देश की आजादी के प्रति युवाओं का अलग-अलग नजरिया
कहा-देश तो आजाद हुआ पर कुंठाओं से नहीं मिली है मुक्ति
पूर्णिया. युवा मानते हैं कि देश को जो आजादी मिली है पर उसके असली मकसद पर मंथन की जरुरत है. युवाओं की नजरों में अंग्रेजों की गुलामी से तो अपना देश आजाद जरुर हुआ पर उन कुंठाओं से मुक्ति नहीं मिली जिसके उद्देश्य से आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी. वे कहते हैं कि आज़ाद भारत की आत्मा आजाद नही है. युवा यह तो मानते हैं कि हमें जो आजादी मिली है वह अनमोल है पर यह नहीं मानते कि इस आजादी को सम्पूर्णता मिली है. वे कहते हैं कि उस समय देश अंग्रेजों के सामने विवश था और आज समस्याओं के सामने विवश है. एक तरफ जहां जमीनी स्तर पर विकास की गति धीमी है वहीं गरीबी, बेबसी, शोषण और उत्पीड़न की गुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकी है. पूर्णिया के युवाओं का मानना है कि गांधी जी ने समरस समाज की बातें कही थी पर आज भी अपना समाज बटा हुआ है. युवाओं का कहना है कि अभी हमें सही मायने में आजादी का अर्थ समझने की जरुरत है. यहां प्रस्तुत है कुछ युवाओं के विचार जिसमें देश की आजादी के प्रति उनकी सोच की झलक मिलती है.
——————कहते हैं पूर्णिया के युवा
1. यह सच है कि स्वतंत्रता आंदोलन के लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों ने भारत छोड़ा और आजादी नसीब हुई. मगर, देश की आजादी का मतलब है हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी,बोलने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. मगर, विगत वर्षों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जिस तरह आघात होते रहे हैं उससे यही लगता है कि हम स्वतंत्र भारत में रहते हैं. बंगाल में एक डाक्टर को थप्पड़ मारने पर पूरे देश में डाक्टर विरोध होता है पर उन्नाव जनपद एक नाबालिग से दुष्कर्म की घटना के बाद पीड़िता का परिवार और वकील भी मौत से जूझ रहा है. इन विडम्बनाओं से भी हमें आजादी मिलनी चाहिए. सामाजिक विषमताओं और विसंगतियों की गुलामी तो आज भी बरकरार है. इसके लिए हमें खुद मंथन करना चाहिए कि इन विसंगतियों से कैसे आजादी मिलेगी. फोटो- 10 पूर्णिया 1- निशु कुमारी, छात्रा, महिला कालेज2. आजादी के 77 साल बाद भी हमारे देश का नागरिक आजाद नहीं हैं. देश आजाद हो गया पर हम अभी भी बेड़ियों से जकड़े हैं. ये बेड़ियां हैं अज्ञानता की, जातिवाद की, धर्म की,आरक्षण की, गरीबी की, सहनशीलता और मिथ्या अवधारणाओं की. आज क्यों इतने सालों बाद भी हम गरीबी में कैद हैं, क्यों जातिवाद की बेड़ियां हमें आगे बढ़ने से रोक रही हैं?, क्यों आरक्षण का जहर हमारी जड़ों को खोखला कर रहा है? प्रेम व भाईचारे का संदेश देने वाला धर्म क्यों हमारे बीच वैमनस्यता बढ़ा रहा है. यही वे स्थितियां हैं जो हमें आजादी के मकसद से अलग करती हैं. मगर इसके लिए हमें स्वयं को शब्दों से नहीं कर्मों से अभिव्यक्त करना चाहिए क्योंकि बड़ी मुश्किलों से देश को आजादी मिली है.फोटो-10 पूर्णिया 2- भाव्या भारती, छात्रा, महिला कालेज
3. अगर देखा जाए तो अंग्रेजों को सिर्फ भगा देना आजादी का मकसद नहीं था. जाते-जाते अंग्रेज हमें जिस आर्थिक गुलामी की जंजीरों से जकड़ गये थे उससे मुक्ति का उद्देश्य भी इसमें छिपा था. यही वजह है कि गांधी जी ने कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने पर जोर दिया था. इस हिसाब से देखा जाए तो आज हर हाथ में रोजगार होता और गरीबी-बेबसी की नौबत नहीं रहती. उस समय सामाजिक समानता की बातें की जा रही थी पर आज इस तरह का कुछ भी नहीं है. आजादी के करीब सात दशकों में भारत के विकास की बात की जाय तो इसकी गति काफी धीमी दिखेगी. यह सत्य है कि पंचवर्षीय योजना विकास की गति तेज करने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करती है फिर भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं.फोटो-10 पूर्णिया 3- कुमारी आर्या, छात्रा, महिला कालेज4. स्वतंत्र भारत जिसकी सबसे मजबूत पहलू है आज़ादी. हमारे पूर्वजों ने हमें आज़ादी दिलाई बस इसलिए कि हम अपने दिल से एक सुंदर भविष्य की रचना कर सकें. मगर, आज की युवा पीढ़ी में आजादी का इस्तेमाल देश की रचना के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए अधिक कर रहे हैं. आजादी का यहां वह महत्व नहीं दिखता जिसकी कल्पना अंग्रेजों से लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी. हम तो यही कहेंगे- ‘बदल गए है आज़ादी के मायने इस देश में,लड़ झगड़ रहे वो जानवरों के भेष में, कि फिर से बंधना ये देश है चाहता, जो बांध दे इसको रीति रिवाज और अनुशासन के परिवेश में.’ अगर हमें आज़ादी मिली है तो हमें इसका देश हित में भी उपयोग करना चाहिए और एक सुंदर भविष्य को गढ़ना चाहिए.
फोटो- 10 पूर्णिया 4- आकाश शर्मा, छात्र, पूर्णिया कालेज5. बड़ी मुश्किलों और सैकड़ों की शहादत के बाद देश आजाद हुआ पर आज यह आजादी भ्रष्टाचार, परिवारवाद,जातिवाद और सम्प्रदायवाद में उलझ कर रह गई है. हमारा समाज कई टुकड़ों में बंट गया है. बेहतर भविष्य बनाने के लिए युवा देश छोड़ विदेश जाने लगे हैं. इन विसंगतियों से त्रस्त आजादी को भला मुक्ति कौन दिलाए. मुझे लगता है कि आजादी को व्यापक अर्थ में देखा जाना चाहिए. सामाजिक विषमता, गरीबी, बेरोजगारी आदि की जड़े इतनी मजबूत हो गई हैं कि हमें स्वतंत्र देश में होने का अहसास कभी-कभी नहीं होता. कहीं बड़े संस्थानों में एडमिशन लेना हो तो पैरवी चाहिए, कहीं नौकरी लेनी है तो पैरवी चाहिए. इस तरह की ढेर सारी विडम्बनाएं हैं जिनके खत्म होने के बाद आजादी के मकसद को पूर्णता मिल सकती है.
फोटो- 10 पूर्णिया 5- अमन चौधरी, छात्र, पूर्णिया कालेज6. भारत को ब्रिटिश हुकुमत से आजादी तो मिल गई पर यह सवाल है कि क्या हम वाकई आजाद हो गये? अगर हमें आजादी मिली तो क्या हम उसका मोल चुका रहे हैं? अगर देखें तो देश-विदेश घूमना, पार्टीज में जाना, महंगे फोन, महंगे कपड़े तक हमारी आज़ादी सिमट कर रह गयी है. जबकि सच यही है कि रोज-रोज पैदा होने वाली मुश्किलें हमें फिर वही राह दिखा रही हैं. हमारा देश निरंतर मुश्किलों के गर्भ में समाता जा रहा है. कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा. साइबर क्राइम, रेप ,चोरी और अपराध की घटनाओं ने हमे दहशत में डाल रखा है. समाज में समानता नहीं है. अमीरी-गरीबी के बीच आज भी बड़ी खाई है. यह सवाल आज सामने खड़ा है कि क्या इसे ही हम आजादी कहते हैं?
फोटो-10 पूर्णिया 6- अंकित शर्मा, छात्र, पूर्णिया कालेजडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है