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पितृपक्ष 2023ः यूक्रेन की महिला ने गया देवघाट पर किया पिंडदान, जानिए गया में पिंडदान का क्या है महत्व…

यूक्रेन और रूस में चल रहे युद्ध मे मारे गये लोगो का पिंडदान करवाने आयी है. इसके साथ ही उसने विश्वशांति की कामना भी की है.

यूक्रेन की रहने वाली विदेशी महिला ने शनिवार को बिहार के गया में देवघाट पर पिंडदान और तर्पण किया. महिला ने यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध में मारे गए सैनिकों और अन्य लोगो की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तथा तर्पण किया. पुत्र अपने दिवंगत माता-पिता के साथ अपने सभी पितरों, अर्थात अपने पूर्वज, ननिहाल व ससुराल तक की सभी दिवंगत आत्मा के नाम से पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि पुत्र द्वारा किए गए तर्पण व पिंडदान का पुण्य उनके पुरखों को मिलता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

सामूहिक पिंडदान की शास्त्रों में भी है चर्चा

इसके साथ ही गया में सामूहिक पिंडदान का शुरू से शास्त्र सम्मत विधान रहा है. इसी के तहत आज (7 अक्तूबर) को गया के विष्णुपद मंदिर क्षेत्र के देवघाट पर यूक्रेन की रहने वाली विदेशी महिला यूलिया ने यूक्रेन और रूस में युद्ध के दौरान मारे गये सैनिकों और अन्य यूक्रेन के नागरिकों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए देवघाट पर पिंडदान किया. इसके साथ ही उसने विश्व शांति की कामना भी किया.

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विदेशी महिला ने बताया क्यों किया पिंडदान

यूक्रेन की महिला यूलिया ने बताया कि यूक्रेन और रूस में चल रहे युद्ध मे मारे गये लोगो का आज हमने पिंडदान किया. इससे पहले मैंने पिछले वर्ष अपने माता पिता का यहां पर आकर पिंडदान किया था और विश्वशांति की कामना की थी. यूलिया , विदेशी महिला

विदेशी महिला ने किया पिंडदान

इधर, विदेशी महिला का पिंडदान करवाने वाले पुजारी लोकनाथ गौड़ ने बताया कि यह यूक्रेन की रहने वाली है और यह गयाजी में दूसरी बार आई है. पहली बार यह आई थी तो यह अपने माता पिता का पिंडदान किया था . इस बार यह यूक्रेन और रूस में चल रहे युद्ध मे मारे गये लोगो का पिंडदान करवाने आयी है. इसके साथ ही उसने विश्वशांति की कामना भी की है. लोकनाथ गौड़ -पुजारी

रुद्र व विष्णुलोक की प्राप्ति के लिए किया पिंडदान

गयाजी तीर्थ में 28 सितंबर से शुरू 17 दिवसीय पितृपक्ष श्राद्ध के नौवें दिन शुक्रवार को पितरों को रूद्र व विष्णु लोक की प्राप्ति की कामना को लेकर हजारों श्रद्धालुओं ने सूर्यपद, चंद्रपद, गणेशपद, संध्याग्निपद, आवसंध्याग्निपद व दधीची पद पर पिंडदान व श्राद्धकर्म किया. त्रिपाक्षिक श्राद्ध विधान के तहत देश के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालुओं ने शुक्रवार को विष्णुपद मंदिर प्रांगण के 16 वेदी मंडप स्थित सूर्यपद, चंद्रपद, गणेशपद, संध्याग्निपद, आवसंध्याग्निपद व दधीची पद वेदी स्थलों पर पिंडदान व श्राद्धकर्म का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में पूरा किया. भीड़ अधिक रहने से काफी श्रद्धालुओं ने देवघाट व अन्य जगहों पर भी बैठकर अपना कर्मकांड पूरा किया.

16 वेदी मंडप में स्तंभ के रूप में स्थित है

पंडाजी मणिलाल बारिक ने बताया कि आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि को 16 वेदी के सूर्यपद, चंद्रपद, गणेशपद, संध्याग्निपद, आवसंध्याग्निपद व दधीची पद वेदी स्थलों पर श्राद्ध विधान है. ये वेदियां 16 वेदी मंडप में स्तंभ के रूप में स्थित है. सबसे पहले गणेश पद वेदी पर पिंडदान का विधान है. यहां पिंडदान करने से पितरों को रूद्र लोक की प्राप्ति होती है. आवसंध्याग्नि पद वेदी पर श्राद्ध से पितर ब्रह्म लोक को प्राप्त करते हैं. संध्याग्नि व दधीची पद पर श्राद्ध से श्राद्धकर्ता को यज्ञ का फल प्राप्त होता है. चंद्र पद पर श्राद्ध से पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है


श्रीमद् भागवत कथा के साथ पिंडदान संपन्न

मानपुर के लखनपुर पंचायत के रसलपुर गांव में पिछले सात दिनों से चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के साथ अपने पूर्वजों का ग्रामीणों ने सामूहिक पिंडदान किया. इधर, रसलपुर में पिछले 30 सितंबर से अयोध्या से आये सुमन जी महाराज व सुश्री शिया ने अपने प्रवचन के अंतिम दिन गुरुवार की देर संध्या बताया कि कृष्ण-सुदामा की दोस्ती गुरुकुल में हुई. प्राचीन शिक्षा व्यवस्था अनोखी थी और एक ही साथ अमीर और गरीब का लड़का पढ़ सकता था. बहुत गरीब होने के बाद भी सुदामा कृष्ण के पास मांगने नहीं अपितु कर मुट्ठी तंदुल देने की भावना से गये थे. कार्यक्रम के अंतिम दिन रसलपुर गांव के ग्रामीण अपने 400 वर्ष पूर्व के पूर्वजों को याद कर उनके नाम से सामूहिक पिंडदान किया.

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