देश प्रेम के जज्बे ने इंजीनियर से बनाया लेफ्टिनेंट

पूर्णिया: देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री ली और जानी-मानी कंपनी विप्रो में बतौर इंजीनियर पदस्थापित भी हुए. लेकिन देश प्रेम का जज्बा और कुछ कर गुजरने की तमन्ना बार-बार अंतर्मन को कुछ हट कर करने को प्रेरित करती रही. अंतत: 13 महीने की नौकरी के बाद पूर्णिया के बेटे कुणाल एस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 17, 2015 8:34 AM
पूर्णिया: देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री ली और जानी-मानी कंपनी विप्रो में बतौर इंजीनियर पदस्थापित भी हुए. लेकिन देश प्रेम का जज्बा और कुछ कर गुजरने की तमन्ना बार-बार अंतर्मन को कुछ हट कर करने को प्रेरित करती रही.
अंतत: 13 महीने की नौकरी के बाद पूर्णिया के बेटे कुणाल एस नायर ने विप्रो की नौकरी को अलविदा कहा और संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) में दस्तक दी. दो वर्ष के प्रशिक्षण के बाद अब कुणाल 16 डोगरा रेजीमेंट के अधिकारी हैं और जम्मू घाटी में उनकी तैनाती की गयी है. जहां तीन जुलाई से उनके संकल्प और देश सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की अग्नि परीक्षा होगी.
देश प्रेम ने खींच लाया सीडीएस में : विप्रो से त्याग पत्र देने के बाद कुणाल सीडीएस की परीक्षा की तैयारी में जुट गया. दरअसल बचपन से ही कुणाल के मन में सेना की वरदी पहनने की तमन्ना थी. परिस्थिति वश पहले दौर में उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई. लेकिन ऐसा भी वक्त आया जब कुणाल ने अपनी मन की बात सुनी और यह जज्बे और दृढ़ इच्छा शक्ति का ही परिणाम था कि उसे सीडीएस में वर्ष 2013 में सफलता मिली. 13 जून 2015 को देहरादून में आयोजित पासिंग आउट परेड के बाद उन्हें अधिकारी का दर्जा मिला. अपनी सफलता पर कुणाल कहते हैं कि ‘खुली आंखों से जो सपना देखा था वह हकीकत में तब्दील हुआ’. कुणाल की सफलता पर दादी सावित्री नायर, चाचा सत्येन शरत नायर, शशि शरत नायर, चाची नीता नायर, भाई अभिषेक नायर, बहन आद्या नायर, यश नायर और प्रिया नायर फूले नहीं समा रहे हैं.
नहीं भायी इंजीनियर की नौकरी
नवरतन निवासी ओमशरत नायर और श्यामश्री शरत के एक मात्र पुत्र कुणाल ने प्रारंभिक शिक्षा पूर्णिया में ली. वहीं कक्षा तीन से आठ तक की शिक्षा डीपीएस पटना और आगे बारहवीं तक की पढ़ाई डीएवी भुवनेश्वर से प्राप्त की. बारहवीं के बाद कुणाल ने एमिटी यूनिवर्सिटी से वर्ष 2012 में इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक किया. हैदराबाद स्थित विप्रो कंपनी में ऊंची पगार की नौकरी भी मिल गयी. लेकिन कुणाल का मन भटकता रहा और अंतत: 13 महीने की नौकरी के बाद उसने त्याग पत्र दे दिया.

Next Article

Exit mobile version