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पूर्णिया : 27 साल से सहेज कर रखा है पत्नी का अस्थिकलश

परिजनों को कह रखा है कि मरने पर पत्नी का अस्थिकलश उनकी अर्थी के साथ जाये पूर्णिया : पर्व चाहे वट सावित्री का हो या फिर तीज का अमूमन हर महिला अपने पति के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम का इजहार करती हैं. हालांकि पति भी ऐसी ही भावनाएं रखते हैं पर ऐसा बहुत कम […]

परिजनों को कह रखा है कि मरने पर पत्नी का अस्थिकलश उनकी अर्थी के साथ जाये

पूर्णिया : पर्व चाहे वट सावित्री का हो या फिर तीज का अमूमन हर महिला अपने पति के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम का इजहार करती हैं. हालांकि पति भी ऐसी ही भावनाएं रखते हैं पर ऐसा बहुत कम सुनने को मिलता है कि पति ने भी अपनी पत्नी के प्रति श्रद्धा और प्रेम का इजहार किया हो.

मगर, पूर्णिया में एक ऐसे बुजुर्ग हैं जिनकी पत्नी नहीं हैं पर वे अंतिम सांसे भी पत्नी के साथ ही लेना चाहते हैं. वे पिछले 27 सालों से पत्नी की अस्थियों को इसी चाहत के लिए सहेज कर रखे हुए हैं. चाहत सिर्फ इतनी है कि जीवन की अंतिम यात्रा में पत्नी की अस्थियां उनके कलेजे से सटी रहें.

यह कहानी है साहित्यकार भोलानाथ आलोक की : जी हां, वे बुजुर्ग हैं कवि, साहित्यकार भोला नाथ आलोक जिन्हें लोग पूर्णिया के अन्ना के रूप में भी जानते हैं पर बहुत कम लोगों को पता है कि सुख-दुख में हमदर्द बनने वाले भोलानाथ आलोक के सीने में भी एक दर्द दफन है.

वह दर्द है पत्नी की असमय मृत्यु का, जिसके प्रति उनका प्यार आज भी आंसुओं के रूप में छलक पड़ता है. सन् 1947 में उनकी शादी तब हुई थी जब देश आजाद हुआ था.

तब उनकी उम्र काफी कम थी पर पद्मा रानी से परिणय सूत्र में बंधने के बाद साथ जीने साथ मरने के वायदे एक-दूसरे से किये थे. पत्नी पद्मा पूजा-पाठ में काफी विश्वास रखती थीं. जिंदगी बड़ी संजीदगी से कट रही थी. भरा-पूरा परिवार था. घर में खुशहाली भी थी. करीब 27 साल पहले पत्नी बीमार पड़ीं और चल बसीं. श्री अालोक पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, परंतु वे अपनी जिम्मेदारियों का निष्ठा से निर्वाह किया.

पत्नी के िनधन का नहीं भूल पाये गम, यादों को रखा जीवंत

अपने जीवन की बानगी बयां करते-करते श्री आलोक सिसक पड़ते हैं. वे कहते हैं कि पत्नी के साथ छोड़ जाने का गम वे नहीं भूल पाये. उनकी यादें साथ रहें और साथ जीने साथ मरने के वायदे याद रहें, यह सोच कर उनकी अस्थियों की राख को अंत्येष्टि के तुरंत बाद कलश में समेट लिया था.

उन अस्थियों की राख को उन्होंने आज तक अपने कैंपस में आम के पेड़ पर सहेज कर रखा है. बच्चों और परिवार के सभी सदस्यों को यह कह रखा है कि जब उन्हें मौत आये तो यह अस्थिकलश भी उनके कलेजे से सटा हुआ अंतिम यात्रा में जाये. रूंधे हुए स्वर में श्री आलोक कहते हैं कि साथ भले ही नहीं जी सका पर साथ मरने का सुकून तो जरूर मिलेगा.

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