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पराली को जलाएं नहीं, मिट्टी में मिलाएं, बढ़ेगी उर्वरता : डॉ रश्मि

जिले में इन दिनों धान की कटाई है जोरों पर

जलालगढ़. जिले में इन दिनों धान की कटाई जोरों पर है. कई किसान धान की कटनी के बाद फसल अवशेष यानी पराली को खेत में ही जलाते नजर आ रहे हैं. कृषि विज्ञान केंद्र पूर्णिया के कृषि वैज्ञानिक डॉ रश्मि प्रियदर्शी ने बताया कि ऐसा करना मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है. पराली जलाने से खेत की मिट्टी के सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे खेत की जैव विविधता प्रभावित होती है और अगली फसल की उपज में भी कमी आती है. डॉ रश्मि ने किसानों से आग्रह किया कि वे पराली को जलाने के बजाय इसे खेत में मिलाएं या वर्मी कंपोस्ट बनाएं. स्ट्रॉ रीपर जैसी मशीनों का उपयोग करके पराली से पशुओं का चारा बना फसल अवशेष का बेहतर प्रबंधन हो सकता है. पराली जलाने से वातावरण में हानिकारक गैसें निकलती हैं जो वायु प्रदूषण को बढ़ाकर मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बनती हैं. इससे सांस की बीमारियां, आंखों में जलन, अस्थमा और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. केवीके के कृषि वैज्ञानिक डॉ रश्मि प्रियदर्शी ने सुझाव दिया कि पराली प्रबंधन के लिए किसान स्ट्रॉ बेलर, रीपर कम बाइंडर, रोटरी मल्चर जैसी मशीनों का उपयोग करें और पराली को मिट्टी में मिलाएं. इससे मिट्टी की उर्वरक शक्ति बनी रहेगी और अगली फसल के लिए उपजाऊ जमीन भी उपलब्ध होगी. इस तरह से पराली प्रबंधन कर किसान, मिट्टी एवं मानव जीवन की रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं. . फोटो. 10 पूर्णिया 31-कृषि वैज्ञानिक डॉ रश्मि प्रियदर्शी.

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