विकास की बात, जाति पर चरचा
अजीत, पूर्णिया प्रत्याशियों द्वारा जन संपर्कअभियान परवान पर है तो जनता भी अब मुखर होने लगी है. लेकिन खास बात यह है कि मतदाता अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है. विकास की बातें चल रही है तो जातिगत समीकरण पर भी हार-जीत के कयास लगाये जा रहे हैं. जिले की सात विस सीटों में […]
अजीत, पूर्णिया
प्रत्याशियों द्वारा जन संपर्कअभियान परवान पर है तो जनता भी अब मुखर होने लगी है. लेकिन खास बात यह है कि मतदाता अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है. विकास की बातें चल रही है तो जातिगत समीकरण पर भी हार-जीत के कयास लगाये जा रहे हैं. जिले की सात विस सीटों में चार विस सीट पर इस बार भी प्रतिद्वंदी पुराने ही हैं, हालांकि दल बदल गया है. कोई बागी हो गये हैं, तो कोई दूसरे दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
विगत पांच वर्षों में पूर्णिया सबसे अधिक राजनीतिक उथल-पुथल का गवाह रहा है. उपचुनाव में स्व केसरी की विधवा किरण केसरी भाजपा के टिकट पर निर्वाचित हुई. अब श्रीमती केसरी बेटिकट हैं और भाजपा ने विजय खेमका पर भरोसा जताया है. वहीं महागंठबंधन प्रत्याशी जिला कांग्रेस अध्यक्ष इंदू सिन्हा बनायी गयी है. जअपा के अरविंद कुमार साह भोला भी मैदान में खड़े हैं तो गत चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे रामचिरत्र यादव बतौर निर्दलीय प्रत्याशी और सपा के कर्नल अक्षय यादव कड़ी चुनौती दे रहे हैं.
इसी विधानसभा क्षेत्र के चिमनी बाजार दरगाह टोला में एक जगह कुछ लोग बैठे राजनीतिक बहस में मशगूल थे. मो इसराफिल ने कहा ‘ आप हमारे हालात देख सकते हैं. न सड़क है और न ही बिजली है. कई रहनुमा आये, लेकिन इस इलाके की तसवीर नहीं बदली. हमने हर किसी को मौका दिया, लेकिन हमारे साथ किसी ने वफा नहीं की. इसलिए इस बार सोच-समझ कर ही वोट डालेंगे ‘. बातचीत में ही पता चला कि यहां वर्ष 2010 में रोड और बिजली की मांग को लेकर वोट का बहिष्कार किया गया था. इन बीते पांच वर्षों में विकास के नाम पर कोई तब्दीली नजर नहीं आ रही है.
हां इतना जरूर हुआ है कि बिजली के खंभे गड़ चुके हैं लेकिन बिजली आज भी नदारद है. फिर हस्तक्षेप करते हुए मो हारूण ने कहा ‘ लेकिन इस बार वोट का बिहष्कार नहीं करेंगे, उम्मीदों पर खड़ा उतरे ऐसा जनप्रतिनिधि चुनेंगे ‘. इसी मुहल्ले में कुछ युवाओं से मुलाकात हुई. अमिता चौधरी ने कहा ‘ हमें हमेशा उपलब्ध रहने वाला नेता चाहिए. चहारदीवारियों के बीच रहने वाले लोगों से मिलना भी मुश्किल होता है ‘. वहीं विनय चौधरी ने कहा ‘ साहब, कार्यकर्ताओं को टिकट कहां मिलता है. अब तो टिकट की नीलामी होती है.
उधर,अमौर में पिछले चुनाव के प्रतिद्वंद्वी फिर आमने-सामने हैं. फर्क इतना है कि एक एनडीए तो दूसरा महा गंठबंधन प्रत्याशी है. बहुचर्चित ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशी नवाजीस आलम उर्फ मिस्टर भी चुनाव मैदान में है. वहीं तीसरा मोरचा में यहां दोस्ताना संघर्ष होगा. एनसीपी के शाहबुज्जमा और जनअधिकार पार्टी के बाबर आजम आमने-सामने होंगे. इसके अलावा बीएसपी के नसीम अख्तर और लोकदल के प्रेमनाथ भगत भी ताल ठोंक रहे हैं. यह मुसलिम बहुल इलाका है और यहां इसके दो समुदाय कुल्हैया और सूरजापुरी की अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा रही है.
बायसी विधान सभा की राजनीतिक फिजां बदली-बदली हुई है. गत चुनाव के विजेता संतोष कुशवाहा अब जदयू कोटे से पूर्णिया के सांसद हैं. श्री कुशवाहा के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे हाजी अब्दुस सुबहान उपचुनाव 2014 में विधायक निर्वाचित हुए हैं. वहीं एनडीए प्रत्याशी के रूप में रालोसपा के अजीजुर्रहमान मैदान में है. एआईएमआईएम ने गुलाम सरवर को प्रत्याशी बनाया है. वहीं जनअधिकार पार्टी के मो रूकनुद्दीन मैदान में हैं. ऐसे में यहां मुकाबला जोरदार होगा.
कसबा में कांग्रेस बनाम भाजपा की लड़ाई हमेशा से चलती रही है. ऐसे में सामाजिक समीकरण के आधार पर वोटों की गोलबंदी कोई भी गुल खिला सकती है. बहरहाल मुकाबला सीधा माना जाता है लेकिन एनसीपी किसी भी दल का खेल बिगाड़ सकती है.
बनमनखी में वर्ष 2000 से ही यहां भाजपा प्रत्याशी जीत रहे हैं. यहां रोजगार के लिए पलायन स्थायी समस्या है. महा गंठबंधन ने बिल्कुल नये खिलाड़ी को मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा के पूर्व विधायक देवनारायण रजक बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ सकती है. वहीं जअपा प्रत्याशी हरि लाल दास महा गंठबंधन प्रत्याशी के लिए परेशान का सबब बन सकता है. लिहाजा त्रिकोणीय मुकाबला से इनकार नहीं किया जा सकता है.
उग्रवाद और नक्सल के लिए चर्चित रहे रूपौली विधान सभा क्षेत्न में इस बार बागियों की भरमार है. राज्य की काबीना मंत्नी बीमा भारती वर्ष 2000 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रही है. वहीं भाजपा ने नये चेहरा परमानंद मंडल को मैदान में उतारा है.
गत विधान सभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे पूर्व विधायक शंकर सिंह इस बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में है. वहीं जअपा ने किरण सिंह निषाद को मैदान में उतारा है. लिहाजा त्रिकोणीय मुकाबला की संभावना नजर आ रही है. हालांकि अंतिम समय में मतों का ध्रुवीकरण यहां की खास पहचान है. ऐसे में मुकाबला सीधा और परिणाम चौंकाने वाला हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
धमदाहा असली चुनावी महाभारत का नजारा यहां देखने को मिल रहा है. सभी दलों में सबसे अधिक बगावत का झंडा यही लहरा रहा है. राज्य की काबीना मंत्नी लेसी सिंह यहां महागंठबंधन उम्मीदवार है. लिहाजा यहां हॉट सीट मानी जा रही है. वहीं एनडीए से यह सीट रालोसपा खाते में गयी है जिसके उम्मीदवार शिवशंकर ठाकुर उर्फ शिव शंकर झा आजाद है.
वहीं जअपा ने पूर्व विधायक दिलीप कुमार यादव को उम्मीदवार बनाया है. तहमूल हुसैन अब झामुमो प्रत्याशी हैं तो ज्योति रानी और निरंजन कुशवाहा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में खड़े हैं. इनमें से दिलीप यादव, तहमूल हुसैन, निरंजन कुशवाहा और ज्योति रानी बतौर बागी प्रत्याशी मैदान में हैं.