दिसंबर तक तय की है डेडलाइन

पूर्णिया : वर्ष 2017 के दिसंबर तक पूर्णिया जिला को कालाजार से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है. अगर ऐसा होता है तो कालाजार प्रदेश के रूप में कभी चर्चित रहे पूर्णिया के लिए यह बड़ी बात होगी. लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकारी स्तर पर कवायद भी जारी है. कालाजार विभाग के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 12, 2017 4:49 AM

पूर्णिया : वर्ष 2017 के दिसंबर तक पूर्णिया जिला को कालाजार से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है. अगर ऐसा होता है तो कालाजार प्रदेश के रूप में कभी चर्चित रहे पूर्णिया के लिए यह बड़ी बात होगी. लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकारी स्तर पर कवायद भी जारी है. कालाजार विभाग के सूत्रों के अनुसार अब तक जिले के 14 प्रखंडों में से 11 प्रखंडों में उन्मूलन का लक्ष्य पूरा हो चुका है. शेष तीन प्रखंडों में कालाजार उन्मूलन के लिए सघन छिड़काव अभियान चलाया जा रहा है.

पहले दौर का छिड़काव इस वर्ष पूरा भी हो चुका है और दूसरा छिड़काव इस माह होने की संभावना है. कालाजार उन्मूलन हेतु जिला स्तर एवं प्रखंड स्तर में समुचित इलाज की व्यवस्था की गयी है. बताया जाता है कि वर्ष 2010 में कालाजार के 2238 रोगी थे. जिनमें 8 की मौत हुई थी. वहीं वर्ष 2016 में कालाजार के रोगी में अप्रत्याशित कमी आयी और घट कर 237 हो गयी. साथ ही हाल फिलहाल इस रोग से किसी की मौत नहीं हुई. इस वर्ष अब तक कुल 221 रोगियों की पहचान कर ली गयी है.

154 वीएल और 67 पीकेडीएल मरीज की पहचान : वैक्टरजनित रोग नियंत्रण कार्यालय के पदाधिकारी डा सीएम सिंह के अनुसार इस वर्ष जनवरी से अगस्त माह तक कुल 154 वीएल कालाजार मरीज और 67 पीकेडीएल मरीज की पहचान की गयी. पीकेडीएल अर्थात पोस्ट कालाजार डर्मल लिसमेनिएसिस से ही कालाजार फैलता है. यह बीमारी भंडार का काम करता है. इसकी तत्परतापूर्वक खोज के बाद रोगी की जांच की जाती है. इसकी जांच स्किन स्निफ स्मोर टेस्ट के अंतर्गत सदर अस्पताल में की जाती है. इस रोग में रोगी के चमड़े में कई जगह चकत्ते हो जाते हैं.
ऐसे फैलता है कालाजार
कालाजार धीरे-धीरे विकसित होने वाला एक देशी रोग है जो एक कोशीय परजीवी या जीनस लिस्नमानिया से होता है. कालाजार के बाद डरमल लिस्नमानियासिस (पीकेडीएल) एक ऐसी स्थिति है जब लिस्नमानिया त्वचा कोशाणुओं में जाते हैं और वहां रहते हुए विकसित होते हैं. यह डरमल लिसियोन के रूप में तैयार होते हैं. कई कालाजार में कुछ वर्षों के उपचार के बाद पीकेडीएन प्रकट होते हैं. इस रोग में बुखार अक्सर रुक-रुक कर या तेजी से आता है. भूख न लगना, पीलापन और वजन में कमी जिससे शरीर में कमजोरी आने लगती है.
सिंगल डोज से किया जा रहा इलाज
जिले के अमौर, बनमनखी, धमदाहा एवं सदर अस्पताल में कालाजार के रोगी का इलाज सिंगल डोज से किया जा रहा है. शेष सभी प्रखंडों में इलाज के जिउ मल्टी फोसेन 10 मिलीग्राम एवं 50 मिलीग्राम की गोली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध है. सिंगिल डोज के अंतर्गत कालाजार के रोगी को मात्र एक सूई एमबीसोम लगायी जाती है और एक दिन में छुट्टी दे दी जाती है.
मौत का आंकड़ा
वर्ष चिन्हित रोगी मरनेवाले रोगी
2010 2238 8
2011 2232 1
2012 1387 0
2013 764 1
2014 517 0
2015 389 0
2016 237 0
2017 221 0
छिड़काव से हुआ लाभ
कालाजार के रोकथाम हेतु डीडीटी छिड़काव के जगह अब एसपी छिड़काव का प्रयोग किया जा रहा है. लोगों के घरों में रंगीन दीवार पर भी दाग नहीं लगने के कारण छिड़काव करने से लोग नकारते नहीं है. इस छिड़काव से कालाजार का बालू मच्छर के साथ अन्य हानिकारक कीड़े भी मारे जाते हैं. इसका लाभ देखा जा रहा है. मलेरिया पदाधिकारी श्री सिंह के अनुसार इस साल किये जाने वाला पहल चरण का छिड़काव पूरा हो चुका है. अगस्त माह में दूसरी बार छिड़काव होना था, लेकिन बाढ़ की वजह से वह पूरा नहीं हो सका है. उम्मीद है कि इस माह पूरी हो जायेगी.

Next Article

Exit mobile version