दस सालों से मां दुर्गा की मूर्तियां बना रही पूर्णिया की बेटी पूजा
बेजान मिट्टी में जान फूंक कर पूर्णिया की बेटी पूजा देवी दुर्गा की प्रतिमा बना रही है. वह पिछले दस सालों से मां दुर्गा की मूर्तियां बना रही है और आज मूर्तिकला में वह इतनी पारंगत हो गई है कि पूर्णिया के लोग उसके कायल हो गये हैं.
पूजा की मूर्तिकला के कायल हो गये हैं पूर्णियावासी,
सीजन में प्रतिमा निर्माण के लिए रहती है पूजा की डिमांड
विकास वर्मा,
पूर्णिया. बेटियां हर घर की जान होतीं हैं. वह मां की मुस्कान और पिता का अभिमान होती हैं. जन्म लेते ही लक्ष्मी की संज्ञा से विभूषित की जानेवाली ये बेटियां अब कहीं भी किसी से कम नहीं है. जी हां, बेजान मिट्टी में जान फूंक कर पूर्णिया की बेटी पूजा देवी दुर्गा की प्रतिमा बना रही है. वह पिछले दस सालों से मां दुर्गा की मूर्तियां बना रही है और आज मूर्तिकला में वह इतनी पारंगत हो गई है कि पूर्णिया के लोग उसके कायल हो गये हैं. वह प्रतिवर्ष नवरात्र शुरू होने से पहले ही मिट्टी को गूंथकर दुर्गा मां, सरस्वती समेत अन्य की मूर्ति बनाने में जुट जाती है. फिर उसमें आस्था के तरह-तरह के रंग भरकर एक आकर्षक रूप देती है.पूजा ने मूर्तिकला का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है. यह कला उसे अपने पिता से विरासत में मिली है. उसके पिता मूर्तिकार रामू भी एक मूर्तिकार हैं. आज 23 वर्षीय पूजा विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने की कला में इतनी माहिर हो चुकी है कि पूजन के आयोजनों में उसकी डिमांड अधिक होने लगी है. अभी वह अपने हाथों से मिट्टी को देवी दुर्गा की रूप दे रही हैं. लोग कहते भी हैं कि पूजा के हाथों की बनायी प्रतिमा हु ब हु देवी दुर्गा की तरह दिखती है. पिता रामू के सान्निध्य में वह मिट्टी के साथ वह सीमेंट की मूर्तियां भी सहज रूप से बना लेती है. पूछने पर पूजा बताती है कि वह छह साल की उम्र से ही पिता को अक्सर अकेले मूर्तियां बनाते देखती थी. बाद के दिनों में वह पिता की मदद के बहाने मिट्टी मंथने लगी. फिर धीरे-धीरे वह इस कला में निपुण होती चली गई और आज अपने बल पर अलग-अलग पंडालों में मूर्तियां बना रही है. अहम यह है कि महापुरुषों और व्यक्तिगत लोगों की भी तस्वीर देखकर उनकी मूर्तियां बनाती हैं. सबसे बड़ी बात तो यह कि इसमें वो किसी भी भाग के निर्माण के लिए किसी भी तरह के सांचे का इस्तेमाल नहीं करती.
बेटी की कला पर पिता रामू को है गर्व
मूर्तिकार रामू दा अपनी बेटी की इस कला से गौरवान्वित हैं. मूर्ति बनाने के दौरान बेटियों का साथ पाकर वे इतने खुश हैं कि अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर पाते, लेकिन उनकी आंखों में आए खुशी के आंसू यह बयां कर जाते हैं कि स्वयं मां जगदम्बा उनके घर बेटी बनकर आयी है. पूजा तीन बहन और दो भाई में सबसे बड़ी हैं. पूजा ने खुद मैट्रिक तक की पढ़ाई की है पर अपने भाई-बहन को शिक्षित करने में लगी हुई है. विभिन्न पूजा के साथ इनके भाई बहन मिलजुल कर मूर्ति निर्माण में उसकी मदद करते हैं. आज वह दुर्गा पूजा हो या सरस्वती पूजा में माता की प्रतिमा भगवान गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक भगवान की मूर्ति बना रही है. पूजा ने बताया कि विभिन्न अवसरों के लिए मूर्तियां बनाने के लिए काफी पहले से ही तैयारी करनी पड़ती है. दुर्गा माता की प्रतिमा नवरात्र शुरू होने से करीब एक माह पहले निर्माण कार्य शुरू कर देती हैं. मूर्ति बनाते वक्त सिर्फ इस बात का ख्याल रखा जाता है कि प्रतिमा हर कोने से स्वाभाविक तौर पर आम भारतीय महिला की ही तरह दिखे.
फोटो. 7 पूर्णिया 7- डीएसए ग्राउंड स्थित दुर्गा मंदिर में देवी दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप देती पूजाडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है