तीन सौ वर्ष से अटूट आस्था का केंद्र है अमौर शिव दुर्गा मंदिर
साम्प्रदायिक एकता अखंडता का प्रतीक बना हुआ है
पीके करन, अमौर. पूर्णिया जिले के प्राचीनतम मंदिरों में से एक मंदिर है अमौर शिवदुर्गा मंदिर.जिला मुख्यालय से लगभग पचास किलोमीटर दूर अवस्थित अमौर बाजार के पास स्थित यह मंदिर आस्था का प्रतीक है. प्रतिवर्ष इस मंदिर में दुर्गापूजा समारोह का आयोजन अटूट श्रद्धा व विश्वास के साथ पूजा समिति सहित क्षेत्रीय श्रद्धालुओं के सहयोग से किया जाता रहा है. इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1710 ई. में अमौरगढ़ में हुई थी. अमौरगढ़ के बारे में बड़े-बुजर्ग बताते हैं कि अमौरगढ़ वक्र नामक एक पहाड़ी नदी के किनारे बसा था जो अमौर को एक ओर नेपाल और दूसरी ओर सुदूर कलकत्ते से जोड़ता था. नदी के मुहाने पर पत्थरों से निर्मित सीढ़ियां थीं जिनसे होकर नगर में प्रवेश किया जा सकता था. प्रवेश द्वार से राजमहल तक चौड़ी सड़कें थीं और ड्योढ़ी के ईद गिर्द कई तालाब खुदवाये गये थे. हवेली के भीतर ही भीतर एक ऐसी सुरंग बनायी गयी थी जो महल के अंदरुनी हिस्से को एक तालाब से जोड़ती थी .यह तालाब गढ़ी के बाहर स्थित थी ओर तालाब के समीप देविघरा नामक एक पूजास्थल में देवी मृण्मयी दुर्गा मां की वार्षिक पूजा की जाती थी. माना जाता है कि इस प्रांत में सर्वप्रथम यहीं पर मिट्टी की मूर्ति बना कर देवी की पूजा आरंभ की गयी थी. जहां कभी अमौरगढ़ का राजमहल हुआ करता था उस स्थान पर आज एक रेफरल अस्पताल एवं शिवदुर्गा मंदिर व पीरबाबा का मजार विद्यमान है, जो पूरे क्षेत्र के लिए आस्था व साम्प्रदायिक एकता अखंडता का प्रतीक बना हुआ है . फोटो : 25 पूर्णिया 14- अमौर शिव दुर्गा मंदिर
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