शुक्र है, गीता का हिंदुस्तान उसके पास है
पूर्णिया : हुसैन कासिम कच्छी जो झारखंड के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं, इन दिनों निजी कारणों से पूर्णिया के दौरे पर हैं. श्री कच्छी वही हैं जो कराची के एधी फाउंडेशन में वर्षों से रह रही भारतीय बेटी गीता से सबसे पहले पाकिस्तान जाकर मिलने वालों में शामिल थे. इसके बाद वे कई बार […]
पूर्णिया : हुसैन कासिम कच्छी जो झारखंड के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं, इन दिनों निजी कारणों से पूर्णिया के दौरे पर हैं. श्री कच्छी वही हैं जो कराची के एधी फाउंडेशन में वर्षों से रह रही भारतीय बेटी गीता से सबसे पहले पाकिस्तान जाकर मिलने वालों में शामिल थे.
इसके बाद वे कई बार कराची में गीता से मिले. हम वतन होने के कारण गीता का श्री कच्छी से कुछ इस तरह के रिश्ते कायम हुए जिसे वे ताउम्र भुलाना नहीं चाहते. श्री कच्छी ने प्रभात खबर से अपने जज्बातों को साझा करते हुए कहा कि ‘मेरा गीता के साथ बाप-बेटी का रिश्ता है. मैं उस दिन उससे मिला जब उसका हिंदुस्तान उसके पास नहीं था.
शुक्र है कि गीता का हिंदुस्तान अब उसके पास है.’ क्या है एधी फाउंडेशन एधी फाउंडेशन के प्रणेता मौलाना अब्दुल सत्तार एधी हैं, जो कराची में अपना फाउंडेशन चलाते हैं. सामाजिक कार्यकर्ता एधी मानव सेवा से जुड़े हैं और पूरे पाकिस्तान में उसके हजारों आश्रय गृह हैं.
इतना ही नहीं उनके पास दो हजार से अधिक सड़क एंबुलेंस और तीन एयर एंबुलेंस हैं. बमुश्किल हस्ताक्षर करने वाले एधी को सात विभिन्न विश्वविद्यालयों ने डि लीट की उपाधि से नवाजा है. उनकी पत्नी विलकिस समाजसेवा के कार्य में कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं. पूजा के साथ रोजा भी रखती थी गीता गीता तब सलमा थी जब पाकिस्तान रेंजर ने सीमा पर करीब 12 वर्ष पूर्व बरामद किया था. उसके बाद उसे एधी फाउंडेशन को सौंप दिया गया.
सलमा के हाव-भाव कई अन्य आदतें मसलन ईश्वर में अगाध आस्था, मांसाहार सेवन से दूरी इस बात के संकेत दे रहे थे कि सलमा हिंदू है. अंतत: विलकिस ने उसका नाम गीता रख दिया. गीता के पूजा-पाठ के लिए बकायदा एक पूजा घर बना डाला गया. खास बात यह है कि गीता न केवल पूजा-पाठ में लीन रहती थी बल्कि रमजान के महीने में रोजा भी रखती थी.
हालांकि वह नमाज अदा नहीं करती थी. कैसे हुई गीता की वतन वापसी गीता के बारे में सबसे पहले पत्रकार चांद नवाब ने अखबार में लिखा. उसके बाद एक चर्चित टीवी शो जिसके होस्ट पाकिस्तान के बहुचर्चित शख्स अमीर लियाकत अली खान थे, में विलकिस ने गीता का परिचय सार्वजनिक किया.
इसके बाद ही कबीर खान ने गीता से प्रेरित होकर फिल्म बजरंगी भाई जान की कहानी लिख डाली. श्री कच्छी ने बताया कि जिस दिन बजरंगी भाई जान एधी फाउंडेशन में दिखाया जा रहा था, गीता फफक कर रो पड़ी. वजह साफ थी कि फिल्म में गीता की कहानी ही दिखायी गयी थी. अब सेलिब्रिटी बन चुकी है गीता वजह चाहे जो भी रही हो,
गीता प्रकरण जिस तरह भारत और पाक में सुर्खियां बनी, उसके बाद गीता सेलिब्रिटी बन चुकी है. गीता अपने तथाकथित पिता जनार्दन महतो को अब पहचानने से इंकार कर चुकी है, जबकि गीता ने तसवीर देखकर जनार्दन महतो को ही अपना पिता माना है. बहरहाल वह इंदौर में एक सामाजिक संस्था के हवाले है.
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि गूंगी और बहरी लेकिन तीक्ष्ण बुद्धि की गीता जनार्दन महतो को क्या इसलिए पिता के रूप में पहचानी थी कि वह अपने वतन वापसी चाहती थी. बहरहाल सवाल कई हैं, जिसका सवाल भविष्य के गर्भ में है. फोटो: 1 पूर्णिया 4परिचय: हुसैन कासिम कच्छी.