Pitru Paksha: पितृपक्ष में माता सीता ने यहां किया था दशरथ का पिंडदान, जानें उस जगह का नाम और महत्व
Pitru Paksha 2022: हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करें और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तथि को पितृपक्ष में विधिवत श्राद्ध और तर्पण करें.
पितृपक्ष इस साल 10 सितंबर से शुरू हो रहा है और 25 सितंबर को समाप्त होगा. मान्यता है कि हमारे पूर्वज पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी पर आते है और आशीर्वाद देते है. इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र में पिंडदान को उत्कृष्ट और महान कार्य बताया गया है. पितृपक्ष भादो माह के अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से शुरू होता है और अमावस्या तक रहता है. पितृपक्ष को महालया पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है.
गयाजी में माता सीता ने किया था पिंडदान
पितृपक्ष के दौरान देश में कई जगहों पर पिंडदान करने की मान्यता है. हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थान हैं जहां पर श्रद्धापूर्वक पिंडदान करने से पूर्वज को मोक्ष मिल जाता है. लेकिन गया में पिंडदान करने का महत्व अधिक बताया जाता है. गयाजी में पिंडदान करने का जिक्र रमायण में भी किया गया है. गयाजी में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान भगवान राम ने भी किया है. कहा जाता है कि माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गयाजी में पिंडदान किया था. मान्यता है कि एक परिवार से कोई एक ही ‘गया’ करता है. गया करने का मतलब होता है, गया में पितरों को पिंडदान करना.
जानें गयाजी में पिंडदान करने का महत्व
गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्ग जाने के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं. मान्यता है कि गया भगवान विष्णु का नगर है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. इसकी चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी की गयी है. विष्णु पुराण के अनुसार गया में पिंडदान करने से पूर्वज को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं. मान्यता है कि स्वयं विष्णु भगवान यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए गयाजी को ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है. माना जाता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना सबकुछ अधूरा है. पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से शुरू होती है. ऐसे में पिंडदान प्रतिपदा से किया जाता है, लेकिन पूर्णिमा से भी कई लोग पिंडदान करने लगते हैं.
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