1956 से शुरू हुई दुर्गापूजा
संस्थापक
– स्व. राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा, शंभू शरण सिन्हा, रामलखन साह, निरंजन कुमार चौधरीआस्था
68 साल पुराना है डाकघर दुर्गा पूजा का इतिहास
पूजन स्थल पर उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाबआस्था के साथ की जाती है यहां देवी दुर्गा की पूजा
पूजा में दिखती है मिथिला संस्कृति की जीवंत झलकनवमी के महाभोग का है काफी महत्वपूर्णिया. शहर के गिरिजा चौक स्थित प्रधान डाकघर परिसर के दुर्गा पूजा से पूरे शहर की आस्था जुड़ी हुई है. इस मंदिर का इतिहास 68 साल पुराना है. इससे पूरे शहर का जुड़ाव बना हुआ है. असीम आस्था के कारण यहां पूजा के लिए अच्छी भीड़ उमड़ती है. शुरुआती दौर में डाककर्मियों के अलावा कुछ स्थानीय लोग ही इस पूजन स्थल से जुड़े थे पर धीरे-धीरे आस पास के तमाम लोग जुड़ते चले गये. इस मंदिर के प्रति आस्था इतनी अधिक है कि पूजा में पूरे प्रमंडल के डाककर्मी यहां जुटते हैं. इस पूजन स्थल से जुड़ीं महिलायें बताती हैं कि मैया के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता सब की मुरादें पूरी होती है. सभी लोगों की आस्था इस मंदिर से बढ़ गई है. इस पूजन स्थल पर बनने वाली प्रतिमा पर बंगाल की छाप साफ दिखती है पर पूजा की मिथिला संस्कृति हावी है. शुरुआती दौर में दामोदर झा पूजा कराते थे पर उनकी मौत के बाद एक अन्य विद्वान पुरोहित के द्वारा सम्पूर्ण विधि विधान एवं भक्ति भाव से पूजा का आयोजन किया जाता है. इस पूजा से जुड़े रहने वालों में अधिकांश लोग डाककर्मी हैं और सभी इस मौके सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं. यहां के लोग कला और संस्कृति के प्रेमी हैं. पूजा के दौरान बच्चे काफी उत्साह के साथ नाटक का मंचन करते हैं इसके लिए वे पहले से तैयारी करते हैं घर के लोग भी इस तैयारी में उनका सहयोग करते हैं. इसके अलावा बच्चे नृत्य और संगीत की भी तैयारी करते हैं और अष्टमी व नवमी की पूजा के दौरान उसकी प्रस्तुति भी देते हैं. दुर्गा पूजा में यहां के लोग जगराता खूब पसंद करते हैं और इसके लिए रात्रि जागरण करने वाले कलाकारों की टीम बाहर से बुलाई जाती है.
फोटो. 27 पूर्णिया 21- गिरजा चौक स्थित डाकघर दुर्गा मंदिरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है