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दुर्गा पूजा सम्पन्न होने के साथ शहर के बाड़ीहाट में लक्ष्मी पूजा की तैयारी शुरू

दुर्गा पूजा और विजयादशमी के समापन के साथ शहर के बाड़ीहाट में लक्ष्मी पूजा की तैयारी शुरू हो गई है.

पूजन अनुष्ठान के साथ माता के दरबार के साथ सजेगा पारंपरिक मेला और बाजार

शुरू हो रहा है बाड़ीहाट का ऐतिहासिक मेला, लिट्टी चोखा के लिए जुटेंगे पूर्णियावासी

पूर्णिया. दुर्गा पूजा और विजयादशमी के समापन के साथ शहर के बाड़ीहाट में लक्ष्मी पूजा की तैयारी शुरू हो गई है. पूजन अनुष्ठान के साथ यहां एक तरफ जहां माता का दरबार सजेगा वहीं दूसरी तरफ पारंपरिक मेला और बाजार भी सजाया जाएगा. इसकी शुरुआत आगामी बुधवार यानी 16 अक्टूबर से हो जाएगी. हालांकि इसकी तैयारी दुर्गा पूजा के समय से ही हो गई थी पर अब इन तैयारियों को फाइनल टच दिया जा रहा है. इस चार दिवसीय आयोजन की तैयारी में समिति सदस्यों के साथ बाड़ीहाट के तमाम युवा जुटे हुए हैं.

यहां सजता है आस्था का संसार

शहर के बाड़ीहाट लक्ष्मी पूजा का इतिहास 76 साल पुराना है. यह पूजा का 77वां साल है. यहां लक्ष्मी पूजा के दौरान आस्था का संसार सजता है और उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब, जहां हर कोई मां लक्ष्मी के दर्शन के लिए बेचैन और बेताब रहता है. पूरे शहर में यह अकेली जगह है जहां लक्ष्मी पूजा का व्यापक स्वरुप देखने को मिलता है. पूजा के अवसर पर वर्षों से लगने वाला मेला खास आकर्षण का केन्द्र होता है जहां लोग जमकर खरीदारी भी करते हैं. दुर्गा पूजा खत्म होते ही लोग लक्ष्मी पूजा के प्रति आकर्षित हो जाते हैं.

कब हुई शुरुआत

अपना देश सन् 1947 में आजाद हुआ और बाड़ीहाट में लक्ष्मी की पूजा 1948 में शुरू हुई. उस समय स्व. नूनू सिंह, स्व. लक्ष्मी नारायण सिंह, शिवनाथ सिंह, रुपलाल पांडेय आदि समाज के प्रबुद्ध लोगों ने यहां लक्ष्मी पूजा की नींव डाली थी. पूजा समिति के बुजुर्ग बताते हैं कि पूजा के साथ मेला के आयोजन में जयकिशुन साह, एस के राय, रामनारायण सिंह आदि का योगदान भुलाया नहीं जा सकता. आज भी पूजन का आयोजन उसी स्वरूप में होता है.

जीवंत है मेला की परंपरा

बुजुर्गों की मानें तो पूजा की शुरुआत के समय ही यहां मेला की नींव पड़ गई थी. चूंकि उस समय इतनी आबादी नहीं थी और चारों तरफ जगह अधिक थी, इसलिए मेला का स्वरुप इतना बड़ा होता था कि चलते-फिरते बड़े बाजारों के अलावा तरह-तरह के खेल तमाशा वाले भी आते थे. तब चिडि़या घर और जादू का खेल बच्चों के लिए आकर्षण का केन्द्र होता था. कालान्तर में जगह सिमट गयी और इसी हिसाब से मेला का स्वरुप भी छोटा होता चला गया. खासतौर पर 1995 के बाद यह बदलाव आया पर अभी भी मेला लगता है.

सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम

बाड़ीहाट में लक्ष्मी पूजा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची रहती है. हालांकि पहले की तरह अब रामलीला और नाटक का मंचन नहीं होता किन्तु स्थानीय बच्चों के कार्यक्रम इस तरह लगातार होते हैं कि मेला बिल्कुल जम जाता है. मुहल्ले के बड़े बुजुर्ग बच्चों का हमेशा उत्साहवर्द्धन करते हैं. यही वजह है कि इस साल लगातार मनोरंजन के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं.

युवाओं ने सम्हाली कमान

आज की तारीख में स्थानीय युवाओं ने पूजा की कमान थाम ली है जिससे आयोजन का स्वरुप और भी निखर गया है. बतौर अध्यक्ष दीपक कुमार दीपू मार्गदर्शन कर रहे हैं जबकि उपाध्यक्ष के रुप में अमित कुमार साह उर्फ बबलू,सचिव के रुप में त्रिलोक च़ंद्र पांडेय उर्फ बौआ पांडेय,सचिव के रुप में प्रकाश अग्रवाल, कोषाध्यक्ष के रुप में दीपक साह समेत आयोजन समिति के सलाहकार समिति, शांति समिति, स्वागत समिति के सदस्य पूरी व्यवस्था देख रहे हैं. इनके प्रयास से यह पूजन आयोजन पूरे शहर के लिए दर्शनीय स्थल बना रहेगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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