राजदेव पांडेय, पटना. कारोबारी सुगमता यानी ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में बेहतरी के लिए बिहार में 1200 कानून बदले जा सकते हैं. मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज डिपार्टमेंट के तहत काम करने वाली प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्रीज एंड इंटरनल ट्रेड ने बिहार सरकार को ऐसे कानूनों की सूची सौंपी है.
बिहार सरकार इन कानूनों पर अपनी राय भी रखेगी. हालांकि, सैद्धांतिक तौर पर कारोबारी सुगमता में बाधक कानूनों को खत्म करने के लिए राज्य सरकार सहमत है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय एजेंसी की तरफ से सर्वे के बाद समाप्त करने योग्य कानून करीब दो दर्जन विभागों के हैं.
उद्योग विभाग को इसकी नोडल एजेंसी बनाया गया है. हालांकि, केंद्र की तरफ से समाप्त करने योग्य सुझाये गये 1200 कानूनों में राज्य सरकार कुछ संशोधन भी कर सकती है. इसलिए खत्म करने योग्य कानूनों की संख्या घट भी सकती है.
इन कानूनों की अब विभागवार छंटनी की जा रही है. हाल ही में केंद्रीय विभागों के मुख्य सचिवों से देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों से संवाद करके इज आॅफ डूइंग बिजेनस में अनावश्यक कानूनों को खत्म करने पर विमर्श किया था.
केंद्रीय एजेंसी के आधिकारिक सू्त्रों के मुताबिक राज्य अगर कारोबारी सुगमता के लिए इन अनावश्यक कानूनों को पूरी तरह खत्म करता है तो केंद्रीय सरकार राज्य सरकार को उसकी जीडीपी की कुल दो फीसदी राशि उपलब्ध करायेगी.
जानकारों के मुताबिक यह राशि करीब 1632 करोड़ रुपये होगी. हालांकि, राज्य सरकार ने कारेाबारी सुगमता के लिए कई कदम उठाये हैं, उसे देखते हुए करीब एक फीसदी राशि मिलने वाली है.
जानकारों के मुताबिक कारोबारी सुगमता के लिए न केवल उद्योग व्यापार, बल्कि बिजली, भूमिकर, राजस्व और दूसरे विभागों के कई कानून अब अाउट ऑफ ट्रेंड हो गये हैं. कुछ कानून तो 19वीं शताब्दी तक के हैं. उनमें इतनी औपचारिकताएं हैं कि उन्हें पूरा करने के लिए अफसरशाही और बाबूगिरि से कारोबारियों को दो-चार होना पड़ता है.
केंद्र ने बिहार में इज ऑफ लिविंग सिटीजन इंटरफेस सिस्टम के जरिये न केवल कारोबारी सुगमता, बल्कि सिटीजन सेवाओं की औपचारिकताओं को भी खत्म किया जा रहा है. इसे बिहार में दो चरणों में प्रभावी किया जायेगा. सिटीजन सेवाओं में जन्म प्रमाणपत्र से लेकर पासपोर्ट, जाति प्रमाणपत्र और दूसरे दस्तावेज बिना कार्यालय गये उपलब्ध कराये जाने की योजना है.
Posted by Ashish Jha