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हर साल डूब जाते हैं सैकड़ों गांव

आपदा. बायसी में कहर बरपाती हैं महानंदा, कनकई व परमान नदियां महानंदा, कनकई व परमान नदियां बायसी प्रखंड के लगभग एक सौ गांवों में हर वर्ष कहर बन कर आती है. पूर्णिया/बायसी : नुमंडलवासियों के लिए कटाव और उसके बाद विस्थापन नियति बन चुकी है. अब तक लगभग दो दर्जन से अधिक गांव इन नदियों […]

आपदा. बायसी में कहर बरपाती हैं महानंदा, कनकई व परमान नदियां

महानंदा, कनकई व परमान नदियां बायसी प्रखंड के लगभग एक सौ गांवों में हर वर्ष कहर बन कर आती है.
पूर्णिया/बायसी : नुमंडलवासियों के लिए कटाव और उसके बाद विस्थापन नियति बन चुकी है. अब तक लगभग दो दर्जन से अधिक गांव इन नदियों के गर्भ में समा चुकी हैं. हजारों लोग विस्थापित जीवन जीने को बाध्य हैं. प्राय: कटावरोधी कार्य कराया जाता है. लेकिन समस्या जस की तस बनी रहती है. यहां के लोगों को बाढ़ व कटाव से निजात दिलाने का कोई स्थायी उपाय प्रशासन की ओर से नहीं है. लिहाजा कल के किसान आज मजदूर बन कर जी रहे हैं.
इन गांवों में रहता है बाढ़ व कटाव का खतरा : प्रखंड के चोपड़ा पंचायत के गुढ़ियाल, सिमलबाड़ी घाट, टिक्करटोला, चरैया पंचायत के भसिया, चरैया यादव टोली, भटिया टोली, पुरानागंज पंचायत के नवाबगंज पोखरिया, बनगामा पंचायत के बनगामा, मड़ुआ, मजलिसपुर, लेलूका, खुटिया, गांगर, घोष, चहट, पानीसदरा, हाथीबंधा,
बड़ा रहुआ समेत लगभग एक सौ से अधिक गांव हर वर्ष बाढ़ एवं कटाव के जद में रहता है. इन में से मड़वा एवं गुढ़ियाल की स्थिति अत्यन्त दयनीय है. गुढ़ियाल गांव में कनकई ने कई टोलों को लील लिया है. इन टोलों के विस्थापित सिमलबाड़ी -चरैया मार्ग में सड़क के किनारे अपना नया आशियाना बना कर रह रहे हैं. वहीं मड़वा के लोग उर्बा धार के आस पास ऊंचे स्थानों में घर बना कर रह रहे हैं. बाढ़ व कटाव का दंश झेल रहे इन गांवों के लोग तो अब अभ्यस्त हो चुके हैं.
उपजाऊ जमीन को भी निगल रही है नदियां : बाढ़ एवं कटाव किसानों की जमीन को भी लील रही है. महानंदा, कनकई व परमान नदी की जलधारा यहां के किसानों की हजारों एकड़ जमीन को अपना ग्रास बना चुकी है. इस अभिशाप ने यहां के किसानों को मजदूर बना दिया है. ऐसे सैकड़ों किसान हैं , जिसकी जमीन महानंदा, कनकई एवं परमान नदी में चले जाने के कारण अब रेत में तब्दील हो चुकी है. ऐसे में नदी ने यहां के किसानों को बेरोजगार बना दिया है. जमीन रहते हुए यहां के किसान रोजी रोटी के लिए आज मेहनत मजदूरी कर रहे हैं.
2012 में भी किया था कटावरोधी कार्य : वर्ष 2012 में जल संसाधन विभाग के द्वारा खास कर महानंदा एवं कनकई नदियों में कटावरोधी कार्य किया गया था. जिसके तहत कटाव वाले स्थानों में जियो बैग बृहद पैमाने पर लगाया गया था. कटाव का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा है. नबाबगंज पोखरिया, गुढ़ियाल एवं मड़वा में कटाव का सिलसिला जारी है. अब नये गांवों को अपना निशाना बना रहा है. मड़वा में मदरसा को अपनी आगोश में लेने के लिए तैयार है, वहीं गुढ़ियाल के एक नये गांव एवं चहट के प्राथमिक विद्यालय के आस पास के गांव तथा सड़क को लीलने को तैयार है.
नहीं बना बांध : महानंदा के पूर्वी तटबंध पर बांध बनना था. किंतु नदी के वास्तविक तट से एक किलो मीटर दूर से बांध बनाने की योजना थी. बांध के भीतर कई गांव रहते. इसलिए उन गांवों के ग्रामीणों ने इस पर आपत्ती जतायी थी. तब से इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. ग्रामीणों के अनुसार तीनों नदियों के वास्तविक तट पर बांध बना दिया जाये तो हर साल होने वाली भीषण तवाही से बचा जा सकता है. इसके लिए प्रशासन की ओर से कोई सटीक निर्णय नहीं लिया जा सका है. लिहाजा लोग आज भी बाढ़ एवं कटाव की भेंट चढ़ने को विवश है.

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