EXCLUSIVE: एक किलोमीटर सड़क नहीं बनने से उजड़ गया बिहार के भागलपुर का लकड़ा गांव, दंग कर देगी ये हकीकत..
भागलपुर का एक गांव ऐसा भी है जहां कोई ना तो अपनी बेटी देना चाहता और ना ही उस गांव से किसी मरीज को इमरजेंसी हालत में एंबुलेंस भी नसीब है. और इस सबके पीछे की वजह है एक किलोमीटर सड़क. जिसके नहीं बनने से पूरा लकड़ा गांव ही उजड़ गया.
भागलपुर के लकड़ा गांव से लौटकर संवाददाता ब्रजेश माधुर्य लिखते हैं…
एक सूचना मिली थी कि लकड़ा नाम के एक गांव को छोड़ कर बारी-बारी से लोग पिछले कुछ वर्षों से दूसरे गांवों में बसने के लिए जा रहे हैं. इसकी पड़ताल करने जब प्रभात खबर के संवाददाता ब्रजेश माधुर्य निकले तो उनका सामना हैरान कर देने वाली कई हकीकत से हुआ. इस गांव में कई लड़कियों के रिश्ते तक टूट चुके हैं. गांव से दो से तीन किलोमीटर दूर ही गाड़ी खड़ी करनी पड़ती है.एक किलोमीटर सड़क के लिए पूरा गांव ही उजड़ चुका है.
खटिया पर बूढ़ी महिला मरीज को ले जाते दिखे
भागलपुर जिला अंतर्गत गोराडीह के सारथ डहरपुर पंचायत से गुजरते हुए आगे बढ़ा, तो एक नदी मिली, कोकरा. यहां बैठे एक किसान ने बताया कि ”मोटरसाइकिल ऊ पार नै जैथों, पैदले जाय पड़थौं”. मैंने बाइक वहीं खड़ी की और कोकरा नदी (फिलहाल सूखी हुई) पार कर लकड़ा गांव की ओर खेतों से होकर जाने लगा. कुछ दूर आगे चला. देखा कि खटिया पर एक बूढ़ी महिला मरीज को दो लोग गांव ले जा रहे हैं. पूछने पर पता चला कि वह काफी बीमार हैं और उन्हें इलाज करा गांव ले जा रहे हैं. यहीं से इस बात की आशंका होनी शुरू हो गयी कि आखिर गांव में लोग अपने घर-बार व खेत बेच कर दूसरे गांव क्यों जाने लगे हैं. पढ़िये इस गांव की पूरी कहानी.
98 लोगों ने बेच दिये घर, पैसा रहते नहीं बना रहे पक्का मकान
हम 21वीं सदी में हैं और बात मंगल ग्रह पर बसने-बसाने तक की हो रही है. लेकिन, भागलपुर जिले का एक ऐसा भी गांव है, जहां के लोग एक अदने से रास्ते के लिए तरस रहे हैं. रास्ता नहीं मिलने से बुजुर्गों का बसा-बसाया गांव पूरी तरह से ऊजड़ गया है. 125 घर-परिवारों से भरे-पूरे गांव में अब महज 27 घर बचे हैं. जितने घर-परिवार बचे हुए हैं, उसमें से सभी इस बात से भयभीत हैं कि उन्हें भी दूसरों की तरह घर-द्वार बेच कर गांव से कहीं बाहर जाना न पड़ जाये. इस कारण पैसा रहते कोई पक्का मकान तक नहीं बना रहा. तीन परिवार ने पक्का मकान बनाने की हिम्मत जुटायी, तो उसमें से एक पूरा कर सका है. बाकी दो परिवार ने यह मान कर मकान का काम अधूरा छोड़ दिया है कि आगे चल कर पैसों की बर्बादी होगी, क्योंकि गांव छोड़ कर जाना ही है.
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गांव में कोई अपनी लड़की देना नहीं चाहते, कई लड़कियों के रिश्ते टूटे
गांव में कोई बीमार पड़ जाये, तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कठिनाई भरी डगर होती है. खाट पर चार कंधों के सहारे बहियार के रास्ते एक से डेढ़ किलोमीटर पैदल चल कर ले जाना पड़ता है. रास्ते के अभाव में बीमार लोगों में से कई की जान तक चली गयी है. हल्की बारिश में लोगों के सामने गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है. इस गांव में कोई अपनी लड़की देना नहीं चाहते हैं. कई लड़कियों के रिश्ते टूट चुके हैं. पैसा तक लौट चुका है. पूछने पर स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यह समस्या वर्षों से बनी हुई है, लेकिन इस पर न तो जनप्रतिनिधि और न ही अधिकारी ध्यान दे रहे हैं.
लकड़ा गांव जाने के लिए पैदल रास्ता
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भड़ोखर गांव की ओर से : 01 किमी ( पैन नदी में पानी नहीं रहने पर )
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भयगांव की ओर से : 01 किमी (नदी में पानी नहीं रहने पर)
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चकदरिया की ओर से : 03 किमी
एक नजर में लकड़ा गांव
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गांव में थे घर-परिवार : 125
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घर बेच कर गांव छोड़ने वाले : 98
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गांव में बचे हुए घर : 27
क्यों नहीं बन रही सड़क
गांव के चारों ओर निजी जमीन है. सरकारी जमीन के नाम पर पैन नदी पर एक बांध है. बांध पर एक किलोमीटर सड़क बनने से यह समस्या दूर हो जायेगी.
Posted By: Thakur Shaktilochan