नहीं दिखा चांद रमजान कल से

पूर्णिया : बिहार, झारखंड व ओड़िशा के मुसलमानों की सबसे बड़ी एदारा इमारते शरिया, प्रसिद्ध खानकाह- ए- मुजिबिया समेत सूबे के प्रमुख मुसलिम धार्मिक व सामाजिक संस्थानों ने शुक्रवार को एलान किया है कि बिहार समेत पूरे भारत में कहीं भी रमजान उल मुबारक का चांद नहीं नजर आया है. अब मुसलमान भाई रविवार से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 27, 2017 8:57 AM
पूर्णिया : बिहार, झारखंड व ओड़िशा के मुसलमानों की सबसे बड़ी एदारा इमारते शरिया, प्रसिद्ध खानकाह- ए- मुजिबिया समेत सूबे के प्रमुख मुसलिम धार्मिक व सामाजिक संस्थानों ने शुक्रवार को एलान किया है कि बिहार समेत पूरे भारत में कहीं भी रमजान उल मुबारक का चांद नहीं नजर आया है. अब मुसलमान भाई रविवार से पाक व मुकद्दस माहे रमजान का पहला रोजा रखेंगे. वहीं, सऊदी अरब में रमजान उल मुबारक का चांद नजर आया और वहां शनिवार से ही पाक माहे रमजान का महीना शुरू हो गया.
इस एलान की तसदीक इमारत अहले हदीस अमीर मौलाना गाजी और शिया रुयते हेलाल कमेटी के सदर मौलाना सैयद असद रजा ने भी की है. इससे पहले पूर्णिया सहित प्रदेश के तमाम मुसलिम इलाके में लोग देर शाम तक अपने-अपने घरों की छतों पर से चांद देखे जाने की कोशिश करते रहे, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
इसके बाद लोग टीवी और और एक-दूसरे से मोबाइल के जरिये चांद के एलान के बारे में तसदीक का प्रयास करने में लगे रहे. देर शाम जब मुसलिम ऐदारों ने चांद नहीं देखे जाने और रमजान का पहला रोजा रविवार से रखने का एलान किया, तो लोगों ने एक-दूसरे को मुबारकवाद देना शुरू कर दिया. रमजान को लेकर लोगों में उत्साह और उमंग का माहौल है.
पूर्णिया के खजांची स्थित बड़ी मसजिद के इमाम वाजुल हक ने बताया कि शुक्रवार को चांद नहीं देखा गया है. शनिवार को चांद का दीदार होगा. रविवार से रमजान का पाक महीना शुरू हो जाएगा. माह-ए-रमजान को लेकर शहरी इलाके सहित जलालगढ़, बायसी, कसबा में भी खरीदारी शुक्रवार को जोरों पर रही. सेहरी व इफ्तार को लेकर लोगों ने सेवई, खजूर, दूध आदि की खरीदारी की़ सब्जी दुकानों पर भारी भीड़ देखी गयी़
इच्छाओं पर नियंत्रण रखने का नाम है रोजा
पूर्णिया : इसलामी मजहब के जानकारों का कहना है कि अल्लाह ने इंसानों को रमजान का महीना एक खास तोहफे के रूप में दिया है़ यह महीना खुशियों का पैगाम लेकर आता है़ रोजा प्रतीक है संयम का, इबादत और नेक नीयत का़ रमजान मुसलमान को अपने भीतर के गुणों और अच्छाइयों को परखने का अवसर देता है़ मुसलिम समुदाय के लोग रोजा(उपवास) रखकर अच्छाई की राह पर चल देते हैं. रहमत के दरवाजे खुल जाते हैं.
रोजा रखने का मतलब भूखे-प्यासे रहना ही नहीं होता है, बल्कि मनुष्य के अंत:मन की अच्छाइयों को जगाने की यह प्रक्रिया है. रोजा रखने के दौरान इंद्रियों को वश में रखना बहुत जरूरी है़
इस दौरान वर्जित व बुरी बातों की तरफ जाना तो दूर उनके बारे में सोचना भी गुनाह माना जाता है़ रोजे के दौरान बुरा कहना, बुरा देखना, बुरा सुनना व बुरा करने की मनाही रहती है़ इस दृष्टि से यह आत्मिक शुद्धि का महीना है़

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