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पूर्णिया में शुरू हुई बिहार को देश का पहला कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनाने की कवायद

कार्यशाला आयोजित

जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति प्रोजेक्ट पर कार्यशाला आयोजित

कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन के कारण बढते जोखिम और इससे बचाव के उपायों पर फोकस

बचाव नहीं हुए तो आने वाले दिनों में बढ़ेगा तापमान, समय पर मानसून नहीं आने से कृषि पर होगा असर

पूर्णिया. बिहार को देश का पहला कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनाने की कवायद पूर्णिया में शुरू हो गई है. इसके लिए बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति पर बहुत जल्द काम भी शुरू किया जाएगा. इस दिशा में बनाए गये प्राजेक्ट के तहत गुरुवार को समाहरणालय स्थित प्रज्ञान सभागार में एक कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें हालिया सालों में हुए जलवायु परिवर्तन के कारण बढते जोखिम पर फोकस किया गया और इस लिहाज से बचाव के सामूहिक प्रयास की जरुरत बतायी गई. कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों पर चर्चा हुई और बताया गया कि इसके कारण न केवल पूर्णिया प्रमंडल के तापमान में इजाफा होगा बल्कि मानसून के समय में भी बदलाव हो सकता है जिसका असर खेती किसानाी पर भी होगा. कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए अपर समाहर्ता राजकुमार गुप्ता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव उत्तर बिहार में सर्दी के महीनों में धुंध और ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्मी के रूप में देखे जा रहे है. यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम बिहार को देश का पहला नेट ज़ीरो राज्य बनाने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सभी आवश्यक प्रयास करें. उन्होंने कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनाने की दिशा में बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति” प्राजेक्ट के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. कार्यशाला की विस्तृत जानकारी डब्लू आर.आई. इंडिया के प्रोग्राम प्रबन्धक डॉ. शशिधर कुमार झा एवं मणि भूषण कुमार झा ने दी. मणि भूषण ने कहा कि बिहार में जलवायु परिवर्तन मौजूदा जोखिमों को और बढ़ा सकता है. जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन विकास रणनीति रिपोर्ट ने सिफारिशों के तहत ऊर्जा, परिवहन, अपशिष्ट, भवन, उद्योग, कृषि, वन सहित आपदा प्रबंधन, जल और मानव स्वास्थ्य क्षेत्रों में शमन और अनुकूलन रणनीतियां निर्धारित की हैं.

मानसून के आगमन में हो सकती है देरी

मणि भूषण ने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य बिहार राज्य के लिए तैयार की गयी रणनीति के जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन के लिए स्थानीय हितधारकों को जागरूक करना, रणनीति के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों और कठिनाइयों की पहचान करना तथा उनके समाधान के रास्तों पर विचार विमर्श करना है. उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 04 मार्च, 2024 को इस रणनीति का राज्य स्तरीय क्लाइमेट कोंक्लेव में विमोचन किया था. इस मौके पर डॉ शशिधर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप सन 2030 तक पूर्णिया प्रमंडल में अधिकतम तापमान में 0.5-1 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होने का अनुमान है. इसके अलावा मानसून के आगमन में देरी हो सकती है तथा शीत ऋतु में वर्षा में कमी आ सकती है. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों के बारे में बताते हुए उन्होंने फसल एवं कृषि प्रणाली में विविधता, सतही और भूजल का एकीकृत प्रबंधन, वन पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जनन, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना और आपदा के समय आजीविका की सुरक्षा और संवर्द्धन का उल्लेख किया.

फसल पैटर्न में बदलाव की जरूरत

इस कार्यशाला में बतौर विशेषज्ञ पहुंचे भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज वैज्ञानिक डॉ. राधेश्याम ने कहा कि मानसून की देरी से गर्मी के मौसम में वृद्धि की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे निपटने के लिए फसल पैटर्न में बदलाव जैसे उपायों की आवश्यकता है. उन्होंने दावा किया कि पूर्णिया क्षेत्र में मिलेटस की फसल की खेती सफल रही है, जिसमें गर्मियों में फॉक्सटेल मिलेट भी शामिल है. उन्होंने कहा कि हमारे सर्वेक्षण में पाया गया है कि पूर्णिया में मिलेटस की फसलों की खपत 400 क्विंटल है, लेकिन इसका 90 फीसदी हिस्सा रांची से आता है. इस तरह की जोखिमों से बचाव के लिए उन्होंने मिलेटस की खेती पर अधिक जोर दिए जाने की जरुरत बतायी. कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने भी अपने विचार साझा किये. प्रतिभागियों द्वारा उठाये गए मुद्दों में बीज प्रतिस्थापन, बालू खनन, वृक्षारोपण, वर्षाजल संचयन और वाहन स्क्रैप केंद्र इत्यादि थे.

फोटो-18 पूर्णिया 9- कार्यशाला की अध्यक्षता करते अपर समाहर्ता

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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