सूर्य को समर्पित है मकर संक्रांति का पर्व

सूर्य को समर्पित है मकर संक्रांति का पर्व प्रतिनिधि, पूर्णिया नाम अनेक, लेकिन निहितार्थ एक, अर्थात मकर संक्रांति का पर्व. उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत पूरे देश में मकर संक्रांति मनायी जाती है. यह अलग बात है कि इसके नाम अलग-अलग होते हैं. उत्तर भारत में मकर संक्रांति अथवा तिल संक्रांति तो पंजाब में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2016 6:56 PM

सूर्य को समर्पित है मकर संक्रांति का पर्व प्रतिनिधि, पूर्णिया नाम अनेक, लेकिन निहितार्थ एक, अर्थात मकर संक्रांति का पर्व. उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत पूरे देश में मकर संक्रांति मनायी जाती है. यह अलग बात है कि इसके नाम अलग-अलग होते हैं. उत्तर भारत में मकर संक्रांति अथवा तिल संक्रांति तो पंजाब में लोहड़ी और दक्षिण भारत में पुंगल के रूप में यह पर्व मनाया जाता है. इस दिन सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इस उपलक्ष्य में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. इस त्योहार का मूल उद्देश्य सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना है. इस लिहाज से इसे सूर्य उपासना का भी पर्व कह सकते हैं. यूं भी सूर्य की महत्ता सर्वविदित है, क्योंकि इसकी उपासना से दैहिक, दैविक और भौतिक ताप का विनाश होता है. संक्रांति का आशय है प्रस्थान संक्रांति का शाब्दिक अर्थ प्रस्थान या स्थानांतरण होता है. चूंकि सूर्य इस दिन दक्षिणायन से उत्तरायण होता है, इसीलिए इसे संक्रांति कहते हैं. गौरतलब है कि कुल 12 राशियां हैं. सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है, उसी के नाम से संक्रांति जाना जाता है. सूर्य की स्थिति के अनुसार वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बंटा होता है, जो छह-छह माह का होता है. जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण और जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायन कहा जाता है. धार्मिक दृष्टिकोण से उत्तरायण का खास महत्व है. कहते हैं कि महाभारत युद्ध में भीष्म पितामाह ने तब तक अपना प्राण त्याग नहीं किया, जब तक सूर्य की स्थिति उत्तरायण नहीं हो गयी. तिल का है संक्रांति में खास महत्व तिल का महत्व मकर संक्रांति में खास होता है. सूर्य देवता धनु राशि से निकल कर मकर राशि में संक्रांति के दिन प्रवेश करते हैं. मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं. इसलिए शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्रांति के दिन किया जाता है. इसके अलावा तिल और गुड़ पौष्टिक होने के साथ-साथ शरीर को गर्म भी रखता है, जो मौसम के लिहाज से लाभदायक है. खिचड़ी व दही-चूड़ा की प्रधानता मकर संक्रांति के अवसर पर यूं तो तिल किसी न किसी रूप में पूरे देश में खाया जाता है, लेकिन मिथिला के इलाके में खिचड़ी के अलावा चूड़ा-दही की भी प्रधानता रहती है. खिचड़ी अगहनी चावल और उड़द की दाल की बनायी जाती है. इसकी वजह यह है कि इस समय यह फसलें तैयार होती है. सूर्य देवता को अर्पित कर सूर्य के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया जाता है. मिथिला के इलाके में इस मौके पर चूड़ा और मूढ़ी की लाई भी बनायी जाती है. इसके अलावा तिल का लड्डू और तिलकुट की भी प्रधानता रहती है. कुल मिला कर मकर संक्रांति प्रगति, सामाजिक एकता और समरसता का पर्व है. इस दिन से सूर्य की किरणें तेज होने लगती है और पृथ्वी पर समस्त जीवों को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करती है. फोटो:- 14 पूर्णिया 04परिचय:- तिल का लड्डू.

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