लॉकडाउन : बिचौलियों ने बढ़ायी मक्का किसानों की मुसीबत, एक हजार से नीचे गिरा मक्का का भाव
कोरोना महामारी की वजह से देशभर में लॉकडाउन के कारण प्रखंड क्षेत्र के मक्का किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. जबकि किसानों की मुख्य फसल मक्का है. लॉक डाउन की अवधि में किसानों का तैयार मक्का का फसल का उचित कीमत नहीं मिल रहा है.
भवानीपुर: कोरोना महामारी की वजह से देशभर में लॉकडाउन के कारण प्रखंड क्षेत्र के मक्का किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. जबकि किसानों की मुख्य फसल मक्का है. लॉक डाउन की अवधि में किसानों का तैयार मक्का का फसल का उचित कीमत नहीं मिल रहा है. जिससे किसानों में मायूसी छायी हुई है. लॉकडाउन की वजह से मक्का से तैयार होने वाली सभी उद्योग बंद होने के कारण मक्का की खपत नहीं होने से इसका असर किसानों पर आ पड़ा है. किसानों में त्राहिमाम है. उनके सारे अरमान हवा हवाई हो गये हैं. प्रखंड क्षेत्र में 80 प्रतिशत किसान ही हैं. उनका भविष्य फसल पर ही निर्भर करता है. फसल की कीमत नहीं मिलने से उनका हौसला पस्त हो गया है. जब किसान फसल लगाने का काम करते हैं. तो उन्हें हर चीज महंगी कीमत पर मिलती है.
जब वे मक्का के बीज खरीदने जाते हैं तो 4 किलो का पैकेट की कीमत 4 सौ से 12 सौ रुपया चुकानी पड़ती है. इस बार तो कुछ ऐसे भी बीच बाजार में उपलब्ध हुआ था जो ऊपर से देखने में भुट्टा ठीक था लेकिन अंदर दाना बहुत ही कम था. जबकि 01 एकड़ में फसल लगाने में 15 किलो बीज लगता है. इसके साथ साथ खाद, जोताई, पटवन, दवाई, मजदूरी आदि खर्च को लेकर 20 से 25 हजार रुपया प्रति एकड़ किसान को खर्च करना पड़ता है. इसके बावजूद किसानों का खेत पर रात दिन जाना अलग. लेकिन जब किसान का फसल बेचने का समय आता है तो उसके फसल का कीमत कौड़ी भाव में बिकता है. इस वर्ष 900 से 1000 प्रति क्विंटल मक्का की बिक्री है उसे भी लेने वाला व्यापारी कम ही दिखते हैं .प्रखंड मुख्यालय में तो कुछ व्यापारी मिल भी जाते हैं.
पंचायत स्तर पर तो इस वर्ष व्यापारी कहीं नजर ही नहीं आता है. इसके कारण उसके फसल की कीमत और भी कम होती है. किसान पीतांबर यादव ,बिंदेश्वरी विमल डुमरा निवासी, पूर्व मुखिया डॉ अमित कुमार सिंह, पूर्व प्रखंड प्रमुख चंद्रशेखर चौधरी, महेश लाल चौधरी, रवि शंकर चौधरी, आनंद कुमार यादुका, सुशांत कुमार सहित दर्जनों किसानों ने मक्का फसल की दुर्गति को देखते हुए मक्का आधारित उद्योग लगाने की मांग की है. डॉ अमित कुमार सिंह पेशे से डॉक्टर थे जिन्हें छोड़ कर समाज सेवा और किसान बनना पसंद किया जबकि इनके पिता एवं परिवार के कई सदस्य डॉक्टर हैं जो सरकारी सेवा में अपनी सेवा देने का काम कर रहे हैं. वे कहते हैं कि दूसरे प्रदेशों में जाने वाले श्रमिकों को अपने यहां काम मिल सके और किसानों को उनकी फसल का कीमत. अगर उन्हें काम मिल जाएगा तो दूसरे प्रदेश क्यों जाएंगे.
बेरोजगारी के कारण ही आज हमारे यहां के श्रमिक दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करते हैं. मक्का उद्योग एवं केला पर आधारित उद्योग बन जाता है तो हमारे श्रमिकों की बेरोजगारी दूर हो सकती है और किसानों के फसल की अच्छी कीमत मिल जाएगी .किसानों ने बताया हमेशा प्रकृति की मार और बाजार के मूल्य का मार किसान को ही झेलना पड़ता है. जिससे किसान हमेशा कर्ज में दबे रहते हैं. उनका सारा विकास रूक जाता है.