बदल गयी किसानों की तकदीर

पूर्णिया: जिले के करीब दर्जन भर गांवों के लोगों की सब्जी की खेती से तकदीर बदल गयी है. कल तक कच्चे घरों में रहने वाले लोग अब पक्के घरों में रहने लगे हैं. उनके खेतों में कल तक भाड़े का पंपसेट एवं ट्रैक्टर आता था अब खुद के ट्रैक्टर से खेती करने लगे हैं. गांव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2015 10:38 AM

पूर्णिया: जिले के करीब दर्जन भर गांवों के लोगों की सब्जी की खेती से तकदीर बदल गयी है. कल तक कच्चे घरों में रहने वाले लोग अब पक्के घरों में रहने लगे हैं. उनके खेतों में कल तक भाड़े का पंपसेट एवं ट्रैक्टर आता था अब खुद के ट्रैक्टर से खेती करने लगे हैं. गांव के किसान जब से सब्जी खेती करने लगे हैं तब से उनकी तकदीर भी बदलने लगी है. हर परिवार के रहन-सहन में बदलाव आया है और धीरे-धीरे कच्चे मकानों की जगह पक्के मकान बनने लगे हैं. यही नहीं कुछ वर्षो पहले तक भाड़े के पंपसेट से सिंचाई तथा भाड़े के ट्रैक्टर से खेतों की जुताई कराने वाले कई किसानों के यहां अपना ट्रैक्टर दरवाजे पर दिखने लगा है तथा खेतों में पंपसेट स्थायी हो गया है. अकेले चांदी बारी में 200 परिवार पक्का मकान में रहते हैं. सब्जी की खेती से लगातार लाभकारी मूल्य प्राप्त होने से जीवन स्तर बदलने के साथ-साथ गांव के बच्चे अच्छे शिक्षण संस्थान में पढ़ रहे हैं.

साइकिल की सवारी करने वाले किसान अब मोटर साइकिल से बाजार जाने लगे हैं. खेतों में तैयार सब्जी को बाजार भेजने के लिए छोटे चार पहिया वाहनों की समस्या भी अब नहीं रही. सब्जी की खेती करने वाले किसानों ने बैंकों से छोटी व्यावसायिक गाड़ी भी ले लिया है.

मिश्रित खेती के प्रचलन से बढ़ी आमदनी

सब्जी उत्पादक किसानों द्वारा जहां पहले एक खेत में एक ही सब्जी लगायी जाती थी, वहीं पिछले दो तीन वर्षो से मिश्रित खेती के प्रचलन से किसानों की आमदनी भी बढ़ गयी है. सब्जी उत्पादक किसान खेतों में जहां एक फसल तैयार होने के पहले ही दूसरे फसल का बीज बो देते हैं. वहीं अब किसानों द्वारा जमीनी फसल के साथ खेतों में मचान बना कर लत्तीदार सब्जी का उत्पादन साथ साथ किया जाने लगा है. जिससे किसानों की आमदनी में इजाफा हुआ है.

पड़ोसी देश और बंगाल में भी डिमांड

चांदीवाड़ी, रानीपतरा गांव की सब्जियों के सप्लाई जिले से बाहर भी होते हैं. किसानों की माने तो पड़ोसी देश नेपाल, बंगाल के सिलीगुड़ी, रायगंज के सब्जी व्यवसायी गांव से ही थोक भाव में सब्जी खरीद कर ले जाते हैं. फलत: सब्जी उत्पादक किसानों को घर के दरवाजे पर ही उत्पाद की कीमत मिल जाती है. वहीं अब कुछ किसानों द्वारा अपनी गाड़ी से बंगाल के बाजारों में पहुंचा कर अच्छी कमाई की जाने लगी है.

किन-किन सब्जियों की होती है खेती

सब्जी की खेती की जाने वाले गांवों में आलू, गोभी, कद्दू, भिंडी, परवल, करैला, बैंगन, खीरा, हरा मिर्च की खेती बड़े पैमाने पर होती है साथ-साथ लाल साग, हरा साग, धनिया पत्ता, मूली, पालक साग की खेती भी होती है. हरा मिर्च की खेती करने वाले किसान ग्यासुद्दीन बताते हैं कि इस बार कश्मीरी मिर्च की खेती का भी प्रयास करने की सोच लोगों ने बनायी है. सब्जियों के फसल चक्र के ज्ञान से पूर्ण किसानों द्वारा इस प्रकार से सब्जी उगाये जाते हैं कि एक फसल तैयार होने से पूर्व ही दूसरे प्रकार की सब्जियों के बोआई का कार्य शुरू हो जाता है, जिससे खेत कभी खाली नहीं रहता.

कहते हैं किसान

चांदी वाड़ी के किसान महेंद्र भगत बताते हैं कि मेरे पास थोड़ी सी जमीन थी. परिवार की माली हालत खराब थी. उधार के बीज से तथा खुद से खेत तैयार कर सब्जी की खेती की थी. आज करीब दो बीघा में सब्जी का खेती कर रहा हूं. खुद का पंपसेट है. ट्रैक्टर खरीदने की तैयारी कर रहा हूं. अब पूरा गांव सब्जी का खेती करने में जुट गया है. सब्जी की खेती करने वाले राजवली महतो, योगेंद्र कुशवाहा बताते हैं कि शुरुआती दौर में थोड़ी कठिनाई हुई थी अब खेती आसान लगने लगा है. दरवाजे पर खरीदार पहुंचे जाते हैं. बच्चे इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ने जाते हैं. अब तो अगल-बगल के कई गांवों में सब्जी की खेती शुरू हो गयी है. गांव में पहले ट्रैक्टर नहीं था. अब करीब आधा दर्जन लोगों के पास ट्रैक्टर है.

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