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आकर्षक बांस से निर्मित मंदिर में बिराजेंगी दुर्गा मैया

लगभग पांच हजार बांस से तैयार हो रहा है भव्य महल

लगभग पांच हजार बांस से तैयार हो रहा है भव्य महल बंगाल की रोशनी में जगमगाएगा मुख्य सड़क और हाउसिंग सोसाइटी पूर्णिया. शहर के सिक्स लेन से सटे कप्तान पाड़ा के एक हाउसिंग सोसाइटी कैम्पस स्थित दुर्गापूजा स्थल आज असीम श्रद्धा और संस्कृति का संगम स्थल है. हर साल वहां पूजा के आयोजन में कुछ न कुछ ऐसा आकर्षण होता है कि आम लोग खींचे चले आते हैं. हालांकि जिला मुख्यालय से थोड़ी दूर अवस्थित होने के कारण पूजा और मेला को लेकर पैदल घूमने वाले लोगों को वहां तक पहुंचने के लिए ऑटो अथवा टोटो का सहारा लेना पड़ता है. लेकिन भीड़ से अलग ट्रैफिक की चिंता के बिना दो पहिया, चार पहिया वाहनों का वहां तांता लगा रहता है. क्या है मंदिर का इतिहास पूजा समिति के पदाधिकारी बताते हैं कि उक्त स्थल के पूर्व, सडक के किनारे वर्ष 1952 से पूजा शुरू हुई थी. कालान्तर में लोगों ने मिलकर वहां मंदिर का निर्माण भी कराया था. उस स्थान पर लगातार हर वर्ष पूजा होती आ रही थी. लेकिन कुछ वर्षों पूर्व जब शहर के बीचो बीच गुजरने वाली एनएच 31 सड़क को विस्तार रूप दिया गया तो मंदिर का कुछ भाग उसमें प्रभावित हो गया जिसके बाद यहां निकट में ही बन रहे हाउसिंग सोसाइटी द्वारा पूजा के लिए जगह दी गयी और अब स्थायी मंदिर के नाम से ही जमीन दान में मिल चुकी है. तबसे यहां पूरी आस्था व निष्ठा के साथ पूजा की जा रही है. ग्रामीण हिंदी और बंगला संस्कृति की झलक कप्तान पाड़ा दुर्गा मंदिर की पूजा की एक बड़ी खासियत यह है कि यहां एक साथ गांव और शहर एवं हिंदी तथा बंगला संस्कृति की झलक मिलती है. पूर्णिया पूर्व प्रखंड के बिलकुल करीब अवस्थित होने के कारण यहां आसपास के कई गांव से लोग माता के दर्शन और भव्य साज सज्जा एवं रंग बिरंगी रोशनियों का आनंद उठाने यहां पूरे परिवार के साथ पहुंचते हैं. बंगाल के मूर्तिकार पूजा समिति के सचिव बताते हैं कि बंगाल की मूर्ति कला हर जगह प्रसिद्ध है. मूर्ति निर्माण में बंगाल के कलाकार आज भी काफी आगे हैं और यही कारण है कि यहां भी उन्हीं कलाकारों से प्रतिमा का निर्माण कराया जाता है. प्रतिमा के निर्माण के बाद साज-सज्जा की भी अहमियत होती है. बंगाल के मूर्तिकार प्रतिमा को भव्य रुप प्रदान करते हैं. बेहतर साज- सज्जा कप्तानपाड़ा का यह दुर्गापूजा स्थल हमेशा बेहतरीन डेकोरेशन के लिए जाना जाता है. लम्बी दूरी तक बिजली के रंग-बिरंगे बल्ब लगाए जाते हैं. बिजली के जगमगाते बल्बों के साथ आकर्षक डेकोरेशन किया जाता है जिससे दूर से ही लोगों को यह आभास हो जाता है कि आगे कहीं दुर्गा की पूजा हो रही है. दस दिनों के इस पर्व में कला और संस्कृति के भी रंग निखर उठते हैं. पूजा शूरु होते ही कार्यक्रमों की रफ्तार तेज हो जाती है. स्थानीय बच्चों को मंच प्रदान कर उन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने और प्रस्तुत करने का भरपूर मौक़ा दिया जाता है. बोले कमेटी के लोग कुछ अलग हटकर इस बार बांस और फट्ठी से मां की पूजा के लिए भवन का निर्माण किया जा रहा है. बंगाल के बालूरघाट से लगभग पांच हजार बांस मंगवाया गया है. लाइट्स भी चन्दन नगर बंगाल के ही हैं. सप्तमी से भोग प्रसाद का वितरण शुरू हो जाएगा. विसर्जन रविवार को किया जाएगा. अमित चक्रवर्ती, सचिव पूजा समिति पहले पूजा का आयोजन बाहर सडक के पास की जमीन पर किया जाता था बाद में करीब 8 साल से यहां पूजा हो रही है. इस हाउसिंग सोसाइटी कैम्पस में अब पूजा के लिए स्थायी अपनी जमीन हासिल हो गयी है. यहां दूर दूर से श्रद्धालु पूजा और आयोजन देखने आते हैं. बानेश्वर चौधरी, अध्यक्ष पूजा समिति फोटो – 6 पूर्णिया 1- कप्तान पाड़ा में बांस निर्मित भवन को तैयार करते कारीगर

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