मधुबनी दुर्गा मंदिर: श्रद्धा और आस्था के साथ जुड़ा है भावनात्मक रिश्ता
मधुबनी स्थित दुर्गा मंदिर से न केवल आस्था जुड़ी हुई है बल्कि मधुबनी और चूनापुरवासियों का भावनात्मक रिश्ता भी जुड़ा हुआ है. यहां जब देवी विदा होती है तो मधुबनी के तमाम लोग सड़कों पर कतारबद्ध खड़े हो जाते हैं और आंखों में आंसू लिए मां को इस कदर विदा करते हैं मानो कोई अपना उनसे जुदा हो रहा हो.
1895 से शुरू हुई दुर्गापूजा
संस्थापक- स्व.अलख निरंजन प्रसाद, चेतनारायण प्रसाद, दुर्गा प्रसाद, नानक बाबू, बनखंडी राय, यहां दो माह पूर्व से ही शुरू हो जाती है पूजा की तैयारी, मधुबनीवासियों का दुर्गा पूजा से है भावनात्मक रिश्ता, विसर्जन के दिन मां को अश्रुविगलित नेत्रों से करते हैं विदापूर्णिया. मधुबनी दुर्गा स्थान में हर साल की भांति इस साल भी हर्षोल्लास के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन हो रहा है. मंदिर में संगमरमर की माता दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती एवं भगवान कार्तिक की प्रतिमा स्थापित है. लेकिन मिट्टी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है. यहां वर्ष 1917 से दुर्गा पूजा होती आयी है. हालांकि जानकारी के मुताबिक वर्ष 1895 से पूजा आरंभ हुई थी. यहां माता की प्रतिमा का विसर्जन मधुबनी वासी कंधे पर लेकर चूनापुर घाट में करने की परंपरा है और यह दृश्य हर किसी की आंखें नम कर जाता है. मधुबनी स्थित दुर्गा मंदिर से न केवल आस्था जुड़ी हुई है बल्कि मधुबनी और चूनापुरवासियों का भावनात्मक रिश्ता भी जुड़ा हुआ है. यहां जब देवी विदा होती है तो मधुबनी के तमाम लोग सड़कों पर कतारबद्ध खड़े हो जाते हैं और आंखों में आंसू लिए मां को इस कदर विदा करते हैं मानो कोई अपना उनसे जुदा हो रहा हो. पूरे प्रमंडल में माता दुर्गा की भक्ति का यह दृश्य अन्यत्र कहीं नजर नहीं आता. यहां हर कोई किसी परिवार की तरह दुर्गा मंदिर से जुड़ा हुआ है. पूजा में भी लोग इस तरह भाग लेते हैं मानो उनके अपने घर की पूजा हो.
कहते हैं पहले यह मंदिर चुनापुर में स्थापित था. दंतकथा के अनुसार स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि चुनापुर के जमींदार बनखंडी राय एवं वन सम्मन राय, मधुबनी के अधिवक्ता अलख निरंजन प्रसाद, चेत नारायण, दुर्गा प्रसाद, नानक बाबू मोकतार को माता का स्वप्न हुआ कि पूजन स्थान परिवर्तन कर कोशी के पूर्वी भाग मधुबनी मोहल्ले में स्थापित करें. इन संस्थापक सदस्यों को स्वप्न के पश्चात मां के इच्छानुकुल स्थान परिवर्तन के लिए वहां की मिट्टी का संकल्प लेकर कलश निकाला गया. वर्तमान में अवस्थित स्थान पर कलश आकर विखंडित हो गया. लोगों ने माना कि मां ने अपना स्थान चुन लिया है. वह जमीन अलख निरंजन प्रसाद की थी. उन्होंने दुर्गा मंदिर के नाम इसे दान दे दिया. आज वहां स्थानीय सहयोग से भव्य मंदिर निर्मित है. आज स्थानीय मधुबनीवासी काफी श्रद्धा विश्वास के साथ प्रतिवर्ष शारदीय दुर्गा पूजा करते आ रहे हैं. पूजा की तैयारी में समिति के अध्यक्ष त्रिभुवन प्रसाद, सह सचिव विजय कुमार सिन्हा, गगन जयपुरियर, संयोजक श्याम सुंदर प्रसाद, कार्यकारी अध्यक्ष विश्वनाथ झा, उपाध्यक्ष श्रीकांत सिन्हा, मीडिया प्रभारी राजेश केसरी, कुमार दीपक वर्मा, सदस्य मनीष कुमार, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, विजय कुमार, मनीष खन्ना, अनिल कुमार सिन्हा, आलोक कुमार सिन्हा आदि लगे हुए हैं.कहते हैं सचिव
मधुबनी दुर्गा मंदिर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हर्षोल्लास के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है. यहां भव्य पंडाल का निर्माण कार्य आखिरी चरण में है. यहां शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के श्रद्धालु भी आते है. यहां मधुबनी दुर्गा पूजा समिति के सभी सदस्य दुर्गा पूजा की तैयारी में रात दिन लगे हुए हैं. फोटो: 7 पूर्णिया 4- कपिलदेव प्रसाद, सचिवफोटो: 7 पूर्णिया 3- मधुबनी दुर्गा मंदिरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है