बिहार में डीएसपी को उम्रकैद की सजा, 26 साल पहले पूर्णिया में थानेदार रहते किया था फर्जी एनकाउंटर
Bihar News: बिहार के एक डीएसपी को उम्रकैद की सजा सुनाई गयी है. पूर्णिया में थानेदार रहते एक फेक एनकाउंटर मामले में सजा का एलान हुआ था.
Bihar News: बिहार के पूर्णिया जिले में करीब 26 साल पहले एक फेक एनकाउंटर मामले ने दो पुलिसकर्मियों की मुसीबत बढ़ा दी. एक हत्या को एनकाउंटर दिखाना तत्कालीन थाना प्रभारी को महंगा पड़ गया. इस मामले की जांच सीआईडी और फिर सीबीआई के पास गयी और पुलिस की आंखमिचौली का पर्दाफाश हो गया. फर्जी एनकाउंटर मामले में बड़हरा के पूर्व थानाप्रभारी को उम्रकैद की सजा सुना दी गयी है. जो वर्तमान में इंस्पेक्टर से प्रमोट होकर डीएसपी बन चुके थे. जबकि बिहारीगंज थाने के एक पूर्व दारोगा को पांच साल की सजा मिली है.
फर्जी एनकाउंटर के मामले में अदालत का फरमान
पटना स्थित सीबीआइ की एक विशेष अदालत ने फर्जी एनकाउंटर के मामले में मंगलवार को एक पूर्व थानाध्यक्ष को उम्रकैद की सजा सुनायी. साथ ही तीन लाख एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नवम सह विशेष न्यायाधीश अविनाश कुमार ने सुनवाई के बाद पूर्णिया के बड़हरा थाने के पूर्व थानाध्यक्ष मुखलाल पासवान को आइपीसी की धारा 302, 201, 193 और 182 के तहत दोषी करार देने के बाद यह सजा सुनायी. जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर दोषी को डेढ़ साल की सजा अलग से भुगतनी होगी. बता दें कि मुखलाल पासवान को इसी साल प्रमोशन मिला था और डीएसपी बनाए गए थे.
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बिहारीगंज थाने के पूर्व दारोगा को पांच साल की सजा
अदालत ने इसी मामले के एक अन्य अभियुक्त बिहारीगंज थाने के पूर्व दारोगा अरविंद कुमार झा को आइपीसी की धारा 193 में दोषी करार देने के बाद पांच वर्षों के सश्रम कारावास की सजा के साथ 50 हजार रुपये का जुर्माना भी किया. जुर्माने की रकम अदा नहीं करने पर इस दोषी को छह माह के कारावास की सजा अलग से भुगतनी होगी.
क्या है पूरा मामला…
सीबीआइ, दिल्ली के लोक अभियोजक अमरेश कुमार तिवारी ने बताया कि मामला वर्ष 1998 का था. आरोप के अनुसार एक अपराधी की तलाश में पुलिस ने पूर्णिया के बिहारीगंज थाने की फिद्दी की बस्ती गांव में जगदीश झा के घर की घेराबंदी की और संतोष कुमार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी थी. बाद में इस घटना को पुलिस एनकाउंटर का रूप देने का प्रयास किया था.
सीबीआई ने 45 गवाहों का बयान दर्ज करवाया
इस मामले की जांच पहले स्थानीय पुलिस के स्तर पर की गयी. बाद में इसकी जांच सीआइडी को सौंप दी गयी. इसके बाद मामले का अनुसंधान सीबीआइ ने किया था. इस मामले में सीबीआइ ने आरोप साबित करने के लिए 45 गवाहों का बयान अदालत में कलमबंद करवाया था.