सावधान ! 70 % नवजात हो रहे पीलिया के शिकार

जून में अब तक 431 नवजातों का सदर अस्पताल में जन्म पूर्णिया जिले में नवजात जांडिस (पीलिया) की चपेट में हैं. ताजा आंकड़ोंं के अनुसार िजले के 70 प्रतिशत नवजात पीलिया की चपेट में आ गय हैं यह िचंता का विषय है. पूर्णिया : नवजात शिशुओं में जांडिस यानि पीलिया रोगों में लगातार वृद्धि हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2016 6:53 AM

जून में अब तक 431 नवजातों का सदर अस्पताल में जन्म

पूर्णिया जिले में नवजात जांडिस (पीलिया) की चपेट में हैं. ताजा आंकड़ोंं के अनुसार िजले के 70 प्रतिशत नवजात पीलिया की चपेट में आ गय हैं यह िचंता का विषय है.
पूर्णिया : नवजात शिशुओं में जांडिस यानि पीलिया रोगों में लगातार वृद्धि हो रही है. जून माह में अब तक सदर अस्पताल में कुल 431 नवजात का जन्म हुआ. इसमें से 50 शिशुओं को जांडिस की शिकायत पर एसएनसीयू में भरती कराया गया. वहीं आउटबोर्न बच्चों में जांडिस एवं अन्य रोग होने के कारण 126 बच्चों को एसएनसीयू में भरती कराया गया. यह आंकड़े सदर अस्पताल में जन्म लिए हुए बच्चों के हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि पूरे जिले में लगभग 70 फीसदी नवजात पीलिया से प्रभावित हो रहे हैं. जीडीपी एन्जाइम की कमी के कारण पूर्वोत्तर बिहार के बच्चों को पीलिया आसानी से शिकार बना लेता है.
क्या होता है पीलिया : नवजात शिशु में जांडिस यानी पीलिया होना बहुत आम बात है. लगभग 70 फीसदी नवजात शिशु पीलिया से ग्रसित हो जाते हैं. जब नवजात दुनिया में आता है तो शिशु के शरीर में लाल रक्त कोशिका की मात्रा बहुत अधिक होती है. यानी शिशु के रक्त में बिलिरूबीन सेल्सम की अधिकता होती है. जब ये अतिरिक्ति सेल्सी टूटने लगते हैं तो नवजात शिशु को पीलिया हो जाता है. इस पीलिया का खतरा कोसी और सीमांचल में अधिक है क्योंकि इन बच्चों के खून में जीपीडी एन्जाइम की कमी पायी जाती है.
खतरनाक नहीं है नवजात का पीलिया : नवजात शिशुओं में होने वाला पीलिया बहुत खतरनाक नहीं होता और इसका उपचार भी संभव है. लेकिन कई बार नवजात शिशुओं में एक सप्ताह से अधिक पीलिया होने या फिर पीलिया के दौरान बहुत तबीयत खराब होती है तो नवजात को मानसिक या कोई गंभीर शारीरिक बीमारी भी हो सकती है. कई बार नवजात शिशु को पीलिया जन्म के कुछ घंटों बाद ही तो कुछ में तीसरे या चौथे दिन से लेकर एक सप्ताह के बीच भी हो सकता है.
यह है पीलिया का उपचार : बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सुभाष कुमार सिंह ने बताया कि फोटोथैरेपी एक तरह की विधि है, जो नवजात शिशुओं में पीलिया को कम करती है. इस विधि के दौरान बच्चे को एक या दो दिन के लिए गर्म प्रकाश की किरणों के अंतर्गत रखा जाता है ताकि पीलिया कम हो जाये. यह शिशु के अंदर अतिरिक्‍त बिलिरुबिन को लूमिरुबिन में बदलकर उसे आसानी के साथ शरीर से पित्‍त या पेशाब के द्वारा बाहर निकाल देता है.
इस प्रक्रिया के दौरान, बच्‍चे को खूब सारा तरल पदार्थ यानी की दूध पिलाना चाहिए .अगर इस प्रक्रिया से बच्‍चे का बिलिरुबिन का स्‍तर नीचे नहीं गया तो हॉस्‍पिटल में फाइबर ऑपटिक ब्‍लैंकेट जो फाइबर शीट की बनी होती है, उसके द्वारा शिशु का इलाज किया जाता है.
चिकित्सक डा सुभाष कुमार सिंह के अनुसार जो बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं और कम वजनी होते हैं या जिन्हें जन्म के तुरंत बाद मां का दूध पीने को नहीं मिलता है, उन्हें पीलिया का खतरा अधिक होता है. नवजात शिशु की जब आंखें और त्वचा पीली पड़ने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि नवजात को पीलिया हो गया है. दरअसल पीलिया के दौरान नवजात शिशु की पहले आंखें फिर चेहरा और धीरे-धीरे त्वचा और बाद में पूरा शरीर पीला पड़ने लगता है.
नवजात शिशु पूरी तरह से परिपक्व नहीं होता या यूं कहें कि वे बहुत मजबूत नहीं होते और उनका लीवर भी बहुत कमजोर होता है. ऐसे में जब रक्त में मौजूद अतिरिक्त बिलिरूबीन सेल्स एक जगह जमा हो जाते हैं तो शिशु उसे झेल पाने में सक्षम नहीं होता जिससे वह पीलिया का शिकार हो जाता है.

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