गयाजी में पितर के साथ आत्मपिंडम का भी है विधान, जानें यहां पिंडदान और तर्पण करना क्यों है जरूरी

Pitru Paksha 2022: गयाजी पितृपक्ष मेला में देश-विदेश से लोग पहुंचते है. यहां अपने पूर्वज की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते है. गयाजी में पितर के साथ आत्मपिंडम का भी विधान है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 12, 2022 9:11 AM
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कंचन/ गयाजी पितृपक्ष मेला में पितरों के लिए श्राद्धकर्म के विधान की परंपरा की पौराणिक गाथा है. आनंद रामायण में वर्णित है कि जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष वनवास काट कर अयोध्या लाटे, तो ब्राह्मणों ने दो कारणों से पहला तो यह कि उनके वनवास काल में राजा दशरथ की मृत्यु हो गयी थी, सो उनका उद्धार करना था और दूसरा यह कि कण्व ऋषि ने उनके यहां भोजन करने से मना कर दिया. कण्व ऋषि का कहना था कि रावण जैसे महान ज्ञानी व ब्राह्मण का भगवान राम ने वध किया. इसलिए, उन्हें ब्रह्महत्या का शाप लगा है. ऐसे में जब तक वे ब्रह्महत्या के शाप से मुक्त नहीं होते, उनके घर की रसोई का भोजन नहीं किया जा सकता है.

जानें सिता कुंड का महत्व

भगवान श्रीराम ने शाप से मुक्ति व पिता राजा दशरथ की सद्गति व उद्धार के बारे में जानकारी ली. तब उन्हें गयाश्राद्ध करने की बात बतायी गयी थी. ऐसी कथा है कि भगवान राम अपने नगर में प्रवेश करने से पहले ही वनवासी वेश-भूषा में ही माता सीता व साथ रहे भाई लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान से गयाजी आये. सीताकुंड के पास जहां पहले घना वन व पहाड़ी थी, वहीं पुष्पक विमान उतरा और पिंडदान-तर्पण कर न केवल पिताजी का उद्धार किया, बल्कि ब्रह्महत्या के शाप से मुक्त हुए.

गयाजी में आत्मपिंडम का भी विधान

पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध का विशेष महत्व है. कथा यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि भगवान श्रीराम के पहले से गयाजी में श्राद्ध का विधान था, तभी ऋषि, मुनियों ने उन्हें गयाजी में जाकर पिंडदान-तर्पण करने को बताया होगा. भगवान श्रीराम-सीता के द्वारा गयाजी में पिंडदान-तर्पण करने का वर्णन अन्य धर्मग्रंथों में भी मिलता है और किंवदंति है कि यहीं से इसकी शुरुआत मानते हैं. यहां अपने पितरों का श्राद्ध करने से प्राणी को जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल जाती है. इसलिए इसे मोक्षभूमि कहा जाता है. इससे भी बड़ी बात है कि गयाजी में आत्मपिंडम का भी विधान है.

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यहां पिंडदान और तर्पण करने का विधान

मसलन जीवित अवस्था में प्राणि अपना खुद का श्राद्धकार्य कर सकता है. गयाजी में जिस दिन भीमगया वेदी, गोखुर वेदी, गदालोल में पिंडदान व तर्पण के साथ मां मंगलागौरी का दर्शन का विधान है, उसी दिन मां मंगलागौरी मंदिर की बगल में स्थित पौराणिक जर्नादन मंदिर में आत्मपिंडम का विधान है. यहां आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि यानी इस वर्ष 22 सितंबर को जो लोग खुद का पिंडदान करेंगे, वह कर सकेंगे. यहां भी भगवान नारायण खुद जर्नादन रूप में विराजमान हैं.

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