पूर्णिया : काया हड्डी का ढांचा. पेट हंडी की तरह फूला हुआ. सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी. ऐसा लग रहा था मानो अब वह इस दुनिया को अलविदा कह देगा. उसकी यह हाल बनायी थी भूख ने. उसके पिता की माली हालत इतनी खराब थी कि दो दिन पर एक जून की रोटी उस मासूम को नसीब होती थी.
उस 11 वर्षीय बच्चे का नाम है सोने लाल हांसदा. उसके पिता ताला हांसदा की बेबसी यह है कि वह अपने कलेजे के टुकड़े को दोनों वक्त की रोटी नहीं दे पाया, लिहाजा वह अत्यंत कुपोषण का शिकार हो कर मरनासन्न हो गया. जब यह खबर वायरल हुई तो हड़कंप मच गया. इतना ही नहीं स्थानीय लोगों के सहयोग से बच्चे को सदर अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र ले जाया गया, जहां बच्चे के इलाज के एवज में कर्मियों द्वारा पांच सौ रुपये की मांग की गयी.
उसकी मां के पास रुपये नहीं होने से वह बच्चे को लेकर वापस बनमनखी अपने घर आ गयी. यह सूचना यूनिसेफ कर्मियों को मिलते ही आनन-फानन में एंबुलेंस लेकर कुपोषण के शिकार बच्चे के गांव गया और वहां से बच्चे को इलाज के लिए सदर अस्पताल लाया गया, जहां बच्चे का इलाज चल रहा है. यूनिसेफ के प्रबंधक राघवेंद्र कुमार ने बताया कि बच्चे का प्रारंभिक जांच किया जा रहा है. यदि बच्चे का इलाज यहां संभव नहीं हो पाया तो उसे पटना स्थित एक्सीलेंस सेंटर इलाज के लिए भेजा जायेगा.
परिवार के चारों सदस्य कुपोषण के शिकार
प्रखंड के सरसी थाने के मसुरिया निवासी ताला हांसदा खुद व उसकी पत्नी कुपोषण का शिकार है. इस वजह से वह अपने पुत्र सोना व परिवार के लिए दाे वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रही है. लिहाजा दो दिन पर एक टाइम भोजन कर वह जीवन जी रही है. यही कारण है कि सोना अत्यंत कुपोषण का शिकार हो गया. यह बात उस समय सामने आयी जब जीविका के लोग कुपोषित बच्चों के सर्वे को पहुंचे थे.