पूर्णिया : एक चिनगारी कहीं से ढूंढ़ लाओ दोस्तो, इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है ‘ आर्थिक रूप से हाशिये पर खड़े लोगों के बीच काम करते-करते युवा अभियंता वरुण कुमार की मानसिकता कुछ ऐसी बदली कि ‘ बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय ‘ को आत्मसात करते हुए पहले तो निरक्षरों के लिए आयोजित होने वाली शाम की पाठशाला से खुद को जोड़ा और अब एक अनोखी पहल करते हुए वरुण ने अपनी होने वाली शादी के कार्ड पर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के साथ-साथ घर में शौचालय के प्रति जागरूकता का संदेश देने की कोशिश की है. 08 मई को वरुण की शादी होने वाली है और उन्होंने अपनी शादी कार्ड के कवर पर दो पंक्तियां छपवायी हैं. इसमें पहली पंक्ति में ‘ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ लिखा है तो दूसरी पंक्ति में लिखा है ‘ बिन शौचालय दुल्हन का शृंगार अधूरा है ‘.
खास बात यह है कि उनकी इस नयी पहल में पूरा-पूरा सहयोग उनके हम पेशा इंजीनियर मित्रों और शाम की पाठशाला के साथियों से मिल रहा है. बात यहीं रूकती हुई नजर नहीं आ रही है. वरुण की दिली तमन्ना है कि उनकी होने वाली पत्नी अनुराधा भी शादी के बाद बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ-साथ स्वच्छता खासकर घर-घर शौचालय अभियान से जुड़ कर उनकी सोच को मुकाम तक पहुंचाये. वस्तुत: जब शादी की कार्ड में ‘
मेले मामा की छादी में जलुल-जलुल आना ‘ जैसी मीठी मनुहार दर्ज कराने की परंपरा चली आ रही हो तो दूसरी ओर ‘ ……. बिन शौचालय दुल्हन का शृंगार अधूरा है ‘ दर्ज कराना मनुहार के बड़े कैनवास का आगाज है. आठ मई को होनी है शादी: वरुण मूल रूप से भवानीपुर प्रखंड के सोनदीप पंचायत के विरनिया गांव के रहने वाले हैं. पिता पेशे से किसान हैं, लेकिन साहित्यकार का मिजाज रखते हैं. लिहाजा जब वरुण ने शादी कार्ड छपाने से पहले अपनी मन की बात अपने पिता और माता से कही तो उन लोगों ने एक बार में ही हामी भर दी. वरुण 08 मई को जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड के रतनपुर गांव अपनी अर्द्धांगिनी को लाने पहुंचेंगे. भले ही अभी शादी में विलंब है, लेकिन वरुण की सोच और पहल की चर्चा आरंभ हो चुकी है. वे चाहते हैं कि अपनी सोच और पहल को अपनी अर्द्धांगिनी के साथ आमजन तक पहुंचायें. वरुण बड़े ही बेबाकी से कहते हैं ‘ भला बिना शौचालय दुल्हन के शृंगार के क्या मायने हो सकते हैं, बिन शौचालय दुल्हन का शृंगार अधूरा है ‘ .
गरीबी और बदहाली ने किया प्रेरित
वरुण बायसी अनुमंडल के बैसा प्रखंड में ग्रामीण आवास पर्यवेक्षक के रूप में पदस्थापित हैं. जिले का यह पूर्वी व दक्षिणी हिस्सा भौगोलिक रूप से दुरूह होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा है. लगभग हर वर्ष यहां महानंदा और कोसी की अन्य सहायक नदियां अभिशाप बन कर आती है. लिहाजा इस अभिशाप से इस इलाके के लोग कभी उबर नहीं पाये हैं. वरुण ने बताया कि इस इलाके में काम करने के दौरान उन्होंने पाया कि गरीबी की वजह से यहां बेटियां भार समझी जाती हैं.
ऐसे में अधिकांश बेटियां पढ़ाई से महरूम रह जाती हैं और दूसरी कम उम्र में ही ब्याही जाती है, जो किसी त्रासदी से कम नहीं है. इसके अलावा बतौर आवास पर्यवेक्षक उन्होंने महसूस किया कि संभवत: जिले में सबसे कम शौचालय इसी इलाके में मौजूद हैं. वहीं शौच जाने के क्रम में दुष्कर्म की घटनाएं भी सबसे अधिक इसी अनुमंडल क्षेत्र में होती हैं. वरुण कहते हैं ‘ शौचालय और बेटियों को पढ़ाना और बचाना दोनों इस इलाके के लिए आवश्यक है ‘ .
साथियों ने की हौसला आफजाई
दरअसल शिक्षा के क्षेत्र में बायसी अनुमंडल से एक नयी पहल लगभग दो वर्ष पहले ही आरंभ हो चुकी है, जो शाम की पाठशाला के नाम से जानी जाती है. इसकी अगुवाई पेशे से इंजीनियर शशि रंजन कर रहे हैं. इसमें कई इंजीनियर के साथ-साथ विभिन्न पेशे से जुड़े लोग भी शामिल हैं, जो फुरसत के क्षणों में शाम के समय गरीबों और दलितों की बस्ती में निरक्षरों के बीच अक्षर ज्ञान बांट रहे हैं. वरुण भी शाम की पाठशाला से जुड़े हुए हैं. पहली बार जब वरुण की शादी की बात चली तो उसने सबसे पहले अपने मित्रों के साथ अपने इस विचार को साझा किया. साथियों ने न केवल उसकी हौसला आफजाई की, बल्कि हरसंभव सहयोग का भी भरोसा दिलाया. इसके बाद वरुण ने अपने मन की बात को पूरा करने की ठान ली.
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