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तूफान का नाम सुन कांप जाती है लोगों की रूह

चक्रवाती तूफान के एक साल. वह कयामत की रात थी, बोले तूफान प्रभावित : ताउम्र याद रहेंगे जख्म 21 अप्रैल 2015 की काली रात पूिर्णयावासियाें के लिए काल बन कर आयी थी. चक्रवाती तूफान ने कइयों को अपनों से जुदा कर दिया था. पूर्णिया : 21 अप्रैल 2015 की वह मनहूस रात, पूर्णिया के इतिहास […]

चक्रवाती तूफान के एक साल. वह कयामत की रात थी, बोले तूफान प्रभावित : ताउम्र याद रहेंगे जख्म

21 अप्रैल 2015 की काली रात पूिर्णयावासियाें के लिए काल बन कर आयी थी. चक्रवाती तूफान ने कइयों को अपनों से जुदा कर दिया था.
पूर्णिया : 21 अप्रैल 2015 की वह मनहूस रात, पूर्णिया के इतिहास में अमंगल रात के रूप में सदा के लिए दर्ज हो चुकी है. मनहूस इसलिए कि जीवन रक्षक हवा ही जब मौत का पैगाम ले कर आ जाये तो क्या कहना. अमंगल इसलिए कि खूनी चक्रवाती तूफान ने 33 जिंदगी लील ली. किसी ने अपनी पत्नी को खोया, तो कोई विधवा हुई और नियति के क्रूर पंजे ने भाई को बहन से जुदा कर दिया. बेलारिकाबगंज के रमेश यादव की पत्नी भगवती देवी, बायसी की खुटिया पंचायत के फिनुसलाल राय, झुन्नी कला के रवींद्र महतो ऐसे कई नाम हैं जो अपने परिजनों को ऐसा दर्द देकर दुनिया छोड़ चुके हैं,
जो उम्र भर टीस देती रहेगी. बुजुर्गों की मानें तो बीते 75 साल में बरबादी का ऐसा मंजर देखने को नहीं मिला था. नतीजा यह है कि अब जब भी तूफान आने की संभावना जतायी जाती है, लोगों के रूह कांप उठते हैं. डगरूआ के कोहिला गांव के 65 वर्षीय मो. इब्राहिम कहते हैं कि ‘ पूछिये मत, उस वक्त तो ऐसा ही लग रहा था कि कयामत की रात है. 25 मिनट के उस क्षणों में सिर्फ तबाही ही तबाही नजर आ रही थी’. अब जबकि एक वर्ष बीत चुके हैं, जिन्हें चक्रवाती तूफान दर्द की सौगात दे गया, आज भी उनके जख्म भरे नहीं हैं और उस मनहूस रात को याद कर उनकी आंख नम हो जाती हैं.
साथ निभाने के वादे रह गये अधूरे : डगरूआ के फूलपुर की फरहत परवीन(21 वर्ष) ने दो माह के मासूम बेटे नेहाल के साथ अस्तित्व के संघर्ष में सारी ताकत झोंक दी. लेकिन वह मासूम के साथ अपनी भी जिंदगी भी हार गयी. मां की ममता ऐसी कि जब दूसरे दिन मलवे से लाश निकाली गयी तो नेहाल अपनी मां की गोद में चिपका हुआ था. दरअसल जब तूफान आया तो फरहत अपने बच्चे को लेकर पलंग के नीचे छुप गयी. लेकिन बदकिस्मती की घर का छत टूट कर पलंग के उपर आ गिरा और मां-बेटे ने दम तोड़ दिया. पति परवेज महज तीन दिन पहले पंजाब कमाने के लिए गया था. मो परवेज उस मनहूस रात को याद कर कहते हैं कि ‘ जन्म-जन्म का साथ निभाने का वादा अधूरा ही रह गया. मुआवजे की राशि से घर तो बन रहा है, लेकिन परिवार की कमी आज भी महसूस होती है ‘ .
लोगों को टीस देता रहेगा उस काली रात का दर्द कइयों के पति, पिता, पत्नी व बच्चे ने तोड़ा था दम
तूफान आपदा के एक वर्ष पूरे होने पर विशेष
डगरूआ प्रखंड के मालोबिटा निवासी मो फकीरूद्दीन को 21 अप्रैल 2015 की रात का वह खौफनाक मंजर आज भी याद है. बेदर्द हवा ने उसकी बीबी असमीना खातून उर्फ लखिया और एक वर्षीय बेटे मुंतसीर की जान ले ली थी. बड़ी मुश्किल से तब फकरूद्दीन और उसके दो बेटी की जान बची थी. फकरूद्दीन ने बताया कि ‘ घर के पिछवाड़े में खड़ा तार का पेड़ जड़ से उखड़ कर उसके टीन के बने घर पर गिर गया. तार के पेड़ की चपेट में असमीना आ गयी.
उसने बेटे मुंतसीर को गोद में लेकर भागने की कोशिश की, लेकिन सब बेकार रहा. तेज आंधी के बीच मैं अन्य बच्चों के साथ तमाशबीन बना रहा. तार के पेड़ के चपेट में आकर वह चीख भी नहीं सकी ‘ . बताया कि वह खुद बुरी तरह जख्मी हो गया था. जबकि उसकी तीन वर्षीया बेटी राहत परवीन इसलिए सुरक्षित रह गयी कि वह मिट्टी के टाट के नीचे दब कर रह गयी थी. मुआवजे के मिले 08 लाख रूपये से अब टीन के छप्पर की जगह अब मकान बन चुके हैं. लेकिन उस मकान में न तो असमीना चहलकदमी करती नजर आती है और न ही मुंतसीर की तुतली आवाज ही फकरूद्दीन को सुनने को मिलती है.

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