PMCH में 1.16 करोड़ का गबन, अस्पताल में रजिस्ट्रेशन करने वाली एजेंसी पैसा और मरीजों का डाटा लेकर भागी

PMCH में 1.16 करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि मरीजों का रजिस्ट्रेशन करने वाली कंपनी पैसा और मरीजों का डाटा लेकर फरार हो गयी है. इसे लेकर अस्पताल प्रबंधन के द्वारा एफआईआर दर्ज कराया गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 2, 2022 11:38 AM

PMCH में 1.16 करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों के रजिस्ट्रेशन करने वाली एजेंसी आरजी स्वाफ्टवेयर एंड सिस्टम द्वारा एक करोड़ 16 लाख 92 हजार रुपये का गबन करने का मामला प्रकाश में आया है. इस संबंध में पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ आइएस ठाकुर ने एजेंसी के संचालक राकेश कुमार के खिलाफ पीरबहोर थाने में प्राथमिकी दर्ज करा दी है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि एजेंसी ने मरीजों के रजिस्ट्रेशन से मिले एक करोड़ 16 लाख 92 हजार रुपये अस्पताल के अधीक्षक कार्यालय में जमा नहीं किये. बताया जाता है कि राकेश कुमार के खिलाफ पीरबहोर थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 409 के तहत मामला दर्ज किया गया है. प्राथमिकी के बाद पीरबहोर थाना पुलिस मामले की जांच में जुटी है. इससे जुड़े कागजात खंगाले जा रहे हैं.

पैसे के साथ ही मरीजों का डाटा भी एजेंसी के पास

एजेंसी का कार्यालय डाकबंगला चौराहे के पास फ्रेजर रोड में नारायण पैलेस में है. एजेंसी को पीएमसीएच में मरीजों के रजिस्ट्रेशन की जिम्मे दारी दी गयी थी. साथ ही, यह समझौता हुआ था कि प्रतिदिन मरीजों से रजिस्ट्रेशन से मिलने वाली राशि को सरकारी कोष में जमा कर देना होगा. लेकिन, एजेंसी ने जुलाई, 2017 से लेकर मई, 2020 तक रजिस्ट्रेशन से मिली राशि और उसके रिकॉर्ड को जमा नहीं किया. करीब 34 माह की राशि एक करोड़ 16 लाख रुपये होती है, जिसे लेकर एजेंसी गायब है. साथ ही मरीजों का डाटा भी अपने साथ ले गयी है.

बार-बार कहने पर भी नहीं लौटायी राशि

इस संबंध में पीएमसीएच प्रशासन की ओर से 12 अक्तूबर, 2022 को रजिस्ट्रेशन की राशि और सारा रिकॉर्ड लौटाने के लिए पत्र भी भेजा गया था. लेकिन, उस पत्र का एजेंसी ने जवाब तक नहीं दिया. इसके बाद प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. खास बात यह है कि कोरोना के मरीजों का डाटा भी एजेंसी के पास ही था, क्योंकि उनका रजिस्ट्रेशन भी एजेंसी ने किया था. लेकिन, इस मामले में यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि करीब 22 माह बाद प्राथमिकी क्यों दर्ज करायी गयी? जबकि पहले ही एजेंसी के खिलाफ में मामला दर्ज करा कर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी.

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