अरविन्द कुमार जायसवाल, बीकोठी. दिवराधनी गांव स्थित मां दुर्गा मंदिर लगभग 150 वर्ष प्राचीन है. 150 वर्ष पूर्व यहां के ग्रामीण मां दुर्गा की पूजा अर्चना एवं बलि के लिए शिलानाथ रुपौली जाया करते थे. बाद में ग्रामीणों ने अपने गांव दिवराधानी में माता का दरबार सजाने का प्रण लिया. उस जमाने में छागर बलि के लिए रुपौली पहुंचे ग्रामीण बच्चा सिंह, मखन सिंह, भोजन सिंह,बिहारी सिंह, लटूरी सिंह, नेती यादव एवं अन्य ग्रामीण छागर का बलि देकर छागर को दिवराधानी लाये एवं जल्दबाजी में गांव में फूस का एक घर बनाकर उसमें पूजा अर्चना शुरू की. देखते ही देखते ग्रामीणों की आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा और सभी ग्रामीण वहां मां दुर्गा की पूजा अर्चना में जुट गए. तब से हर वर्ष गांव में ही दुर्गा पूजा की जाने लगी. कालांतर में फूस से पक्का भवन हो गया. यहां मैथिली विधि से पूजा अर्चना होती है और अष्टमी और नवमी को मुख्य पूजा की जाती है. यहां महानवमी के दिन बली प्रदान का कार्य किया जाता है.हर वर्ष नवमी के दिन करीब 3 से 4 हजार छागर की बलि दी जाती है ..मान्यताओ के अनुसार यहां एक ही व्यक्ति द्वारा सभी छागरों की बलि एक ही प्रहार से देना होता है.बलिकर्ता उत्तम सिंह ने बताया कि माता की कृपा से अकेले हजारों छागर की बलि दे पाता हूं. प्रत्येक वर्ष बलि चढ़ाने वाले की अपार भीड़ बढ़ती है .प्रखंड ही नहीं सीमावर्ती जिला मधेपुरा के मुरलीगंज ,बिहारीगंज व अन्य क्षेत्र से भी श्रद्धालु यहां माता के पास हाजिरी लगाते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर बलि प्रदान करते है. एक समय कोसी नदी की मुख्य धार दिवराधनी पंचायत के आसपास से होकर गुजरती थी. बाढ़ से मां सदैव रक्षा करती है. वर्ष 2008 की कुसहा त्रासदी में भी लोग दिवराधनी के दुर्गा स्थान में आ कर मन्नत मांगते थे और प्रलय से बचाने का आग्रह किया करते थे. जबकि दिवराधनी पंचायत के आसपास के कई गांव पूर्ण जलमग्न हो गये थे लेकिन दिवरा पंचायत वर्ष 2008 की कोसी त्रासदी में पूर्णतया सुरक्षित रहा . मेलाध्यक्ष चंद्रभानु सिंह उर्फ पिल्टा सिंह ने बताया कि पूजा स्थल महीने भर आकर्षण का केंद्र बना रहता है. जय मा भवानी नाट्य कला परिषद द्वारा व्यवस्था में सहयोग किया जाता है. फोटो. 8 पूर्णिया 7- दिवराधनी गांव स्थित दुर्गा मंदिर
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