Patriotism: देशभक्ति का जज़्बा, शहीदों की कुर्बानी को सिर्फ दो दिन नहीं, हर दिन करें सलाम!
Patriotism: स्वतंत्रता संग्राम के वीर शहीदों की याद में 15 अगस्त और 26 जनवरी ही क्यों? हर दिन उनके बलिदान की कहानियों को जीवित रखें और सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें.
Patriotism: दिवस विशेष पर यह अक्सर सुनने को मिलता है कि शहीदों के मजार पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का यही बांकी निशां होगा… यह जुमला हर साल दुहराया जाता है पर हम अपने उन शहीदों के स्मारकों को भी सहेज कर नहीं रख पाते जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते सीने पर अंग्रेजों की गोलियां खायी थी. हमें तो साल में सिर्फ दो बार ही शहीदों के मजार की याद आती है. वह दिन होता है 15 अगस्त और 26 जनवरी का जब इसके कुछ रोज पहले शहीद स्थलों की सफाई की जाती है और इसका रंग-रोगन किया जाता है. याद रहे कि पूर्णिया जिले में कुल 52 लोगों ने शहादत दी थी. इसमें दो लोगों को फांसी की सजा दी गई थी जबकि 8 सौ लोगों को अंग्रेजों ने जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया था. आजादी की लड़ाई के दौरान पूर्णिया जिले के 8 थानों पर गोलियां चली थीं और तीन थानों पर हमला बोल जनता ने अपना कब्जा जमाया था. इस साल फिर 15 अगस्त करीब आ गया है जिससे शहीदों के स्मारक प्रासंगिक हो उठे हैं.
Patriotism: शहीद स्मारक नहीं बन सका दर्शनीय स्थल
शहर के टाउन हॉल परिसर में अवस्थित है यह शहीद स्मारक जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी शहादत देने वालों के नाम अंकित हैं. इस दौरान जिले के कुल 52 लोगों ने अंग्रेजों से लोहा लेने के दौरान देश की बलिवेदी पर अपनी जान न्योछावर कर दी थी. हर 15 अगस्त को इन शहीदों को नमन किया जाता है और विडंबना है कि इस स्थल की साफ-सफाई भी 15 अगस्त या 26 जनवरी के एक-दो रोज पहले ही होती है. बुजुर्गों का कहना है कि इस स्थल को कुछ इस तरह का स्वरुप दिया जाना चाहिए कि यह दर्शनीय स्थल बन जाए और नई पीढ़ी के युवा यहां पहुंच कर यह जानकारी प्राप्त कर पाएं कि देश की आजादी में अपने पूर्णिया का भी अहम योगदान रहा है. यहां हर साल 15 अगस्त व 26 जनवरी को कार्यक्रम होते हैं पर इस जगह को दर्शनीय स्थल बनाने की दिशा में अभी तक कोई पहल नहीं हो सकी.
Patriotism: अंग्रेजों की हैवानियत की याद दिला रहा शहीद ध्रुव स्मारक
जिला मुख्यालय से करीब पांच किमी. दूर वनभाग पुल के समीप एनएच 107 के किनारे अवस्थित है शहीद ध्रुव स्मारक. बाल्यावस्था में ही शहीद ध्रुव ने स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर थाम ली थी. वे पुराने पूर्णिया जिला के कटिहार थाने में झंडा फहराने पहुंच गये थे. अंग्रेज सिपाहियों ने बंदुक लेकर रास्ता रोक लिया था और आगे बढ़ने से मना कर रहे थे. मगर, जुलूस का नेतृत्व कर रहे ध्रुव देश भक्ति के जज्बा में इस कदर डूबे थे कि अंग्रेजों की धमकी की परवाह किए बगैर थाने में तिरंगा लहरा दिया. मगर इस दौरान अंग्रेजों की गोलियां सीने को छलनी कर गईं. उन्हें घायलावस्था में कटिहार से पूर्णिया सदर अस्पताल लाया गया जहां उन्होंने अंतिम सांसें ली. उस समय उनका अंतिम संस्कार वनभाग पुल के समीप हुआ जहां आज स्मारक भी बना है जहां चारों तरफ जंगल लगा रहता है. ठीक 15 अगस्त व 26 जनवरी के पहले सफाई के साथ रंग-रोगन किया जाता है.
Patriotism: मोहल्ले के लोग करते शहीद कुताय स्मारक की देख-रेख
शहर के डॉलर हाउस के निकट न्यू सिपाही टोला में अमर शहीद कुताय साह का स्मारक बना हुआ है. कुताय साह 1942 में 9 अगस्त को अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हो गये थे. देश की आजादी के लिए उनकी दीवानगी की बानगी भले ही इतिहास के पन्नों में दफन है पर उनका यह स्मारक आज भी उनकी शहादत की याद दिला रहा है. अन्य स्मारकों की तुलना में इस स्मारक की स्थिति कुछ बेहतर इसलिए है कि यहां आस पास रहने वाले काफी संवेदनशील है. बीच के सालों में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत इसका जीर्णोद्धार किया गया था. यहां स्मारक के समीप सफाई भी दिखी. इस स्मारक के प्रति यहां रहने वाले नागरिक भी काफी सजग दिखते हैं.
Patriotism: दो शहीदों के नाम पर है बाटिका पर न फूल हैं न पौधे
दो शहीदों के नाम से बनी अमर शहीद ध्रुव कुताय स्मृति बाटिका में बाटिका जैसा कुछ भी नहीं है. मधुबनी चौक पर चहारदीवारी से घिरे इस बाटिका का निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि यहां से आते-जाते लोगों को भी अपने शहीदों का स्मरण रहे. मगर विडम्बना है कि इस बाटिका में न तो फूल हैं और न ही पौधे. कुछ साल पहले इसका जीर्णोद्धार जरुर किया गया था पर इसे बाटिका का स्वरुप नहीं मिल सका. मधुबनी में शहीदों के नाम से बनी बाटिका की तस्वीर खुद बयां कर रही है कि हम अपने शहीदों का सम्मान किस हद तक करते हैं. शहर की घनी आबादी के बीच अवस्थित इस बाटिका का न तो रंग-रोगन हुआ करता है और न ही उसकी सलीके से सफाई ही होती है.
Patriotism: शहर के गांधी स्मारक की स्थिति अच्छी नहीं
शहर के लाइन बाजार के समीप करीब एक दशक पूर्व बने गांधी स्मारक की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. यहां पुशपालन विभाग के अस्पताल के निकट अवस्थित गांधी स्मारक के लिए छत है, पक्का चबुतरा बना है और लोहे की ग्रिल से घेराबंदी भी कर दी गई है. तस्वीर बयां कर रही है कि इसका रख-रखाव व्यवस्थित नहीं है. चबुतरा भी टूटने लगा है. शहर के नागरिकों का कहना है कि इस स्मारक का ताला भी खास तारीख को ही खुलता है जबकि इसे दर्शनीय बनाए जाने की जरुरत है. शहर के नागरिकों ने बताया कि यह स्मारक शहर की मुख्य सड़क के किनारे व्यस्ततम इलाके में है. इस लिहाज से इसे विकसित स्वरुप दिया जाना चाहिए ताकि इधर से गुजरने वाले लोग अपने राष्ट्रपिता का दीदार करीब से कर सकें. इस स्मारक के समीप पार्क आदि का निर्माण और जीर्णोद्धार लाजिमी माना जा रहा है. फोटो- 9 पूर्णिया 6- गा