजन से पितर सूर्य लोक जाते हैं. समीप में स्थित पितामह शंकर के भी दर्शन किये जाते हैं.

जानें गयाजी की खास बातें

पितामह शंकर के भी दर्शन के बाद यहां से एक किलोमीटर दक्षिण दिशा में चल कर फल्गु के देवघाट के पास दक्षिण मानस के समीप पहुंचते हैं. इस तीर्थ में दक्षिण मानस सरोवर है, जिसके तट पर उदीची, कनखल एवं दक्षिण मानस वेदी पर श्राद्ध किया जाता है. यहां सूर्य मंदिर में सूर्य प्रतिमा के दर्शन किये जाते हैं. इससे पितर सूर्य लोक जाते हैं. तत्पश्चात फल्गु नदी के तट पर स्थित जिव्हालोल वेदी पर पिंडदान किया जाता है. इसके बाद गदाधर विष्णु भगवान के दर्शन करके उनको पंचामृत स्नान कराया जाता है. अंत में गदाधर विष्णु मंदिर से दक्षिण जाकर संकटा देवी के पास पितामह शंकर के दर्शन करते हैं.

तीसरे दिन प्रेतशिला व ब्रह्म सरोवर पर पिंडदान का विधान

अनादि काल से ही हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता रही है. धार्मिक व आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार जब तक मोक्ष नहीं होता, आत्माएं भटकती रहती हैं. इनकी शांति व शुद्धि के लिए गयाजी में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने की परंपरा अनादि काल से ही चली आ रही है. प्राचीन काल से वैसे तो यहां सालों भर पिंडदान का विधान है. लेकिन, प्रत्येक वर्ष आश्विन मास में अनंत चतुर्दशी से 17 दिवसीय त्रिपाक्षिक पितृपक्ष मेले का आयोजन होता आ रहा है. पितरों की प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए इस मेले के तीसरे दिन प्रेतशिला व इसके पास स्थित ब्रह्म सरोवर पर पिंडदान का विधान है.

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डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रेतशिला में किया पिंडदान

पितृपक्ष मेले में देश के विभिन्न राज्यों से आये डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रेतशिला व ब्रह्मसरोवर वेदी में पिंडदान का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में संपन्न किया. श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी अधिक रहने से काफी श्रद्धालु प्रेतशिला क्षेत्र के बाहर स्थित खेतों व मैदानी भागों में बैठ कर अपने पितरों के लिए पिंडदान का कर्मकांड पूरा किया. धार्मिक मान्यता है कि प्रेतशिला पर्वत पर पितर पिंडदान ग्रहण करने के लिए आने से इसे आत्माओं का पहाड़ भी कहा जाता है.

वृद्ध व लाचार पिंडदानी खटोले का लेते हैं सहारा

प्रेतशिला पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए वृद्ध व लाचार पिंडदानी खटोले का सहारा लेते हैं. इसके लिए आसपास के करीब डेढ़ सौ परिवार खटोले लेकर खड़े रहते हैं. पिंडदानियों की मांग पर 800 से 2000 रुपये तक प्रति यात्री किराये के रूप में लेते हैं. तब उन्हें खटोले से प्रेतशिला पर्वत की सबसे ऊंची चोटी तक लाने व ले जाने का काम करते हैं.

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