बालश्रम पर नहीं लगी रोक
हद है. हालात की दासी बन कर रह गया है श्रम कानून कभी-कभी िवभाग चलाता है अभियान पर नतीजा सिफर पूर्णिया : शहरी क्षेत्र से लेकर कस्बायी क्षेत्र के ढाबे और गैराजों में बचपन सिसक रहा है और मासूमों के सपने टूट रहे हैं. यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिन नन्हें हाथों […]
हद है. हालात की दासी बन कर रह गया है श्रम कानून
कभी-कभी िवभाग चलाता है अभियान पर नतीजा सिफर
पूर्णिया : शहरी क्षेत्र से लेकर कस्बायी क्षेत्र के ढाबे और गैराजों में बचपन सिसक रहा है और मासूमों के सपने टूट रहे हैं. यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिन नन्हें हाथों में कलम होनी चाहिए वहां झूठे बरतन और छेनी, हथौड़ी और रेंच मौजूद है. बुद्धिजीवी, धनाढय और अधिकारियों के घरों में झाड़ू पोछा लगाते बाल मजदूर समाज के नैतिक पतन की कहानी को बयां करता है. बाल श्रम कानून बनाये गये लेकिन खुद कानून भी हालात और धनाढयों की दासी बन कर रह गयी है. बड़े तामझाम से हर वर्ष बाल श्रम निषेध दिवस मनाये जाते हैं, सेमिनारों में तथाकथित बुद्धिजीवी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और श्रम विभाग द्वारा गाहे-बगाहे अभियान भी चलाये जाते हैं. लेकिन कुल मिला कर नतीजा सिफर ही रहा है.
क्या है बालश्रम कानून : वर्ष 1986 में बाल श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया. इसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ढावा, रेस्टोरेंट, होटल, चाय की दुकान, घरेलू कामगार, ईंट भट्ठा, गैराज, भवन निर्माण आदि स्थानों पर नियोजन प्रतिबंधित किया गया. ऐसा किये जाने पर दोषी नियोजकों को 20 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया. वहीं नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत 06 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी.
जागरूकता की कमी है कारण : बाल श्रमिक का मुख्य कारण गरीबी, बढ़ती आबादी तथा अशिक्षा है. जब तक गरीबी रहेगी तब तक इसे पूरी तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता है. बाल श्रमिकों के वयस्क बन जाने के बाद भी पूरी जिंदगी कम आमदनी और गरीबी से घिरे रहते हैं. बाल श्रम पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती है. इसके लिए जागरूकता सबसे जरूरी हथियार है जिसके द्वारा ही बाल श्रम को समाप्त किया जा सकता है.
दो वर्ष में 59 बाल श्रमिक हुए मुक्त
श्रम विभाग के आंकड़े के अनुसार वर्ष 2014-16 में 59 बाल श्रमिक जिले के विभिन्न स्थानों से मुक्त कराये गये. श्रम कानून एवं न्यूनतम मजदूरी कानून के तहत नियोजक से जुर्माना राशि की भी वसूली की गयी. इसके बावजूद बाल श्रमिकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. जिला मुख्यालय में ही सैकड़ों गैराज और सैकड़ों होटल व ढाबे हैं, जहां बाल श्रमिक कार्यरत है. ऐसे में महज 59 बाल श्रमिकों की मुक्ति कारगर कदम नहीं माना जा सकता है. जबकि बाल श्रमिकों की मुक्ति के लिए जिले में श्रम विभाग द्वारा धावा दल गठित है. इस दल का कार्य बाल श्रमिकों की मुक्ति के लिए प्रतिष्ठानों एवं लोगों के घर छापेमारी कर बाल श्रमिकों को मुक्त कराना है.
कारगर नहीं हुआ मुस्कान परियोजना
वर्ष 2015 में राज्य सरकार द्वारा मुस्कान परियोजना चलायी गयी. जिसके तहत जिले की पुलिस को बाल श्रमिकों को मुक्त कराने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. जिला मुख्यालय में अगस्त से सितंबर माह में जोर-शोर से यह अभियान चलाया गया. तत्काल इसके परिणाम भी सामने आये और 56 बाल श्रमिकों को गैराजों और खानपान के होटल से मुक्त कराया गया. इसके बाद वर्ष 2016 के जनवरी एवं जुलाई माह में मुस्कान अभियान के तहत 22 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया. इनके नियोजकों के विरूद्ध पुलिस ने प्राथमिकी भी दर्ज किया लेकिन कतिपय कारणों से यह योजना भी ठंडे बस्ते में चला गया.