बिहार बंगाली समिति ने की नई पीढ़ी को मातृभाषा से जोड़ने की वकालत, निकाली प्रभात फेरी
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर पूर्णिया में बुधवार को बिहार बंगाली समिति के सदस्यों ने प्रभातफेरी निकाली. जहां नई पीढ़ी को जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया गया.
अरुण कुमार, पूर्णिया. पूर्णिया में बंगाली समुदाय का इतिहास काफी गौरवपूर्ण रहा है. इसकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम होगी. बंगाली समाज ने भविष्य में भी इसे समृद्ध बनाये रखने के लिए नई पीढ़ी को मातृभाषा से जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया है और कहा है कि तभी समाज की कला-संस्कृति आगे बढ़ेगी. समाज आगे बढ़ेगा. भाषा लोगों को उनकी मिट्टी से जोड़ता है. स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई हो. बदलते परिवेश में बंगाली समाज को मातृभाषा, साहित्य और संस्कृति से अलग किए जाने की चिंता है. इस समाज को मलाल है कि बंगला साहित्य में जिस शख्सियत ने राष्ट्रीय फलक पर पूर्णिया को एक पहचान दी उसी की धरती पर रहने वाले बच्चों की मातृभाषा कुंठित हो रही है.
जीवन शैली व संस्कृति है मातृभाषा जिससे दूर हो रहे बच्चे
बिहार बंगाली समिति से जुड़े लोगों ने सरकार द्वारा बच्चों के पाठ्यक्रम में बंगला भाषा के प्रति विशेष ध्यान देते हुए पुस्तकों के प्रकाशन और सभी विद्यालयों में बंगला भाषा के पठन पाठन को सुनिश्चित करने की जरुरत बतायी है. सदस्यों ने चिंता जताते हुए कहा कि आजकल बच्चे जिस इंग्लिश मीडियम से पढाई करते हैं उनमें लगभग सीबीएसई बोर्ड के स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा है जहां बंगला भाषा से संबंधित विषय ही नहीं है. इससे बच्चे अपनी मातृभाषा से दूर हो रहे हैं.
अमूमन घरों में बोलचाल में तो बंगला भाषा का ही लोग प्रयोग करते हैं लेकिन इसकी विधिवत पढ़ाई से दूर हो रहे बच्चे धीरे धीरे इस भाषा को भूलते जा रहे हैं जो चिंता का विषय है. समिति के सदस्यों ने कहा कि कोई भी भाषा हो, सभी सम्मान के योग्य है और सभी का संरक्षण होना जरूरी है. मातृभाषा सिर्फ बोलचाल ही नहीं एक जीवन शैली और संस्कृति है. इसके नुकसान से हमारे अस्तित्व पर खतरा है. बंगला भाषा को लेकर यह संघर्ष अब बढ़ता जा रहा है अगर सरकारी स्तर पर बंगला भाषा के हित में प्रयास नहीं किए गये तो आगे आंदोलन को तेज किया जायेगा.
क्या कहते हैं बंगाली समुदाय के लोग
- 1. सभी स्कूल में बंगला का विषय होना चाहिए. बच्चे बाहर पढ़ते हैं जहां तीसरी भाषा के रूप में बंगला है. दुःख इस बात का है कि आधे से अधिक विद्यालयों में बंगला का विषय ही नहीं है. सभी मातृभाषा बेहद मधुर है लेकिन बंगला भाषा को भी मर्यादा मिलनी चाहिए. कई बांग्लाभाषी माता पिता भी बच्चों से बंगला में बात नहीं करते ये उनकी गलती है. – मिट्ठू साह, स्थानीय
- 2. 1952 में बांग्लादेश में भाषा को लेकर जो आंदोलन हुआ, इसके इतिहास को लेकर यह दिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में हमलोगों के बीच है. सभी भाषा सम्मान और आदरणीय है. अगर बंगला भाषा को लेकर पहल न करें तो संस्कृत क़ई तरह उन्नत भाषा होते हुए बांग्ला भाषा भी सिर्फ पढ़ाई तक ही सिमित रह जायेगी. – चैताली सान्याल
- 3. आज हमलोग मातृभाषा दिवस मना रहे हैं. अपनी मातृभाषा के लिए हमारे जिन भाइयों ने अपनी जाने दीं उन्हें याद करते हैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. हाल के दिनों में सरकार द्वारा बंगला सहित अन्य मातृभाषा के लिए सरकारी शिक्षकों की बहाली तो की गयी पर बंगला पुस्तकों का प्रकाशन नहीं हो रहा है जो चिंता का विषय है. – सुष्मिता भट्टाचार्या
- 4. मां और मातृभाषा हम सबके लिए एक समान है. इन्हें हम नहीं भूल सकते. बंगला भाषा को लेकर लगातार संघर्षों का परिणाम है कि बीते दिनों बंगला शिक्षकों की बहाली हुई और अभी हाल में भी विभिन्न सरकारी विद्यालयों में बंगला शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है. हम बंगाली वोटर्स भी हैं हमारे भी अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए. – सोनाली चक्रवर्ती
- 5. यहां जो बच्चे बंगला पढ़ना चाहते हैं उनके लिए पुस्तक ही नहीं है. इसे लेकर हमारे संगठन ने लम्बी लड़ाई लड़ी हैं. अभी तक पुस्तकों का प्रकाशन बिहार टेक्स्ट बुक से नहीं किया गया है. बिहार बंगाली समिति ने राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्री व सरकार से मांग की है, विधान सभा में भी मांगें उठायी गयीं हैं लेकिन हमें सफलता नहीं मिल पायी है. – अचिंतो बोस, केन्द्रीय समिति उपाध्यक्ष
- 6. प्रायः घरों में बंगला भाषा के प्रति जागरूकता घटती जा रही है. बंगला भाषा बोलते जरुर हैं, लिखने पढने में रूचि नहीं लेते. इसके लिए हम सभी जिम्मेवार हैं. सरकार तो प्रयास कर ही रही है , प्रश्नपत्र उपलब्ध कराकर परीक्षाएं ली जा रहीं हैं. अफसोस यह है कि बंगला भाषा भाषी के अन्दर ही अपनी मातृभाषा के प्रति उदासीनता आ गयी है. – रवीन्द्र कुमार नाहा, सचिव, बिहार बंगाली समिति
- 7. संस्कृति, शिक्षा, साहित्य, चिकित्सा सहित अनेक क्षेत्रों में यहां बंगाली लोगों का शुरू से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. हिन्दी भाषी और बंगला भाषियों के बीच मेलजोल का भाव हमेशा रहा है. 1938 से बिहार बंगाली समिति कार्य कर रही है. हम सभी हर वर्ष इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं. – अजय सान्याल, अध्यक्ष, बिहार बंगाली समिति.
- 8. पठन पाठन के लिए लोग अपने बच्चों को दूर दूर भेज रहे हैं. इंग्लिश मीडियम और अलग पाठ्यक्रम से बच्चे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन अपनी मातृभाषा में पिछड़ रहे हैं. बंगला भाषा की ही बात ली जाय तो सीबीएसई बोर्ड के स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा है पर उस पाठ्यक्रम में बंगला भाषा को स्थान नहीं मिल सका है . – गोपाल पोद्दार, स्थानीय
आंकड़ों का आइना
- 30 शिक्षक मात्र बंगला पढ़ाने वाले स्कूलों में हैं
- 2240 के करीब है प्राथमिक और मध्य विद्यालयों की संख्या
- 98 के करीब हाई स्कूल हैं पर कहीं भी बंगला के शिक्षक नहीं
- 182 बंगभाषी छात्र-छात्राएं डगरुआ के चार स्कूलों में पढ़ते हैं
- 2289 बंगभाषी छात्र-छात्राएं कसबा के 17 स्कूलों में है
- 195 बंगभाषी छात्र-छात्राएं जलालगढ़ में मातूभाषा से वंचित
- 42 बंगभाषी छात्र-छात्राएं बनमनखी में बांग्ला पढ़ाई से वंचित
- 22 बंगभाषी छात्र-छात्राएं श्रीनगर प्रखंड में हैं
- 522 बंगभाषी छात्र-छात्राएं केनगर में पढ़ाई से वंचित हैं
- 794 छात्र-छात्राएं पूर्णिया पूर्व में बांग्ला पढ़ाई से वंचित हैं
प्रभात फेरी निकाल भाषा की समृद्धि पर दिया जोर
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर बुधवार को बिहार बंगाली समिति के सदस्यों ने गीत संगीत के साथ प्रभातफेरी निकाली. यह प्रभातफेरी भट्ठा दुर्गाबाडी प्रांगण से निकलकर झंडा चौक, कालीबाड़ी चौक होते हुए आरएन साव चौक पर पहुंची. उसके बाद टैक्सी स्टैंड फिर चित्रवाणी रोड और भट्ठा कालीबाड़ी होते हुए राम कृष्ण मिशन होकर पुनः भट्टा दुर्गाबाडी प्रांगण पहुंचकर समाप्त हुई. इस प्रभातफेरी में बड़ी संख्या में बंगलाभाषी पुरुष, महिलायें और बच्चे बच्चियों ने हिस्सा लिया. इस दौरान इसमें शामिल लोगों ने बंगला भाषा की समृद्धि एवं विकास को लेकर नारे लगाए. इस मौके पर सभी लोगों ने उन लोगों को भी याद किया जिन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति दी. प्रभात फेरी में चैताली सान्याल, सोनाली चक्रवर्ती, मिट्ठू साह, सुष्मिता भट्टाचार्य, जवा भट्टाचार्य, सपन चक्रवर्ती, अजय सान्याल, रवीन्द्र कुमार नाहा, अमित भट्टाचार्य, अचिंतो बोस, गोपाल पोद्दार सहित बड़ी संख्या में बांग्लाभाषी महिला पुरुष तथा स्कूली छात्र छात्राएं शामिल रहे.