अरविन्द कुमार जायसवाल, बीकोठी. प्रखंड के चर्चित सुखसेना गांव में 24 अक्टूबर 1982 को स्व. सूर्य नारायण झा की पहल पर निशा पूजा के साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी थी. असीम आस्था के कारण देखते ही देखते मां दुर्गा प्रागंण में माता तारा मंदिर, माता विषहरी मंदिर, माता कबुतरा मंदिर, बजरंगबली मंदिर एवं हवन यज्ञ कुआं,शिव मंंदिर सहित यह प्रखंड क्षेत्र में मां दुर्गा का सबसे बड़ा मंदिर बन गया . सुखसेना दुर्गा मंदिर में मान्यता है कि जो श्रद्धालु महाअष्टमी को विशेष पूजा में श्रद्धा से मन्नत मांगते हैं ,उनकी मन्नतें निश्चित पूरी होती हैं. अपनी भव्यता के कारण इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है.इसके कारण श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने दूर दूर से आते हैं. महाष्टमी और महानवमी को होने वाली पूजा भक्ति,श्रद्धा और आकर्षण का मुख्य केंद्र है. महाष्टमी के दिन यहां दुर्गा मंदिर के साथ साथ तारा मंदिर में भी काफी श्रद्धालु जुटते हैं. दोनों मंदिरों में रातभर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. कलश स्थापना से दशमी अंतिम पूजा तक यहां वैदिक विधि से पूजा अर्चना की जाती है. महाष्टमी की रात और महा नवमी के दिन यहां बलि प्रदान का कार्य किया जाता है. हर वर्ष नवमी के दिन करीब 5 से 6 हजार छागर की बलि दी जाती है . पूजा के लिए मंदिर की साज सज्जा को कारीगर अंतिम रूप दे चुके हैं. सुखसेना दुर्गा मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष सह मेला मालिक शारदानंद मिश्र ने बताया कि यहां समस्त ग्रामीणों के सहयोग से पूजा और मेला का आयोजन किया जाता है. फोटो. 29 पूर्णिया 19-सुखसेना दुर्गा मंदिर
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