28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कृष्ण जन्माष्टमी पर होती है बहन योगमाया की पूजा, मिथिला में मनाया जाता है नंद की बेटी का भी जन्मोत्सव

janmashtami: बिहार के पूर्वी मिथिला अन्तर्गत पूर्णिया में विगत 136 वर्षों से कृष्णाष्टमी के अवसर पर भगवान कृष्ण के साथ दुर्गा की पूजा विधिवत की जाती रही है. बनैली राज परिवार के चंपानगर ड्योढ़ी में 1885ई. के आसपास राजमाता सीतावती देवी ने कृष्णाष्टमी की पूजा शुरु की, जो आजतक अबाधित रूप से सम्पादित हो रही है.

janmashtami: पटना. मिथिला में जन्माष्टमी को “कृष्णाष्टमी” कहा जाता है और ऐसे अलग नामकरण के पीछे एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण कारण है जो कृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी से स्पष्टतया अलग पहचान देता है. बिहार के पूर्वी मिथिला अन्तर्गत पूर्णिया में विगत 136 वर्षों से कृष्णाष्टमी के अवसर पर भगवान कृष्ण के साथ दुर्गा की पूजा विधिवत की जाती रही है. बनैली राज परिवार के चंपानगर ड्योढ़ी में 1885ई. के आसपास राजमाता सीतावती देवी ने कृष्णाष्टमी की पूजा शुरु की, जो आजतक अबाधित रूप से सम्पादित हो रही है. सदियों से हो रहे इस आयोजन को आज भी बनैली राज परिवार पूरी भव्यता से करता है.

कृष्ण की इस बहन को भूल गयी दुनिया

राज परिवार के सदस्य गिरिजानन्द सिंह कहते हैं कि भगवान कृष्ण और रासेश्वरी राधा के बारे में कौन नहीं जानता. भगवान कृष्ण की आठों पटरानियों से भी लोग अवगत हैं, लेकिन उनकी बहनों में सिर्फ सुभद्रा की ही चर्चा होती है, लेकिन योगमाया-कात्यायनी-दुर्गा को लोग भूल से गए हैं. श्रीकृष्णोपासना की धारा से उन्हें पृथक कर दिया गया है. लेकिन, मिथिला के लोग उन्हें आज भी नहीं भूले हैं. आज भी मिथिला में कई स्थानों पर श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी के पुनीत पर्व पर हम कृष्ण के साथ-साथ उनकी प्रिय बहन योगमाया का जन्मदिवस भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं.

कृष्ण के बदले सौंप दी बेटी

गिरिराजनंद सिंह कहते हैं कि भाद्र-कृष्णपक्ष की अष्टमी के मध्यरात्रि में जब मथुरा के कारावास में भगवान अवतरित हुए, उसी समय गोकुल में यशोदा के गर्भ से भगवती योगमाया- कात्यायनी का भी जन्म हुआ. प्रसव की आसन्न वेदना से बेसुध यशोदा समझ भी न पाई कि उसने एक अत्यन्त रूपवती कन्या को जन्म दिया है. पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार नन्द महाराज ने आनन फानन में वह कन्या वसुदेव को सौंप दी और बदले में वसुदेव से नवजात कृष्ण को ग्रहण कर, यशोदा के निकट लिटा दिया. जिस प्रकार नंदगोप ने राष्ट्र-धर्म के लिए, नवजात कृष्ण के बदले अपनी नवजाता योगमाया का बलिदान देने का दृढ़संकल्प लेकर वह कन्या वसुदेव को सौंप दी थी, वह प्रसंग सदैव राष्ट्र-धर्म निर्वहन के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में याद रखा जाएगा.

साक्षात दुर्गा का रूप थीं कन्या

नंद महाराज को पता ही न था कि वह कन्या तो साक्षात दुर्गा का रूप थीं, भगवान् विष्णु की योगमाया थीं, देवी कात्यायनी थीं. उसे मार सके, ऐसा कोई विश्व में न था. सो, जब कंस ने उसे ही देवकी की आठवीं संतान समझ कर मारना चाहा तो वह महामाया कंस के हाथों से फिसल कर आसमान में उड़ गईं और अपने वास्तविक अष्टभुजा स्वरूप में आकर कंस की मूर्खता पर अट्टहास कर उठीं. देवी ने हँस कर कहा “अरे मूर्ख! तेरा काल तो गोकुल में जीवित है!” ऐसा कह कर अष्टभुजा देवी अंतर्धान हो गईं और विन्ध्याचल में निवास करने लगीं. इस प्रकार कृष्ण की पोष्य-माता यशोदा की पुत्री होने के कारण भगवती योगमाया भगवान कृष्ण की सह-जन्मा बहिन सिद्ध हुईं.

Also Read: दरभंगा एयरपोर्ट का टर्मिनल-टू होगा री-अरेंज्ड, बढ़ेगा वेंटिग एरिया, देखें नया लुक

पुतना की प्रतिमा, लेकिन राधा नदारद

शाक्त धर्मानुयायी मिथिला-वासी, कृष्णाष्टमी के शुभ अवसर पर दोनों भाई-बहन का जन्मोत्सव मनाते हैं. गोकुल के गोप-कुल और मथुरा के क्षत्रिय यादव-कुल के सदस्यों के साथ, दोनों की पूजा होती है. बनैली चंपानगर में कृष्णाष्टमी के अवसर पर जो मूर्ति-व्यवस्था होती है, उससे एक पारिवारिक चित्र (फैमिली फोटो) का भान होता है. पिता वसुदेव, माता देवकी, विमाता रोहिणी, अग्रज बलराम और बहन सुभद्रा के साथ गरुड़ पर सवार चतुर्भुज कृष्ण अपनी प्रधान पटरानी रुक्मिणी और सत्यभामा के साथ विराजमान रहते हैं. बगल में पोष्य-माता यशोदा, पोष्य-पिता नन्दगोप और बहन कात्यायनी-दुर्गा विराजमान होती हैं. बालकृष्ण को गोद में बिठाए हुए राक्षसी पूतना भी रहती हैं. भगवान ने उन्हें वरदान में मातृपद जो दिया था। है ना, बिल्कुल पारिवारिक चित्र की तरह! आश्चर्यजनक रूप से राधा अनुपस्थित हैं. राधा की अनुपस्थिति भी पारिवारिक चित्र की संपुष्टि करती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें