प्रतिनिधि, पूर्णिया. इन दिनों जिले में सैकड़ों बच्चे अपनी छुट्टी का उपयोग करते हुए समर कैंप में अपने हुनर को निखारने में लगे हुए हैं. एक ओर अंग संस्कृति में “बिहुला विषहरी” की कथा को चित्र के माध्यम से दस्तावेज का रूप दिया जा रहा है तो वहीं सदियों पुरानी कला “मंजूषा कला” के बारे में भी बच्चे अपनी विरासत को समझबूझ रहे हैं और उसके संवर्धन की कवायद में जुटे हैं. दरअसल, किलकारी बिहार बाल भवन के द्वारा एक बार फिर अपने सिलेबस के मुताबिक, व्यापक स्तर पर समर कैंप का आयोजन किया गया है और इस समर कैंप में अनेक विधाओं पर बच्चों के बीच प्रशिक्षण कार्य चल रहा है जिससे इनकी छिपी हुई प्रतिभा लगातार सामने आ रही है. बच्चों में भी अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति अद्भुत आकर्षण देखा जा रहा है. बच्चे इस समर कैंप में अपनी माटी की सभ्यता और संस्कृति को भी खूब संरक्षित कर रहे हैं. किलकारी, बिहार बाल भवन, पूर्णिया के संयोजक रवि भूषण ने बताया कि मंजूषा कला में यहां खास तौर पर बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. इसके लिए भागलपुर से मंजूषा कला के विशेषज्ञ मनोज कुमार पंडित को आमंत्रित किया गया है, जो मंजूषा गुरु सम्मान और बिहार कला सम्मान से भी नवाजे जा चुके हैं और उनके कुशल संरक्षण में, पूर्णिया के बच्चे लगातार अपने अंग की धरती की पौराणिक सभ्यता और संस्कृति को सहेजने में जुटे हुए हैं. उन्होंने बताया कि इस मंजूषा कला का अस्तित्व चौदह सौ वर्ष पूर्व से रहा है, लेकिन कालांतर में यह विलुप्त हो गयी थी. फिर सन 1971 में जब अंग प्रदेश धरोहर की खोज में पुरातत्व विभाग की ओर से खुदाई शुरू हुई तो यह बात सामने आयी कि अंगप्रदेश के चंपा में चौदह सौ साल पुरानी इस सभ्यता संस्कृति से जुड़ी कलाकृति हुआ करती थी और यह कलाकृति मंजूषा कला के नाम से जानी जाती थी. इस खुदाई में लगभग 15 किलो वजन वाली दो मूर्तियां प्राप्त हुई थी जिसका स्वरूप नाग नागिन की तरह था, लेकिन खास बात यह थी कि नाग नागिन के स्वरूप में आदमी का स्वरूप भी समाहित था. फिर इस भित्ति चित्र पर कई शोध हुए और आज मंजूषा कला को पूरी दुनिया में एक स्थान मिल चुका है. बिहार के बाहर जब मंजूषा कला की काफी चर्चा होने लगी तब बिहार में भी इसके लिए प्रमुख रूप से कार्य होना शुरू हुआ और आज प्रमुखता के साथ इस कला के संवर्धन और संरक्षण के लिए बिहार में कार्य किया जा रहा है. इसी कड़ी में इस समर कैंप के बच्चों को भी मंजूषा कला के लिए प्रशिक्षित किया गया और बच्चों ने अपनी तूलिका से बिहुला विषहरी की कथा को कथा चित्र के माध्यम से प्रदर्शित कर सबों का ध्यान अपनी ओर खींचा.
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