26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सहज सामाजिक जीवन पर भी कही जा सकती है कविता, पटना में प्रबुद्ध लोगों से रू-ब-रू हुए अशोक वाजपेयी

पटना में फिर से साहित्यिक गतिविधियों की शुरुआत सुखद है. गुरुवार को लंबे अरसे बाद कवि, साहित्यकार व आलोचक अशोक वाजपेयी भी पटना पहुंचे. उन्होंने अपने जीवन व साहित्य की यात्रा के बारे में पटना के लेखकों, साहित्यकारों व प्रबुद्ध लोगों के समक्ष संस्मरण साझा किये.

पटना. कवि, आलोचक व साहित्यकार अशोक वाजपेयी का कहना है कि साधारण और सहज सामाजिक जीवन पर भी कविता कही जा सकती है. यह बात कवियों को समझना होगा. उन्होंने अपने रचना काल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे समय में लेखन की स्वतंत्रता थी और स्वतंत्रता का भाव भी था. कभी हमसे राष्ट्रवाद का सबूत नहीं मांगा गया. वाजपेयी गुरुवार को बीआइए सभागार में पटना के साहित्यकारों व प्रबुद्ध लोगों से रू-ब-रू थे. वह अशोक यात्रा के क्रम में यहां पहुंचे हैं. उनसे अपूर्वानंद ने संवाद किया.

हमारा परिवार मध्यवर्गीय था

कार्यक्रम का आयोजन पुनश्च के साथ कोशिश, हिंदी विभाग पटना विश्वविद्यालय, इप्टा, तक्षशिला एजुकेशनल सोसाइटी और सेतु प्रकाशन ने मिलकर किया था. अशोक वाजपेयी ने कहा कि जब साहित्य में चलना शुरू किया था तब समझ थी कि समाज में साहित्य की कुछ जगह है. रास्ता तय नहीं होता, रास्ता चलने वाला खुद बनाता है. हमारा परिवार मध्यवर्गीय था. साहित्य से बहुत जुड़ाव नहीं था. मैं तो मूलत: विज्ञान का विद्यार्थी था. मुझे 13 वर्ष की उम में समझ आ गया कि मैं ऐसी दुनिया में जा रहा हूं, जहां मुझे बार-बार बताया जायेगा कि साहित्य से बढ़िया काफी कुछ है.

कॉलेज में अध्यापकों से काफी कुछ सीखा

अशोक वाजपेयी ने अपनी साहित्यिक यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें सागर स्थित मेरे कॉलेज का बहुत बड़ा याेगदान है. वहां के अध्यापकों से काफी कुछ सीखा. कॉलेज में सुविधाएं कम थीं, लेकिन पुस्तकालय काफी समृद्ध था. वहां खूब किताबें पढ़ीं, ताकि बड़े शहराें के छात्रों से साहित्य के क्षेत्र में कहीं से पीछे नहीं रहे. इसमें उन्होंने कहा कि नामवर जी कहते थे कि साहित्य एक संस्थाहै, लेकिन ज्यादातर लोग इसे चलाते नहीं गिराते रहते हैं. सागर में बीए की पढ़ाई के दौरान हमने रचना नाम की संस्था बनायी थी. नयी दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज जाने पर अंग्रेजी से सामना हुआ. हिंदी बोलने वाले मिलते नहीं थे. ऐसे में कनॉट प्लेस जैसी जगहों पर हम कुछ हिंदी वाले मिलते और हिंदी साहित्य पर खूब चर्चा करते थे.

नौवीं कक्षा में जवाहर लाल नेहरू को लिखा पत्र

उन्होंने बताया कि मैंने नौवीं कक्षा में ही जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था कि आप लोगों को युद्ध नहीं करना चाहिए था. सबसे सुखद बात कि नेहरू जी ने मुझे जवाब भी भेजा. उन्होंने लिखा कि आपको अभी अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. बचपन में हमलोग नेहरू से बहुत प्रभावित थे. जब वहहमारे पुस्तकालय का उद्घाटन करने सागर आये तो मैंने पहली बार जीवन में इतना सुंदर पुरुष देखा. उन्होंने कहा कि 1957 में एक साहित्यिक सम्मेलन में देश भर के तमाम बड़े साहित्यकार पहुंचे थे. पहली बार रेणु जी को देखा. इसमें एक व्यक्ति जब नागार्जुन से ऑटोग्राफ लेने गया तो उन्होंने लिखा कि बुजुर्गों को आराम कुर्सी पर बैठाओ छाती पर नहीं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें