अरुण कुमार, पूर्णिया. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) मैदान में न होती तो शायद राजग को इतनी आसानी से सत्ता की चाबी नहीं मिल जाती. यही वजह है कि 2020 में एआइएमआइएम ने जब पांच सीटों पर जीत हासिल की थी तब राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा था कि अगर सीमांचल में एआईएमआईएम न होता तो शायद राज्य की राजनीति कुछ और होती.
ओवैसी की वजह से ही राजद सत्ता की दहलीज पर पहुंचते-पहुंचते रह गयी थी. ठीक दो साल बाद सीमांचल की राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है.असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के पांच विधायकों में से चार के शामिल होने से सीमांचल का समीकरण बदल सकता है. ओवेसी के विधायकों के पाला बदलने के बाद से सीमांचल के सियासी महकमे में सरगर्मी तेज हो गयी है.
गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीमांचल के कद्दावर नेता मो. तस्लीमुद्दीन की मौत के बाद मुस्लिम का कोई बड़ा सेक्यूलर चेहरा नहीं रहा. राजद के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक हाजी अब्दुस सुबहान एनडीए की हवा में पहले ही विधानसभा फिर विधान परिषद का चुनाव हार गये. सीमांचल का इलाका कांग्रेस के बाद राजद का गढ़ बना हुआ था. पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भी राजद की जमीन बरकरार रह गई थी.
एआइएमआइएम को छोड़ कर राजद का दामन थामने वाले चारों विधायक राजद बैकग्राउंड से आते हैं. जोकीहाट विधायक मो शहनवाज आलम दिवंगत तस्लीमुद्दीन के पुत्र हैं, जिनकी छवि अपने पिता की तरह बनी हुई है. इससे पहले वे राजद की टिकट पर ही विधायक रह चुके हैं. इस दफा राजद से टिकट नहीं मिलने के कारण एआइएमआइएम से चुनाव लड़े और जीत गये. इसी तरह जिले के बायसी के विधायक सैयद रुकनुद्दीन अहमद सेकुलर पहचान वाले दिवंगत सैयद मोइनुद्दीन के पुत्र हैं, जो अस्सी के दशक में बायसी सीट से ही कई सत्रों तक कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.