भागलपुर: जिले के थाना और ओपी में करीब तीन हजार से ज्यादा बड़ी-छोटी गाड़ियां जब्त है. अब इन वाहनों में पचास प्रतिशत से वाहन ऐसे हैं, जो नीलामी के लायक नहीं है. थाने में रही लोगों की संपत्ति पर अब घास पतवार भी उग गये है. सड़क किनारे लावारिश हालत में रहने से कई वाहनों के पाट्रर्स भी गायब है. पिछले कई सालों से थाना में लगी वाहनों की नीलामी नहीं हुई है. वजह इस प्रक्रिया की जटिलता को बताया जा रहा है.
थाने में जब्त वाहनों की असल संख्या क्या है. इसकी जानकारी के लिए पूर्व एसएसपी आशीष भारती ने आंकडा बनाने का आदेश दिया था. साथ ही कहा गया था की पुराने रिकार्ड को अपडेट कर नये जोड़े. यह आदेश सभी थानेदार को दिया गया था. इसके बाद एसएसपी आशीष भारती का तबादला हो गया. फिर इस आदेश का क्या हुआ, इसकी जानकारी देने वाला कोई नहीं है .
थानों में रखी जब्त व लावारिस वाहनों को सुरक्षित रखने के लिए सेंट्रल यार्ड बनाने का प्रस्ताव दिया गया. गृह विभाग की आरक्षी शाखा के सचिव जितेंद्र श्रीवास्तव ने डीएम को पत्र लिख कर जमीन उपलब्ध कराने के लिए कहा था. यार्ड बनाने के लिए दो से पांच एकड़ सरकारी भूमि की जरूरत थी . इसके बाद जमीन की खोज शुरू हुई. पर यार्ड बनाने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो पायी. अन्य कई योजना की तरह यह योजना भी आखिरी सांस ले रहा है .
पटना उच्च न्यायालय ने 25.02.2022 को दिये आदेश में कहा था की थाना जब्त वाहनों के नाम पर सड़क से अतिक्रमण को हटाएं. जो जब्त वाहन है, उसे इस तरह से रखे, जिससे किसी को परेशानी नहीं हो. इसके बाद गृह विभाग ने बैठक कर हर जिले में सेंट्रल यार्ड बनाने का निर्णय लिया था. सभी थाने की जब्त वाहनों को यही रखा जाना था, जिससे सड़क पर जाम की स्थिति नहीं हो .
पुलिस थाना के अंदर जब्त वाहनों को रखना अब लगभग छोड़ ही दी है. बाइपास के समीप रोजाना कभी सड़क हादसा तो कभी वाहन सीधे रोड़ को छोड़ खाई में चली जाती है. दोनों परिस्थिति में पुलिस वाहन को जब्त कर लेती है. इसके बाद वाहन को लेकर थाना पुलिस नहीं आती है. घटनास्थल पर ही वाहन को छोड़ दी जाती है. इसका असर यह होता है की क्षतिग्रस्त वाहनों को देख दूसरे वाहनों में बैठै यात्री भी भय में आ जाते है. उनके दिमाग में यह आता है की यह दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्र है. बच के रहना है. वहीं क्षतिग्रस्त वाहनों की वजह से सड़क भी सकरी हो रही है साथ ही इसकी खूबसूरती पर भी ग्रहण लग रहा है .
थाना में वाहनों को जब्त करने के बाद पुलिस धारा 102 के तहत अपने रिकॉर्ड में रखती है. नीलामी की शर्त अलग-अलग मामलों में अलग-अलग होती है. नीलामी लायक वाहनों की सूची केस नंबर के साथ थाना कोर्ट में जाकर कोर्ट में देती है. इसके बाद कोर्ट के आदेश पर नीलामी हो सकती है . आदेश के बाद एसडीओ की अध्यक्षता में एक कमेटी बनती है. इसके बाद नीलामी प्रक्रिया शुरू होती है.
मालखाना प्रभार देने की प्रक्रिया काफी जटिल है .कभी-कभी इसे पूरा करने में सालों लग जाता है . जब तक यह प्रक्रिया पूरी होती है, थानेदार बदल जाते हैं. वहीं कई दारोगा, थानेदार मालखाना का प्रभार लेने और देने में सस्पेंड तक हो चुके हैं. आपराधिक या दुर्घटना के मामलों में जब्त वाहनों के केस को सुलझाने में सालों लग जाते हैं. जब तक केस चलता है, तब तक केस से संबंधित वाहन को सबूत के रूप में रखना होता है. जांच खत्म होने के बाद ही वाहनों को नियमानुसार छोड़ा जा सकता है. वहीं नीलामी के अधिकारी से लेकर थानेदार तक रूचि नहीं लेते है. वजह यह प्रक्रिया जटील होना बताया जाता है .