अनिकेत त्रिवेदी, पटना. काम करने या करवाने के बदले रिश्वत की लेने में लिपिक, राजस्व कर्मचारी, अभियंता और थानेदार सबसे अधिक आगे हैं. अगर इनमें भी तुलना की जाये, तो विभिन्न विभागों के कार्यालय में विभिन्न वर्ग के लिपिक रिश्वत लेने के मामले में टॉप पर दर्ज किये जायेंगे.
दरअसल, निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की ओर इस वर्ष से लेकर अब तक की गयी कार्रवाई में अधिकतर मामलों के इन्हीं पदों के कर्मचारी व अधिकारी निगरानी के ट्रैप केस में फंसे हैं. निगरानी ने इस वर्ष एक जनवरी से लेकर 18 अगस्त तक 23 मामलों में ट्रैप केस के माध्यम से कार्रवाई की है.
इसमें आधा दर्जन केवल विभिन्न वर्ग के लिपिक ही हैं. इसके अलावा तीन पुलिस अधिकारी, तीन राजस्व कर्मचारी और पांच के लगभग विभिन्न वर्ग के सरकारी अभियंताओं पर रिश्वत लेने के आरोप में कार्रवाई की गयी है. वहीं, इन कर्मचारियों की रिश्वत लेने की राशि औसत रूप से दस हजार से लेकर डेढ़ लाख रही है.
विभिन्न पदों के सरकारी कर्मचारियों के अलावा जनप्रतिनिधि भी रिश्वत लेने के मामले में पकड़े गये हैं. निगरानी की रिपोर्ट बताती है कि इस वर्ष बेगूसराय के मैदा बभनगामा पंचायत के मुखिया मनोज कुमार चौधरी को दस हजार घूस लेते रंगे हाथ पकड़ा गया था, जबकि बीते वर्ष चार से अधिक मुखिया रिश्वत लेने के मामले में पकड़े गये थे.
इसमें पूर्वी चंपारण की टिकुलिया पंचायत के मुखिया कामेश्वर एक लाख 50 हजार, भोजपुर जिले की सरना पंचायत के मुखिया संजय कुमार सिंह 63 हजार, पश्चिमी चंपारण की डुमरी मुराडीह पंचायत के मुखिया नरसिंह बैठा 16 हजार, सीतामढ़ी के राज मदनपुर के मुखिया लाल बाबू पासवान दो लाख की रिश्वत लेते पकड़े जा चुके हैं.
ट्रैप केस के दौरान अधिकतम 60 दिनों के भीतर निगरानी को चार्जशीट फाइल करना होता है. इस वर्ष अब तक कुल 23 ट्रैप केस में 16 केस में निगरानी ने चार्जशीट निगरानी कोर्ट में फाइल कर दिया है.
निगरानी की कार्रवाई रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष रिश्वत लेने के मामले बीते वर्ष की तुलना में बढ़े हैं. रिपोर्ट के अनुसार एक वर्ष 18 अगस्त तक रिश्वत लेने के 23 मामलों में ट्रैप केस के माध्यम से कार्रवाई की गयी है.
इस दौरान कुल 12 लाख 28 हजार तीन सौ रिश्वत की राशि मौके पर पकड़ी गयी है. वहीं, बीते वर्ष जनवरी से लेकर दिसंबर माह तक 22 मामले ट्रैप केस के माध्यम पकड़े गये थे. इस दौरान 12 लाख 15 हजार पांच सौ की राशि रंगे हाथ पकड़ी गयी थी.
Posted by Ashish Jha