जयंती पर विशेष
पूर्णिया. बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और जाने-माने साहित्यकार डाॅ लक्ष्मीनारायण सुधांशु जी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे. वह एक नैतिकवान और चरित्रवान नेता थे, जिन्होंने बिहार ही नहीं भारत की राजनीति में चरित्र और नैतिकता की मिसाल पेश की. डॉ सुधांशु जी पद के पीछे नहीं पद ही उनके पीछे भागता था. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी उन्हें शिक्षा मंत्री अथवा लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में दिल्ली लाने की चेष्टा की थी लेकिन डॉ सुधांशु जी ने उन्हें विनम्रतापूर्वक यह कहते हुए अनुरोध को अस्वीकार कर दिया कि भारत के शिक्षा मंत्री अथवा लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मेरे आने से आपके लिए मेरी भाषा नीति के कारण समस्या आ जाएगी मैं सब कुछ छोड़ सकता हूँ मगर हिंदी नहीं छोड़ सकता हूं .रविवार को डा. सुधांशु जी की जयंती पर समारोह आयोजित किया जा रहा है. समारोह की पूर्व संध्या पर डॉ सुधांशु जी के मंझले सुपुत्र एवं आनंद मार्ग के ग्लोबल एडवाइजरी कमिटी के सदस्य प्रद्युम्न नारायण सिंह ने अपने पिता की स्मृति साझा की. श्री सिंह ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री शास्त्री जी द्वारा उनकी सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री डॉ.सिद्धेश्वर प्रसाद जी को हवाई जहाज से रूपसपुर भेजा था कि किसी तरह डॉ. सुधांशु जी को मनाकर दिल्ली लाया जाए. मगर, वे नहीं गये. प्रद्युम्न नारायण सिंह बताते हैं कि डॉ. सुधांशु जी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति निष्ठा को देखकर डॉ. राम मनोहर लोहिया ने पत्र में लिखा था कि ‘मुझे आपके भाषणों से ताक़त मिलती है, आज भारत में जो हिंदी की प्रतिष्ठा हुई है उसके पीछे डॉ.सुधांशु जी ही हैं.
फोटो- 14 पूर्णिया4- डॉ.सुधांशु की दुर्लभ तस्वीरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है