ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ लड़ने वाले नीडर योद्धा थे शहीद तिलका मांझी

शहीद तिलका मांझी का 275वां जन्म दिवस

By Prabhat Khabar News Desk | February 11, 2025 5:36 PM

बिहार आदिवासी अधिकार फोरम ने मनाया अमर शहीद तिलका मांझी का 275वां जन्म दिवस पूर्णिया. मंगलवार को पूर्णिया के टैक्सी स्टैंड स्थित अंबेडकर सेवा सदन के सभागार में बिहार आदिवासी अधिकार फोरम के तत्वावधान में देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद तिलका मांझी का 275 वां जन्म दिवस के मनाया गया. इस मौके पर वक्ताओं ने तिलका मांझी के जीवनी और उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं मंच संचालन अधिवक्ता रजनीश टुडू ने किया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जनजातीय मामलों के विशेषज्ञ प्रो प्रमोद कुमार सिंह, विशिष्ट अतिथि के रूप में जदयू के वरिष्ठ नेता एसके विमल, मनोज पासवान, प्रमुख वक्ता के रूप में मायाराम उरांव, युगल हंसदा, राहुल बास्की, अरविंद मुर्मू, हरिलाल पासवान, राजकुमार टुडू आदि उपस्थित थे. अध्यक्ष श्री टुडू ने कहा कि तिलका मांझी हमारे देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत में पहली बार सन् 1771 से 1785 तक लगातार ब्रिटिश शासन के अन्याय एवं अत्याचार के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन का नेतृत्व किया था. उन्होंने आदिवासियों को संगठित कर गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता को हिला कर रख दिया. उन्होंने इस दौरान भागलपुर के तात्कालीन कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड को मार गिराया. देश की आजादी और मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया परन्तु इतिहासकारों ने तिलका मांझी को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे. भारतीय इतिहास के पन्नों में वह स्थान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था. लेकिन आज भी वे हरेक आदिवासियों के दिलों में जिंदा हैं और हमेशा रहेंगे. मुख्य अतिथि प्रो.प्रमोद कुमार सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों ने अग्रणी भूमिका निभाई है. जल जंगल और जमीन की रक्षा के लिए आदिवासियों ने हमेशा संघर्ष किया है और उसका यह संघर्ष आज भी जारी है. जदयू के वरिष्ठ नेता मनोज पासवान ने कहा किआज भी आदिवासियों से कपटपूर्वक उनकी जमीन छीनी जा रही है. सरकार से जमीन का बंदोबस्ती पर्चा तो मिल गया लेकिन उसपर दखल कब्जा किसी ओर लोगों का है.कब्जा लेने के लिए आदिवासियों को आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है. कार्यक्रम के अंत में संजय सोरेन ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

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