गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला के दौरान गुरुवार से ही पिंडदान की प्रक्रिया शुरू हो गई है. वैसे तो पहले दिन पुनपुन तीर्थ में पिंडदान करने का महत्व है. लेकिन, जो तीर्थयात्री पुनपुन तीर्थ नहीं जा पाते है, वह गया के गोदावरी कुंड में पिंडदान करते हैं.
पिंडदान को लेकर गया के गोदावरी कुंड में तीर्थ यात्रियों का आना शुरू हो चुका है. यहां तीर्थ यात्री अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान कर रहे हैं.
स्थानीय पांडा शैलेश कुमार मिश्रा ने बताया कि पुनपुन तीर्थ, जो तीर्थयात्री नहीं जा पाते हैं, वह गया के गोदावरी कुंड में पितरों की मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान करते हैं. यहां दूर-दूर से आए तीर्थयात्री पिंडदान कर्मकांड कर रहे हैं. इसे पितरों का महीना भी माना जाता है, जिसमें पितर खुश रहते हैं.
बताया जाता है कि जो पुत्र अपने माता-पिता से नाराज भी रहता है, वह भी यदि इस महीने में गयाजी आए और फल्गु नदी के जल में उसका पैर पड़ जाए, तो भी पितरों को बैकुंठ वास होता है. ऐसे में गयाजी में पिंडदान करना सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.
वैसे तो पिंडदान कई दिनों का होता है. लेकिन, अपनी क्षमता के अनुसार लोग 17 दिन, 10 दिन, पांच दिन या एक दिन में भी पिंडदान कर्मकांड को पूरा करते हैं. प्रथम दिन पुनपुन या गया के गोदावरी कुंड में पिंडदान होता है. दूसरे दिन फल्गु नदी, तीसरे दिन प्रेतशिला पर्वत, इसी तरह से 17 दोनों का यह पिंडदान कर्मकांड होता है.
वहीं कोलकाता से आए तीर्थयात्री मनोज मोहंका ने बताया कि ऐसी जानकारी मिली कि गयाजी में श्राद्ध कर्मकांड अति पुण्य माना जाता है. इसी को लेकर माता- पिता की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आए हैं.
तीर्थ यात्री ने बताया कि जो कार्य माता-पिता के जीवित रहते हम नहीं कर पाए या जो कमी रह गई. उसे पूरा करने को लेकर श्राद्ध कर्मकांड कर रहे हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले.
यहां कई लोग अपने पितरों की मोक्ष की कामना और खुद की सांत्वना को लेकर पिंडदान कर रहे हैं.
गया में भारी संख्या में लोगों की भीड़ देखने को मिल रही है. गोदावरी कुंड में लोग पिंडदान कर रहे हैं.